पाप-पुण्य का लेख-जोखा बस यहीं होता है.....ये जीवन है चलता है तो चलता है, फिर कभी-कभी लाश बन गिरता है. कभी-कभी आदमी हड़पता है जिंदगियां और फिर लाशें हड़प लेती हैं उसकी ज़िन्दगी.
ये नज़्म तरकरीबन सौ गोलियों के शिकार 'महेंद्र कर्मा' के लिए. आदमी के बदले आदमी और आँख के बदले आँख लेने का ये खेल पहली बार तो नहीं हुआ है!
बस ढेर सारे बुलबुले पानी के
तोड़ के बिखेरे गये.
पत्थरों से होकर जो
अठन्नियां निकलनी थी.
अठन्नियां निकालने एक आदमी
बुलबुले फोड़ता गया.
ज़मीन से ज़र बनाने
गर्दने मरोड़ता गया.
सुना है कल लाश मिली है
बुलबुले फोड़ने बाले की.
खून सने बुलबुलों
की औलादों ने
किया है ये काम.
गर्दने मरोड़ने बाले को
दिया है 'लाल सलाम'!
आँख के बदले आँख नहीं ली गयी इस दफा.
बस किसी ने मौत बेचीं थी
....और उसे मौत उधार दी गयी!!
लोग येसे ही हथियार नहीं उठाते 'साहिब' ....... मजबूर किया जाता है उन्हें!
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