: बढती महंगाई के विरुद्ध शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन : महंगाई की मार.. क्या यही हैं अच्छे दिन? : आये दिन बढती रोजमर्रा की वतुओं की कीमत से व्यथित होकर आज विभिन्न संगठनों के लोगों ने बनारस के काशी हिन्दू विश्व विद्यालय मुख्य द्वारा पर महगाई विरोधी धरना दिया. इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि नरेन्द्र मोदी का एक चुनावी वायदा था कि महंगाई कम करेंगे, किंतु हो उल्टा रहा है, अरहर दाल का दाम चार माह में ही रु. 100 प्रति किलोग्राम से बढ़कर रु. 150-160 हो गया है, यानी डेढ़ गुना से ज्यादा बढ़ोतरी। भला भारत का गरीब इंसान जिसका भोजन उसकी दिहाड़ी पर निर्भर है कैसे अपने बच्चों को दाल खिला पाएगा जो प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं। याद रखें कि भारत में आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। यानी जो कुपोषण का शिकार है वह अब भुखमरी का भी शिकार हो सकता है। आम इंसान यदि दाल छोड़ कर रोटी के साथ सिर्फ सब्जी खाना चाहे तो भी मुश्किल है। प्याज का दाम रु. 30-35 प्रति किलो से बढ़कर रु. 60, यानी दोगुना, हो गया है। रोटी के साथ प्याज खाना भी दूभर हो गया है। इसी तरह ज्यादातर सब्जियों के दाम भी करीब-करीब दोगुने हो गए हैं। ऐसा लगता है कि सरकार ने अंततः गरीबी खत्म करने का अनोखा तरीका खोज ही निकाला है - गरीब को ही खत्म कर दो!
इस क्रम में वक्ताओं ने चिंता जताई कि महंगाई की वजह से गरीब के लिए जीना कितना कठिन हो गया है यह कहीं बहस का मुद्दा ही नहीं है। बिहार चुनाव में भी इस पर चर्चा नही हुयी। इस ओर लोगों का ध्यान न जाए इसलिए दादरी जैसे कांड होते हैं ताकि जनता गाय के मांस की बहस में ही उलझी रहे। इसी प्रकार वाराणसी का मूर्ति विसर्जन विवाद यहाँ के विकास के लिए दिखाए गए झूठे सपनो से ध्यान हटाने के लिए बढ़ाया गया है.
आज किसान बेहाल है, उसको अपने उत्पाद की पूरी कीमत नहीं मिलती। सरकार की तरफ से जो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए वह दलालों के लगे होने के कारण नहीं मिलता। गर्मी में बेमौसम बरसात से फसल बरबाद हो गई। फिर समय से वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ा। सरकार ने किसानों को न तो फसल नुकसान होने का और न ही उन परिवारों को जिनके यहां किसी सदस्य ने आत्म हत्या कर ली ठीक से मुआवजा दिया। बीमा कम्पनियां तो कहीं नजर ही नहीं आईं। आखिर ये किसान का बीमा किस उद्देश्य से कराती हैं? अजीब विडम्बना है कि पैदा करने वाला तो कर्ज के बोझ में आत्म हत्या कर रहा है क्यों कि उसके उत्पाद का उसे ठीक से मूल्य नहीं मिल रहा और फिर भी उत्पाद का मूल्य बाजार में उपभोक्ता के लिए इतना महंगा कैसे? यह किसी से छिपा नहीं है कि व्यापारी वर्ग भाजपा का एक मजबूत समर्थक है। यानी अच्छे दिन आने के बाद मेहनत करने वाले की कीमत पर बिचैलियों की चांदी हो गई।
प्रमुख राजनैतिक पार्टियों और जन प्रतिनिधियों द्वारा भी महगाई को मुद्दा न बनाना आश्चर्यजनक दंगे से मुनाफाखोरो को लाभ पहुचाने में सहायता करने जैसा है, आम जनता द्वारा इसका प्रतिरोध आवश्यक हो गया है. धरना प्रदर्शन में गुमटी व्यवसायी कल्याण समिति, नेशनल हाकर्स फेडरेशन, सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया), लोक समिति, साझा संस्कृति मंच, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (उ.प्र.) से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता और विश्व विद्यालय के छात्र सम्मिलित रहे प्रमुख रूप से चिंतामणि सेठ, डा . संदीप पाण्डेय, उर्मिला पटेल, प्रदीप सिंह, धनंजय त्रिपाठी, राजेश्वरी देवी, डा आनंद तिवारी, प्रेमनाथ सोनकर, अस्पताली सोनकर, गोपाल यादव, नंदू सोनकर, नरेश साहू, महेंद्र राठोर, राम बाबू, छोटू जायसवाल, विनोद साहू, प्रकाश सोनकर, त्रिवेणी गुप्ता, मुन्नी देवी, बाबू सोनकर, अजीत आदि शामिल रहे.
चिंतामणी सेठ
अध्यक्ष गुमटी व्यवसायी कल्याण समिति
मो : 9450857038
दिनांक: 14.10.2015
प्रेस विज्ञप्ति
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