Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

7.1.08

नये पत्रकारों के पथ प्रदर्शक हरिवंश जी


हरीवंश जी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि किससे क्या काम लेना है, इसे वह तुरंत जज कर लेते हैं वह जानते हैं कि जो डेस्क पर काम कर सकता है, उसे रिपोर्टिंग में और रिपोर्टिंग की क्षमता वालों को डेस्क पर लगाने से उनकी स्किल मरने लगती है । हालांकि वह अपनी टीम का ऑलराउडर होना पसंद करते हैं । जो लगातार लिखना चाहता है, उसे वह लिखने का खूब मौका देते हैं । मैं अपने अनुभव यहाँ थोडा बांटना चाहूंगा । मुझसे उनहोंने पूछा- तुम्हारा फील्ड ऑफ़ इन्टरेस्ट क्या है । मैंने कहा- सर मैं आर्ट एंड कल्चर तथा ह्यूमन सब्जेक्ट्स पर अच्छा लिख सकता हूँ । उन्होने कहा- मुझे भी ऐसा ही लगता है, क्योंकि तुम्हारी भाषा में रिदम है,तुम्हारे पास वोकैब्लारी भी है । उन्होने इसके बाद मुझ खुद ही कई टोपिक दिए और कहा भी कि तुम्हे यह इसलिए दिया है क्योंकि तुम इस विषय पर बहुत बढिया कर सकते हो । इसीका नतीजा था कि १९९३ में डेस्क पर रहते हुए एक साल में मेरी १७० से ज्यादा बाईलाइन स्टोरी छपी । सिर्फ मुझे ही नहीं, नये नियुक्त साथियों को भी उन्होने बड़ी जिम्मेदारियां दीं । नये रिकरूट को भी वह पेज वन पर बिठा देते थे और खुद उसकी प्रोग्रेस मोनिटर करते थे । नतीजा एक साल में ही नया आदमी इस लायक हो जाता था कि वह किसी भी पेज पर काम कर सकता था । किसी को भी बड़ी जिम्मेदारी देने में वह निस्वार्थ भाव से निर्णय लेते हैं । वह बताते भी हैं कि इस स्टोरी की आत्मा क्या है । रिपोर्टर को स्टोरी के किस पहलू को फोकस करना चाहिए । लगातार १८ साल से प्रभात खबर के प्रधान संपादक होने के बावजूद आज भी वह पहले पेज की प्लानिंग खुद करते हैं । खबर को तरीके से फ्लैश करना और उसमें जान डाल देनेवाले सभी पहलुओं पर उनकी पारखी नज़र का आज भी पत्रकारिता जगत कायल है । सुबह ११ बजे तक दफ्तर पहुंच जाना और रात के ९ बजे तक वह अपने चैम्बर में कभी खाली नहीं रहते । वह या तो संपादकीय सहयोगियों के साथ उस दिन की योजना पर डिस्कस करते हैं, विभिन्न अखबारों में देश दुनिया की नब्ज टटोलते हैं, प्रबंधन के लोगों के साथ जरूरी मीटिंग करते हैं, कुछ गंभीर लिखते रहते हैं या फिर अखबार के बारे में सोचते हैं । कभी कभी उन्हें देखकर लगता था कि उनमें इतनी ऊर्जा कहाँ से आती है । उनमें कोइ व्यसन नहीं है । लंच भी वह घर से लाते हैं । सूखी रोटी और बिना तेल मसाले की सामान्य सब्जी । शाम को वह चने का फुटहा मंगाकर खाते हैं और बरसात में भुट्टे । वह अक्सर पार्टियों से परहेज करते हाँ, पर बौधिक मंत्रणा या सम्मेलनों में जरूर शिरकत करते हैं । खासकर सामाजिक सरोकारों से जुडे मुद्दों पर । जब-जब राज्य के मुखिया या नौकरशाहों ने जनता को ठगा, उनकी कलम आग उगलने में पीछे नहीं रही । वह प्रचार से भी सर्वथा परहेज करते हैं । किसी कार्यक्रम में अगर उनकी तस्वीर आ गयी है, तो उसे प्रकाशित नहीं किया जा सकता ।

No comments: