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27.6.19

जनता के लिए तो यह आपातकाल से भी बदतर है प्रधानमंत्री जी

राजनीति में बेशर्मी कोई बड़ी बात नहीं रह गई है पर यदि देश का प्रधानमंत्री इस बेशर्मी पर उतर आये तो देश के लिए चिंतन का विषय जरूर है। जब देश में एक विशेष नारे के नाम पर एक विशेष धर्म के लोगों को टारगेट बनाया जा रहा हो। जब सरकार में बैठे लोग अपने विरोधियों को टारगेट बनाकर जेल भिजवा रहे हों। जब संविधान की रक्षा करने वाले तंत्रों को बंधुआ बनाने का दुस्साहस हो रहा हो।

युवाओं को रोजगार देने के बजाय पर उन्हें जाति और धर्म के आधार पर आपस में उलझा दिया जा रहा हो। आंदोलनकारियों पर तरह-तरह के मुकदमे लादकर जनता की आवाज को दबाया जा रहा हो तो ऐसे में देश के प्रधानमंत्री देश की सबसे बड़ी पंचायत में देश में लोकतंत्र होने का दंभ भर रहे हैं। वह भी विपक्ष के नेता कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के जेल में न होने के मुद्दे पर।  ये सब बातें प्रधानमंत्री लोकसभा में अधीर रंजन चौधरी के उस बयान 'अगर कांग्रस भ्रष्ट पार्टी है तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी जेल में नहीं हैं।Ó के जवाब कही हैं। प्रधानमंत्री का कहना था कि उनके कार्यकाल में लोकतंत्र है। किसे जेल में डालना है, इसका फैसला अदालतें करती हैं। मतलब सरकार अदालत पर भी अंकुश लगा सकती है। प्रधानमंत्री का कहना था कि वे कानून से चलने वाले लोग हैं। मतलब कानून को ताक पर रखकर भी सरकार चलाई जा सकती है। वैसे भी मोदी कार्यकाल में हर तंत्र को पंगू तो बना ही दिया गया है।

बिल्कुल प्रधानमंत्री जी देश में लोकतंत्र है। झारखंड में तबरेज अंसारी नामक युवक को इसलिए मार दिया जाता है क्योंकि उसने अराजकवादियों के कहने पर जय श्रीराम का नारा नहीं लगाया था। पश्चिम बंगाल में एक शिक्षक को इसलिए ट्रेन से फेंक दिया जाता है क्योंकि उसने जय श्रीराम का नारा लगाने से इनकार कर दिया था। पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार की ओर से इसलिए माहौल खराब करने की छूट दी जा रही है क्योंकि वहां धर्म के आधार पर हिंसा कराकर विधानसभा चुनाव जीतना है। बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से मरे बच्चों के परिजनों पर इसलिए एफआईआर दर्ज कर दी जाती है क्योंकि उन्होंने एनडीए सरकार की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को इसलिए उम्रकैद हो गई क्योंकि किसी समय उन्होंने भाजपा की अराजकता नीतियों का विरोध किया था। यह सब लोकतंत्र ही तो है।

मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से पीड़ित गरीब बच्चों  को मरने के लिए छोड़ दिया गया है। प्रधानमंत्री के मॉडल प्रदेश गुजरात में 32 गांवों में कमजोर वर्ग के लोग दबंगों के भय के साये में जीने को मजबूर हैं। महाराष्ट्र के मराठावाड़ा और कर्नाटक में सैकड़ों गांवों के लोगों को सूखा पड़ने पर अपना घर बाहर छोड़ना पड़ रहा है। कई पत्रकारों और सोशल एक्टिविस्टों को इसलिए जेल में डाल दिया गया, क्योंकि उन्होंने भाजपा सरकारों की गलत नीतियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त कर दी थी। यह सब लोकतंत्र ही तो है।

आंदोलनकारियों को नक्सली, देशद्रोही, आतंकी पता नहीं क्या क्या कहा जा रहा है। यह सब लोकतंत्र ही तो है। यदि मोदी सरकार के खिलाफ कोई जबान खोले तो उसकी जबान किसी भी हालत में बद होनी चाहिए। यदि फिर भी नहीं मानता है तो सांसे बंद कर दो। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और उनके सिपेहसालार जो कुछ कहें या सुनना चाहे वह ही बोले। नहीं तो पाकिस्तान चले जाओ। यही तो है प्रधानमंत्री का लोकतंत्र।

देश की सर्वोच्च संस्थाएं सीबीआई, रिजर्व बैंक, न्यायपालिका, मीडिया सभी की तो ऐसी की तैसी कर दी गई है। यह सब लोकतंत्र ही तो है। मोदी की भाषा में इसे ही तो लोकतंत्र कहते हैं। लोक की बात नहीं कर खास की बात करो। जनप्रतिनिधि होकर कारपोरेट घरानों के लिए काम करो। यही तो आज का लोकतंत्र है। आज के लोक तो ये ही कारपोरेट घराने ही हैं। अंग्रेज भी तो शासन करने के लिए देश के रजवाड़ों से संबंध बनाकर रखते थे। मोदी सरकार भी तो आज के कारपारेट रूपी इन रजवाड़ों से संबंध बनाकर ही रखेगी। अंग्रेजी हुकुमत की पैरवी करने वाली सोच रखने वाले लोगों में से ही तो हैं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। उनके हिसाब से भी तो तब लोकतंत्र ही था। वह बात दूसरी है कि जनता और क्रांतिकारियों पर कहर ढहाया जा रहा था।

क्या हुआ अमित शाह के केस से संबंधित जस्टिस लोया का ? सुप्रीम कोर्ट की वकील इंदिरा सिंह ने केस लड़ा तो उनके एनजीओ को ही लपेट लिया गया। यह सब लोकतंत्र ही तो है। सहारा ग्रुप का चेयरमैन सुब्रत राय तीन साल से पैरोल पर जेल से बाहर आकर अपने कर्मचारियों और निवेशकों का उत्पीड़न कर रहा है। बलात्कार के आरोपी राम रहीम को हरियाणा सरकार इसलिए पैरोल पर बाहर निकालने की व्यवस्था कर रही क्योंकि अब हरियाणा में फिर से सरकार बनाने के लिए उसके सहयोग की जरूरत है। यह सब लोकतंत्र ही तो है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लोकतंत्र। वैसे भी राम रहीम तो भाजपाइयों के लिए पूजनीय रहा है हैं। हरियाणा में सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अपने पूरे कैबिनेट के साथ राम रहीम की चरणवंदना करने ऐसे ही थोड़े गये थे।

हो सकता है कि रामपाल को भी बाहर निकालने की कोई व्यवस्था हो जाए। हरियाणा में समर्थक तो उसके भी बहुत हैं। आशाराम का वोटबैंक हरियाणा में नहीं है तो उनके बारे में बात करनी बेकार है। हां एक समय था कि भाजपा के सभी शीषस्थ नेता उनकी चरणवंदना करने जाते थे। दरअसल मोदी सरकार अंग्रेजों की नीतियों पर ही काम कर ही है। धनाढय लोगों से संबंध बनाकर रखो जनता तो भेड़ हैं। जैसे हाकेंगे वैसे चलेगी।

प्रधानमंत्री विपक्ष के नेताओं को जेल में क्यों डालेंगे। सबने आत्मसमर्पण तो कर ही दिया है। जो लोग मोदी के दूसरे कार्यकाल में विपक्ष के भ्रष्ट नेताओं को जेल भिजवाने की उम्मीद लगाये बैठे थे। उनको जरूर धक्का लगेगा। उन्हें भलीभांति समझ लेना चाहिए कि मोदी विपक्ष के किसी नेता को जेल में नहीं भेजने जा रहे हैं। यह सब चुनाव के समय बनाया गया माहौल था। हां यदि कोई नेता उनके खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दे तो बात दूसरी है। वह अब दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है।

हां उन आंदोलनकारियों जरूर सावधान रहने की जरूरत है जो आरएसएस के एजेंडे को लागू करने में मोदी सरकार के लिए रोड़ा बन रहे हैं। मोदी सरकार का असली चेहरा लोगों के सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लोगों को जेल भिजवाने की तैयारी पर काम जरूर हो रहा है। जो किसान मजदूर और गरीब आदमी अपना हक मांग रहा है। जो आदिवासी मोदी के मित्र अडानी के पहाड़ों को काटकर धंधा करने का विरोध कर रहे हैं। उनको जरूर जेल भेजा जा सकता है। जो संगठन जनता के हक की आवाज उठाने के लिए सड़कों को उतरेंगे या उतर रहे हैं। वे लोग भी मोदी सरकार के टारगेट पर हैं। कानूनों में संसोधन कर देश में अन्याय के खिलाफ उठने वाली आवाज को पूरी तरह से दबाने की व्यवस्था पूंजीपतियों के दबाव में हो रही है। मोदी सरकार में स्वाभिमानी, खुद्दार, हक के लिए लड़ने वाले के लिए दिक्कत है। घुटने टेकने वाले लोगों को कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है।

देश में सबसे अधिक रोजगार देने वाले विभाग रेलवे का निजीकरण किया जा रहा है। किसान की खेती और मजदूर की मजदूरी कारपोरेट घरानों को लूटाई जा रही है। निजी संस्थाओं में देश के युवाओं की जवानी गिरवी रख दी गई है। यह सब लोकतंत्र ही तो है। 6-8-10-12-15 हजार रुपये में 10-12 घंटे काम लिया जा रहा है। देश के नौनिहालों की प्रतिभा चौराहे पर नीलाम हो रही है। यह सब लोकतंत्र ही तो है। वह बात दूसरी है कि यह कारपारेट संस्कृति का लोकतंत्र है।

जिन लोगों को अभी मोदी का लोकतंत्र समझ नहीं आया है थोड़ा सा और रुक जाइये। बस छह महीने। सब समझ में आने लगेगा। जिस प्रधानमंत्री को गरीब बच्चों की मौत पर कोई पश्चात न हो। महिलाओं की रोज लूटी जा रही अस्मत पर कोई अफसोस न हो। सड़कों पर घूम रहे लाखों बेरोजगारो को देखकर कोई चिंता भाव न हो। किसानों की आत्महत्याओं का कोई असर न पड़ता हो। किसी आंदोलन की ओर कोई ध्यान न जाता हो। वह प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल में लोकतंत्र की बात करे तो इससे हास्यापद बात हो ही नहीं सकती।

चरण सिंह राजपूत

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