है कोई तुझसे बड़ा, तेरे अस्तित्त्व से, तेरे आधार से।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू आकाश है पहचान खुद को।
तेरा कोई अंत नही, तू अनंत है, है कोई जो तुझे सीमाओं में बांध सके।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू धरा है, पहचान खुद को।
तेरी सहनशीलता, तेरी सुन्दरता का कोई जोड़ नही।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
है कोई तुझसे बड़ा, तेरे अस्तित्त्व से, तेरे आधार से।
तू अग्नि है, अपनी पहचान कर।
तेरा तेज, तेरा ताप, तेरी ऊर्जा जीवन का स्रोत है।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू जल है, खुद को पहचान।
तेरी शीतलता, तेरी निर्मलता, तेरी पवित्रता किसी और में है क्या।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
तू वायु है, अपनी पहचान कर।
तेरा वेग, तेरी शक्ति, तेरा जीवन देने का अंदाज किसी और में है क्या।
फिर क्यों डरता है, क्यों तिल-तिल कर मरता है।
है कोई तुझसे बड़ा, तेरे अस्तित्त्व से, तेरे आधार से।
अबरार अहमद, दैनिक भास्कर, लुधियाना
31.1.08
है कोई तुझसे बड़ा
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1 comment:
बहुत प्यारा लेखन है भाईजान । लिखे जाइए
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