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1.6.19

अम्बेडकरनगर में ‘आधार’ बनवाने के लिए भटकते लोग

आधार और आधार कार्ड तथा उसमें अंकित नम्बर का महत्व जिस किसी को अच्छी तरह से न मालूम हो वह भारत देश के सूबे उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकरनगर में आ जाए.......जी हाँ बात सोलह आने सच है। हर छोटे-बड़े कार्य में आधार की उपयोगिता होती है। इसके चलते आधार बनाने वाले लोगों द्वारा जिले की जनता का भरपूर धनादोहन किया जा रहा है। पहले जब निजी क्षेत्रों में आधार बनाने का कार्य होता था तब लोग आसानी से आधार निर्माण केन्द्रों पर 10, 20, 50 रूपए खर्चने के बाद बहुउद्देश्यीय उपयोगार्थ आधार बनवाने में सफलता प्राप्त कर लेते थे, परन्तु अब आधार बनाने का जिम्मा निजी क्षेत्रों के जनसेवा केन्द्रों के बजाय किसी ऐसी कम्पनी को दे दिया है जो बीते वर्ष से अब तक आधार निर्माण में कम और धन कमाने में ज्यादा रूचि ले रही है।

परिणाम यह हो रहा है कि आधार बनाने के इच्छुक लोग इस कम्पनी के मुलाजिमों की करतूतों से तंग आकर अपना सिर धुन रहे हैं............कोई सुनवाई नहीं.........कोई पुरसाहाल नहीं..........एक दम से मनमाना...........यदि कहा जाए कि जंगलराज कायम है तो सर्वथा गलत नहीं होगा। यहाँ बताना आवश्यक है कि अम्बेडकरनगर जिले में आधार बनाने का कार्य सरकारी वाणिज्यिक बैंकों और डाकघरों में चल रहा है, जहाँ आधार बनाने वाली कम्पनी के मुलाजिम जरूरतमन्दों की एक न सुनकर अपनी वाली ही कर रहे हैं।

अम्बेडकरनगर के जनपद मुख्यालय पर स्थित प्रधान डाकघर, भारतीय स्टेट बैंक मुख्य शाखा, सिन्डीकेट बैंक अकबरपुर शाखा, पंजाब नेशनल बैंक अकबरपुर शाखा के अलावा अन्य प्रमुख बैंकों के परिसरों में यह कार्य यानि आधार निर्माण कार्य पिछले एक साल से चल रहा है। कहने के लिए वर्ष के 365 दिनों में पड़ने वाले बैंक कार्य दिवसों पर आधार निर्माण का कार्य चलाया जा रहा है जबकि हकीकत यह है जिले का ऐसा कोई इच्छुक/जरूरतमन्द स्त्री/पुरूष नहीं है जिसका आधार कार्ड इनके द्वारा कम्प्लीट कर दिया गया हो। कम्पनी के मुलाजिम आते हैं और एक दिन में 10 से 20 लोगों का जमा किया गया फार्म ही देखते हैं। आधार निर्माण हेतु इनके द्वारा मांगी गई धनराशि जिन लोगों द्वारा दी जाती है उन्हीं का कार्य इनके द्वारा किया जाता है। शेष लोगों को कल आना, परसो आना, एक हफ्ते बाद आना, पन्द्रह दिन बाद आना, मशीन ठीक होने पर आना, पता करते रहना जब आधार बनने लगेगा तब आना आदि कहकर टरकाते रहते हैं।

अलस्सुबह से 10 बजे तक फार्म जमा करने वालों की भीड़ बैंकों और डाकघरों में लगी देखी जा सकती है। बैंक और डाकघरों के जिम्मेदार ओहदेदारों को यह नहीं मालूम कि आधार बनाने वाली कम्पनी कौन सा खेल खेल रही है। आम बोलचाल की भाषा में यह भी कहा जा सकता है कि कम्पनी के मुलाजिम जो भी कुछ कर रहे हैं उसमें बैंक मैनेजर और डाकघरों के पोस्टमास्टर की सहमति है। इन स्थानों पर जाकर आधार बनवाने के इच्छुक लोगों को प्रायः यह जवाब मिलता है कि इण्टरनेट का सर्वर डाउन है, रेटिना कैप्चरिंग मशीन गड़बड़ है, उँगलियों की छाप वाला उपकरण फेल है, पिता-पुत्र, पति-पत्नी आदि सम्बन्धों को कंप्यूटर सिस्टम स्वीकार नहीं रहा आदि......इत्यादि........जाओ प्रतीक्षा करो जब समस्या दूर होगी तब आधार बन पायेगा। कुछ बैंकों व डाकघरों में दोपहर बाद आधार का कार्य किया जाता है जबकि कुछ में दोपहर के बाद यह कार्य बन्द कर दिया जाता है। किसी आम आदमी के लिए ‘आधार’ बनवाना इस जिले के परिप्रेक्ष्य में लगभग नामुमकिन साबित हो रहा है।

आधार बनाने वाली कम्पनी द्वारा जिन स्थानों/कार्यालयों में यह कार्य किया जा रहा है वहाँ के ओहदेदार एवं अन्य मुलाजिम तथा लोग परेशान से दिखते हैं। ये लोग एक दम से कटखना बन गये हैं। जिस किसी ने आधार के बावत कोई जानकारी बैंक प्रबन्धक, अन्य मुलाजिम, पोस्टमास्टर अन्य मुलाजिम से लेने का प्रयास किया तो समझिए आ गई आफत........जूता-लात भले ही न चले परन्तु जुबान से सब-कुछ चल जाता हैं और उस व्यक्ति से परिसर से अविलम्ब बाहर निकल जाने की बात की जाती है। जो सुना गया और चर्चा का विषय है वह यह है कि ये दबंग अधिकारी/कर्मचारी व स्थानीय कर्मचारी अजरूरतमन्दों से कहते हैं कि यदि तुम साला लोग जल्द यहाँ से नहीं भागे तो पुलिस बुलाकर अन्दर करवा दूँगा.........तुम्हे आधार की पड़ी है और यहाँ हमारा लाखों-करोड़ों रूपए का लेन-देन के साथ बैंक और डाकघर के अन्य कार्य प्रभावित हो रहे हैं, जिसके जिम्मेदार तुम होगे........।

यह तो रहा बैंक प्रबन्धक और डाक घरों के पोस्टमास्टर व अन्य जिम्मेदारों की बातें......इस समय आधार बनाने वाली कम्पनी के मुलाजिम यह कहते हैं कि नया आधार नहीं बनेगा, मशीन गड़बड़ है, कब ठीक होगा, कम्पनी के बड़े ओहदेदार जानें.............ऐसे में पुराने आधार का संशोधन ही सम्भव है। हालांकि कई बैंक प्रबन्धकों ने कहा कि ऐसा क    ुछ भी नहीं है नए-पुराने सभीं बन व संशोधित हो रहे हैं। बैंकों और डाकघरों के मुख्यद्वारा पर सुबह से ही उमड़ी भीड़ इस कदर लालायित दिखती है जैसे 1975 में सिनेमाघरों की टिकट खिड़कियों और सिनेमाघरों में शोले फिल्म के गब्बर और बसन्ती को देखने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे। जिनके हाथ टिकट लगा वह अतिभाग्यशाली..........जिसने 10 रूपए का टिकट 100 रूपए में लिया वह भाग्यशाली और जो टिकट न मिलने पर वापस होता था वह अभागा की श्रेणी में आता था।

बैंक और डाकघरों के सफाई कर्मी आधार निर्माण हेतु आई भीड़ को इस कदर दुत्कारते हैं जैसे आधार बनाने वाला मुलाजिम अंग्रेजी हुकूमत के समय का कोई वायसराय हो और वह जब आएगा तो भीड़ की बदबू से कुपित होकर इन सफाई कर्मियों की नौकरी ले लेगा। नया आधार कार्ड बनवाने व संशोधन हेतु मिलने वाला फार्म बैंकों और डाकघरों के इर्द-गिर्द कतिपय दुकानों/स्थानों पर मुँह मांगी कीमत पर उपलब्ध है। साथ ही आधार जरूरतमन्दों के तथाकथित हितैषी के रूप में पेश आने वाले दलालों की चाँदी कट रही है। आइए......पहले फार्म बिक्रेताओं व दलालों से मित्रता करिए फिर जेब ढीली करिए..........। एक बात और यह बात किसी को मत बताइएगा वरना आपका आधार रद्द हो जाएगा आप आधारहीन होकर भारत के यतीम नागरिक बने इधर-उधर भटकेंगे।

- डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी, 9454908400

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