Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

2.1.08

मी़डिया की अयोग्य महिलाओं से मुझे बचाओ!!!

मेरे एक पत्रकार साथी हैं। उनके साथ एक घटना हो गई। वो जिस अखबार में काम करते हैं वहां पर एक महिला रिपोर्टर ने उन पर कोई आरोप लगा दिया। इसको लेकर काफी बवाल हुआ। बाद में जैसे तैसे मामला शांत हुआ। मुझे इस बारे में उतना ही पता है जितना उन पत्रकार दोस्त ने मुझे मेल लिखकर भेजा। मैं उनका नाम और पहचान हटाते हुए उन द्वारा लिखा गया पत्र हू बहू यहां दे रहा हूं....

पत्रकार मित्र द्वारा लिखा गया पत्र...
...यशवंत जी, आप तो जानते ही हैं कि मिडिया में जाँब जितनी मुश्किल से मिलती है जाती उतनी ही आसानी से है आज नये वर्ष के पहले दिन मेरे साथ ऐसी ही घटना होते -होते बची जब मेरे ही साथ करने वाली एक कथित रिपोर्टर ने मेरे ऊपर कुछ आक्षेप लगाकर अपनी पुरानी दुश्मनी निकालने की कोशिश करी। लेकिन जैसे कि पुराणों में लिखा है कि मारने वाले के दो हाथ होते है तो बचाने वाले के सौ तो वर्ष के पहले मंगलवार को मुझ हनुमान भक्त पर लगाये गये आरोपों की मुखालफत में मेरे ही कई साथी खड़े हो गये और उसके इस गन्दे प्रयास को नाकाम कर दिया । मैं कोई स्त्री विरोधी मानसिकता नही रखता हूँ लेकिन आज की घटना के पहले से ही मेरा मानना रहा है कि बिना योग्यता के ही मीडिया के क्षेत्र में जिस तरह महिलाओं की भीड़ बढती जा रही है उससे मिडिया में भले लोगों का काम करना मुश्किल होता जा रहा है ।...
आपका
क ख ग
-----------------

मैं यहां सभी भड़ासियों, ब्लागरों और हिंदी मीडियाकर्मियों से जानना चाहूंगा कि उपरोक्त पत्र में जो बात कही गई है कि बिना योग्यता के जो लड़कियां मीडिया में हैं वो किसी और तरीके से आगे बढ़ रही हैं और काम करने वाले योग्य पुरुषों को इससे बहुत दिक्कत हो रही है...., उससे आप सहमत हैं या नहीं।

वैसे, महिलाओं के मीडिया में आने पर ही यह बहस शुरू हो गई थी कि वे आगे बढ़ने के लिए शार्टकट अपनाती हैं, अन्य तरीकों का सहारा लेती हैं, लेकिन महिलाओं का कहना है कि दरअसल पुरूषों के दबदबे वाले फील्ड को जब महिलाओं ने चुनौती दे दी है तो उन्हें दिक्कत लाजिमी है। उनता ये भी कहना है कि ढेर सारे पुरुष भी अयोग्य हैं जो मीडिया में भरे हैं, अगर कुछ महिलाएं भी अयोग्य हैं और आगे बढ़ रही हैं तो दिक्कत क्यों हो रही है। पुरुष तो अपने बास को इतना मक्खन लगाते हैं और आफिस के बाहर जाने कैसे कैसे पटाते हैं कि इस संबंध में ढेरों कहानियां सभी को पता है। दूसरी तरफ अगर कोई लड़की अपने बास के आगे सिर्फ मुस्करा कर बात कर ले तो साथी पुरुष इसे किसी और अर्थ में लेने लगते हैं।

खैर, दोनों पक्षों के अपने अपने तर्क हैं, लेकिन आप क्या सोचते हैं। मीडिया में वाकई अयोग्य महिलाओं की भीड़ बढ़ी है जिन्हें योग्य पुरुषों की कीमत पर बढ़ावा दिया जा रहा है?

आपकी प्रतिक्रियाओं और पोस्टों का इंतजार रहेगा....

जय भड़ास
यशवंत

2 comments:

Ashish Maharishi said...

यशवंत जी हर चीज के दो पहलू होते हैं और ऐसा नहीं है कि यह बात केवल महिलाओं पर ही लागू होती हैं कि वो शार्टकट अपनाती हैं, बात तो सही है कुछ महिलाएं शार्ट कट अपनाती हैं लेकिन मैं कई ऐसे पत्रकारों को जानता हूं जिन्‍हें पत्रकार कहना पूरे पत्रकार कौम की बदनामी होगी, यह लोग सफलता के लिए अपने बॉस की कितनी चापलूसी करते हैं कि मुझे कभी कभी समझ में नहीं आता है कि यह भाई पत्रकार है या कोई दलाल, खासतौर पर उप्र और दिल्‍ली के पत्रकारिता जगत में यह आम है, मुंबई और जयपुर में भी कम नहीं है

उम्दा सोच said...

यशवंत जी,अयोग्य लिंगभेदी नही होता अयोग्य तो बस अयोग्य ही होता है‌ अब सवाल ये उठता है भारतीय पत्रकारिता के आवरण मे खास तौर पर टेलिविजन मे कितनों की योग्यता है?और है भी तो कितनी फ़लीभूत हो रही है‌
महिलाऎं ही नहीं टी.वी.चैनेल भी तो शार्टकट अपनाते है,राखी सवन्त को अछ्छी तरह दिखाने के लिये क्रोल और एस्टेन भी हटा लिया जाता है‌अब इस महौल से अयोग्य क्यो ना लाभ उठाये?