22-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,एक जंगल था जहाँ अचानक
लोकतंत्र की हवा चलने लगी। चुनाव हुए तो चूँकि वहाँ बंदरों,हिरणों और
खरगोशों की संख्या ज्यादा थी इसलिए एक बंदर को राजा चुन लिया गया। कुछ ही
दिन बाद एक दिन जंगल के पुराने राजा सिंह ने एक हिरण के बच्चे को दबोच
लिया। हिरणी बेचारी हाँफती हुई नए राजा बंदर के यहाँ पहुँची और उससे अपने
पुत्र की रक्षा करने की गुहार लगाई। बंदर पेड़ों की डालों पर उछलता-कूदता
हुआ भागा-भागा वहाँ पहुँचा जहाँ सिंह ने हिरणी के बच्चे को बंधक बना रखा
था। बंदर ने सिंह को हिरणी के बच्चे को नहीं खाने और छोड़ देने का आदेश
दिया लेकिन सिंह के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। बंदर चिल्लाता रहा और
चिल्लाता-चिल्लाता लगातार पेड़ों की इस डाल से उस डाल पर कूदता रहा और उधर
सिंह हिरणी के बच्चे को खा गया।
मित्रों,तब बच्चे की मौत से दुःखी
हिरणी ने बंदर पर नाराज होते हुए कहा कि तुम बेकार राजा हो क्योंकि तुम
सिंह से मेरे बच्चे की रक्षा नहीं कर सके। जवाब में बंदर ने कहा कि भले ही
मैं तेरे बच्चे को नहीं बचा सका लेकिन मेरी कोशिश में तो कमी नहीं थी।
मित्रों,केंद्र में मोदी सरकार को गठित हुए 2 महीने हो चुके हैं और मोदी
सरकार भी लगातार उस बंदर की तरह कोशिश ही करती हुई दिख रही है। महंगाई को
कम करने की कोशिश,चीन-पाकिस्तान को समझाने की कोशिश,रोजाना 30 किमी
राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की कोशिश,भ्रष्टाचार मिटाने की
कोशिश,मुलायम-अखिलेश को समझाने की कोशिश,कांग्रेसी काल के राज्यपालों को
इस्तीफे के लिए मनाने की कोशिश वगैरह-वगैरह। ठगा-सा देश और ठगी-सी देश की
जनता ने क्या सिर्फ इसी बंदरकूद के लिए देश ने नरेंद्र मोदी को भारी
बहुमत-से चुनाव जिताया था?
मित्रों,चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी उत्तर
प्रदेश में कुशासन के खिलाफ लगातार बोल रहे थे मगर आज जब यूपी में
कानून-व्यवस्था नाम की चीज नहीं रह गई है तब वे अपने संवैधानिक कर्त्तव्यों
को दरकिनार करते हुए ठीक उसी तरह सपा-बसपा को साधने की जुगत भिड़ा रहे हैं
जिस तरह कि कभी सोनिया-मनमोहन ने भिड़ाया था। तो क्या इसका यह मतलब निकाला
जाए कि अब उत्तर प्रदेश की लाचार जनता को मार्च 2017 तक मोदी कथित
बाप-बेटे की सरकार को झेलना पड़ेगा? इसी प्रकार नरेंद्र मोदी सरकार
चीन-पाकिस्तान और कांग्रेसी काल के राज्यपालों के आगे भी गिड़गिड़ाती हुई
दिखाई दे रही है। चीन की घुसपैठ और पाकिस्तान की गोलीबारी में मोदी सरकार
के गठन के बाद तेजी ही आई है लेकिन मोदी सरकार ने इनको ऐसा करने से रोकने
के लिए अब तक ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिससे कि ऐसा लगे कि यह सरकार मोदी
कथित वेंटिलेटर पर चल रही मनमोहन सरकार से किसी भी मायने में अलग है।
मित्रों,इसी प्रकार नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार में कई ऐसे लोगों को शामिल
किया है जिनको बेदाग नहीं कहा जा सकता। इनमें से जिन लोगों पर बलात्कार के
आरोप हैं या दंगों के आरोप हैं उनको तो मैं नहीं जानता लेकिन मैं हाजीपुर
के सांसद और भारत के उपभोक्ता एवं खाद्य आपूर्ति मंत्रालय रामविलास जी
पासवान (मोदी जी और राजनाथ सिंह जी शायद उनको ऐसे ही पुकारते होंगे) को
जरूर अच्छी तरह से जानता हूँ। ये वही रामविलास जी पासवान हैं जिनके रेल
मंत्री रहते कभी अजमेर रेलवे भर्ती बोर्ड के चेयरमैन और इनके प्रिय समता
कॉलेज,जन्दाहा के तत्कालीन प्रिंसिपल श्री कैलाश प्रसाद जी को एक उम्मीदवार
से घूस लेते हुए सीबीआई ने पकड़ लिया था। बाद में अटल जी की उस सरकार ने न
जाने क्यों मामले को दबा दिया था जिसमें स्वयं रामविलास जी पासवान भी
शामिल थे। अभी लोकसभा चुनाव प्रचार के समय 22 फरवरी,2014 तत्कालीन मनमोहन
सरकार ने यह खुलासा किया था (
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कि रामविलास पासवान ने यूपीए 1 में केंद्रीय इस्पात और रसायन मंत्री रहते
हुए बोकारो इस्पात कारखाने में कई ऐसी बहालियाँ की थीं जिनमें पैसे लेकर
गड़बड़ी की गई थी लेकिन न तो मनमोहन सरकार ने और न ही अब मोदी सरकार ने इस
मामले में जाँच को आगे बढ़ाया है। इसका सीधा मतलब देश की जनता यह क्यों न
लगाए कि मोदी सरकार भी रामविलास जी पासवान के खिलाफ किसी तरह की सीबीआई
जाँच नहीं करवाने जा रही है यानि मामला रफा-दफा?
मित्रों,क्या आपको भी
ऐसा लगता है कि ऐसे दागी लोगों को सरकार में रखकर मोदी बेदाग शासन दे सकते
हैं? मुझे तो ऐसा नहीं लगता क्योंकि ठीक ऐसी ही स्थिति सोनिया-मनमोहन की
सरकार में भी थी। तब भी दाग अच्छे हैं वेद वाक्य था और आज भी है फिर यह
सरकार कैसे गवर्नेंस विथ डिफरेंस हुई। तब भी तब की सरकार ने राष्ट्रमंडल
घोटाले में आरोपी शीला दीक्षित को राज्यपाल बनाया था और बनाए रखा था और आज
की सरकार भी शीला दीक्षित को हटा नहीं रही है बल्कि मोदी जी उनके साथ
गुपचुप मुलाकात कर रहे हैं। क्या श्री श्री मोदी जी बताएंगे कि उनके और
शीला आंटी के बीत क्या-क्या बातचीत हुई? क्या नरेंद्र मोदी ने शीला दीक्षित
को अभयदान दे दिया है? अगर हाँ तो क्या वे बताएंगे कि ऐसा उन्होंने किन
शर्तों पर किया है? प्रचंड बहुमत से बनी यह कैसी मजबूत सरकार है जो अपने
भ्रष्ट राज्यपालों को हटा भी नहीं सकती फिर चीन-पाकिस्तान के साथ यह सरकार
कैसे आँखों में आँखें डालकर बात करेगी। एक राज्यपाल हैं उत्तराखंड के
राज्यपाल कुरैशी जी जो राज्यपाल के पद को पिकनिक मनाने जैसा समझ रहे हैं और
रोजाना बिरयानी के जलवे लूट रहे हैं और बेहद संवेहनहीन होकर बलात्कार को
स्वाभाविक परिघटना बता रहे हैं। रोजाना सीमा पर पाकिस्तानी गोलीबारी में
हमारे सैनिक मारे जा रहे हैं और मोदी सरकार सार्क उपग्रह की परिकल्पना करने
में खोयी हुई है। क्या इसको कहते हैं आँखों में आँखें डालकर बात करना?
हेमराज पहले भी सीमा पर मारे जा रहे थे और आज भी मारे जा रहे हैं। पहले भी
तोगड़िया,ओबैसी,शिवसेना वगैरह बेलगाम थे और आज भी बेलगाम हैं। मोदी सरकार
के मंत्री जीतेन्द्र सिंह जिन्होंने सरकार गठन के तत्काल बाद संविधान के
अनुच्छेद 370 पर प्रश्नचिन्ह लगाया था अब संसद में ऐसा क्यों कह रहे हैं कि
सरकार के पास अनुच्छेद 370 में किसी तरह की तब्दीली का कोई प्रस्ताव नहीं
है? क्यों मोदी सरकार ने अभी तक दिन-प्रतिदिन गति पकड़ रहे उस पिंक
रिव्यूलेशन को रोकने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है जिसको बढ़ाने के
आरोप उन्होंने अपने चुनावी भाषण में लगातार लगाए थे? क्या अभी भी गोवंश के
मांस के निर्यात पर केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी जारी नहीं है?
मित्रों,कुल मिलाकर अबतक नरेंद्र मोदी सरकार वही सब कर रही है और वैसे ही
कर रही है जैसे कि मनमोहन सरकार चुनावों से पहले कर रही थी फिर कैसे समझा
जाए कि यह सरकार उससे अलग हटकर है? माना कि मोदी सरकार ने महँगाई को काफी
हद तक नियंत्रण में रखा है लेकिन क्या भारत की जनता ने सिर्फ 25 रुपये किलो
का प्याज और 20 रुपये किलो का आलू खाने के लिए मोदी को भारी बहुमत दिया
था? और अगर वही सब होना है जो अब तक होता आया है अथवा अगर मोदी सरकार को
आगे भी वैसे ही और वही काम करना है जो उसने पिछले दो महीनों में किया है तो
फिर अच्छे दिन तो आने से रहे अलबत्ता पहले से भी ज्यादा बुरे दिन जरूर
आनेवाले हैं देश की जनता के लिए भी और मोदी सरकार के लिए भी। जनता को सिर्फ
बंदरकूद जैसा प्रयत्न नहीं परिणाम चाहिए।
(
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)