Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

11.1.08

बरम बाबा को तो छेड़ ही दिया बच्चा, अब बचो !!!

एक हिंदुस्तानी ने अपनी डायरी लिखते समय गलती कर दी। जी हां, बात कर रहे हैं अनिल जी की। इन्होंने अपनी ताजा पोस्ट में जब लिखने को कुछ नहीं मिला तो बरम बाबा का अपमान कर दिया। मतलब कि भड़ास और भड़ासियों का अपमान कर दिया। बरम बाबा से बच के निकल जाने की सोची थी लेकिन उन्होंने गलती कर दी। बरम बाबा खुद किसी को परेशान नहीं करते। सब पर उनका हाथ रहता है। लेकिन कोई उन्हें जान बूझकर छेड़े तो बरदाश्त भी नहीं करते।

सबके सामने। सरेआम। अपमान। नादान। किस बात पर गुमान। कहां गया ईमान। बेईमान। आएगा तूफान। तू मान या न मान। पकड़ ले कान। बंद कर ई कलम स्याही की दुकान। वरना न बचेगी आन बान शान। बरम बाबा ने लिया है ठान। लायेंगे तूफान... बच....गान मान खान जान कान फान फूं कूं ठूं लुकेदू चुकेदू ठुकेदू हुच्च फुच्च कूच्च ह्हीं क्रीं ठ्रीं झ्वाहा ठ्याहां देवाई खियाए प्वारो झो को तू दो.....हो फो ठो....


लो, बाबा ने दे दिया सराप।

अब तो बरम बाबा आयेंगे। उपर आयेंगे। चाहें डागडर को दिखायें या वैद को। बाबा छोड़ेंगे नहीं। चढ़ावा दिये बिना निकल लिये। और तो और, अपमान भी किया।

अब दिल थरथरा रहा है। कांप रहे हो। पहले काहे ना सोचे। काहे को कह दिया कि किलो किलो भर लिखते हैं। आतंकित करते हैं। जाने और क्या-क्या मन में था। हम बूझ रहे हैं। पाप है मन में पाप। किलो भर पाप। अब तो छोड़ेंगे नहीं।

विश्वास न हो तो इनके घरवालों, गांववालों, ब्लागवालों पढ़ लो, इ का लिखे हैं बरम बाबा लोग के बारे में...

...अब ब्लॉगरों की सबसे खतरनाक बरम बाबा वाली श्रेणी, जिनसे पास भी फटकने से मैं बचता हूं। इनमें से कुछ लोगों की खासियत है कि वे लोग दिन भर में किलो-किलो लिखते हैं और कुछ दूसरी वजहों से आतंकित करते हैं। पीपीएन, भड़ास, अविनाश वाचस्पति, पंकज अवधिया, अफलातून, अरुण पंगेबाज, जनमत, दखल की दुनिया आदि-इत्यादि के लिखे से मैं भयभीत रहता हूं। इंकलाब वाले सत्येंद्र भी इतनी लंबी पोस्ट लिखते हैं कि उन्हें भी मैं बरम बाबा की श्रेणी में रखता हूं। ऐसे कुछ और भी हैं जिनके ब्लॉग पर जाकर मैं घबरा जाता हूं और दोबारा वहां जाने की हिम्मत नहीं पड़ती।..


मतलब कि एक तो बरम बाबा के यहां जाते भी हैं और घबराते भी हैं। जब घबराहट होती है तो जाते काहें को है। पर जब चले गए और डर गए तो फिर तो बाबा पीछे पड़ गए।

उनका पूरा लिखा आपो पढ़ सकते हो, अपने चूहा में उंगली कर आगे वाले वाक्य पर तीर धंसाने के बाद....हिंदी ब्लागिंग के डीह बाबा, ब्रह्म और करैले

तो बच्चा, बचिये। ब्लागिंग के बरम बाबा हों या गांव के, जब आते हैं तो बहुते नाच नचाते हैं। क्योंकि बाबा लोग चाहें जहां वाले हो, सोचते समझते और सताते एक ही तरह से हैं।

इ सब हाल देख, कहानी सुन परिवार वाले गरियाते हैं, पीड़ित के चेहरे पर बेना डोलाते हुए...

...कहे रहे कि न छेड़ो इनको, पर इ मानता कहां है, उंगली करने की आदत है जो। पहले तो बचपना था, अब सयाना हो गया तो भी बुद्धि वही की वही रही। अउर लिख भी रहा है कि बुद्धि उंगली करने वाली आजो है। जाने का पढ़ाई किया है इहां से उहां तक। सब पइसा बोर दिया। और कहता है कि जाने बंबई में कउन सा बड़का नोकरी कर रहा है। अरे, होंगे सहर में बड़े बाबू, इहां तो बरमे बाबा के परताप से गांव जवार चलता है। उनहीं के पीछे पड़ गया ई। जय हो बरम बाबा, बच्चा नदान था, है और लगता है रहेगा भी। इसे सदा के लिए माफ कर दो। अगले मंगल को ताई चढ़ायेंगे और नटवा के इहां से असली वाली मिरचइया पियायेंगे। जय हो बरम बाबा। माफ करो। गलती हो गई है।


अनिल जी, रात बिरात जब नींद उचट जाये तो सोचियेगा जरूर, गौर से देखियेगा दरो दीवार को। आपको बरम बाबा अगल बगल सनसनाते हुए निकलते नजर आयेंगे। चुप्पी मारकर हवा के साथ दीवार पर चिपके नजर आयेंगे। जब लच्छन दिखे तो समझियेगा, बाबा का परकोप शुरू हो गया है...माथा में हरदम टेंशन रहेगा। दिल भारी भारी महसूस करेगा, काम करने में मन नहीं लगेगा। हंसने के वक्त रोने का और रोने के वक्त हंसने का मन करेगा। जो आनलाइन होंगे वो मित्र लगेंगे, जो घर में होंगे वो शत्रु से दिखेंगे। हर आदमी पर शंका करेंगे। अड़ोस पड़ोस वाले तोहरे पर शंका करेंगे। उलटी करने को मन करेगा, भूख लगेगी तो खाने का मन नहीं करेगा, खाना सामने हो तो भूख नहीं लगेगी। पेट झरेगा तो कुछ निकलेगा नहीं, और कुछ निकलेगा तो वो पेट झरने वाले कैटेगरी का नहीं होगा।

तो बरम बाबा का उपरोक्त सराप अब शुरू हो चुका है। नादानी नादान उमर में ठीक है लेकिन इ जो बड़े बुजुर्ग के उमर में जो किये हैं उसकी कोई माफी नहीं है। चाहें ताई चढ़ावें या गाजा। अब एक्के उपाय है, इहां ताई और गांजा से बात तो बनने वाली नहीं, एगो कमेंट लिखकर बाबा को शांत कर सकते हैं। और कोई तरीका नहीं है।

तो, सोच का रहे हैं, लिखिये कमेंटवा या फिर जगाय दें हम संप्रदाय के बाकी बरम लोगों को...:):)

जय भड़ास
यशवंत सिंह

4 comments:

अनिल रघुराज said...

दोहाई बरम बाबा की। चूक होय गई। क्षमा करैं। वैसे इस समय जबरदस्त भूख लगी है। दफ्तर से घर का रुख कर रहा हूं। अच्छा लिखा है। श्श...श्टाइल जबरदस्त है। लेकिन शिकायत अब भी वही कि किलो-किलो भर लिख(मूल शब्द कोई और था)ते हैं।
जय, भड़ास...

Sandeep Singh said...

यशवंत जी पहले बरम बाबा का मूल पढ़ा फिर आपका लिखा आमूल पढ़ा। यकीनन बरम के दर्शन आमूल लेख में ही हुए क्योंकि मूल लेख पढ़कर ही समझ में आ गया था कि लेख का उद्देश्य महज मनोरंजन यानी टीआरपी है। कहने में गुरेज नहीं भरपूर मनोरंजन यहीं मिला। सचमुच अगर मंत्रों का मंत्रोच्चार दो-तीन बार कर लिया जाए तो तात्कालिक प्रभाव नज़र आने लगता है। कमेंट में अनिल जी का पहला पोस्ट लेख की भयावहता भी बखूब बयां करता है लेकिन आखिर में उन्होंने फिर से चिकोटी काट ही ली।

subhash Bhadauria said...

बरम बाबा की जय हो.बाबा का अपमान कोई करे और हम चुप रहें ये कैसे हो सकता है आज की ताज़ा ग़ज़ल आप के लेख को नज़र में रख के ही लिखी है.
भाई हमने तो पेल दिया अपनी ग़ज़ल में आप ज़रूर देखे.

उंगलियाँ हम को जो कर रहे हैं
वो अंगूठों के हकदार होंगे.

हमसे मरवायेंगे आप बरसों.
तब कहीं जा के हुशियार होंगे.
यशवंतजी हमारी राय तो ये है कि बरमबाबा सरीखे ब्लागरों की पोस्ट का मूत्र चिन्नामृत समझकर ये पाखंडी अगर पिये तो कितनो को जो भाषा और विषय की जो डायबिटीज़ है वो जड़मूल से ठीक हो सकती है.
जय बरमबाबा की.

Unknown said...

koi upay