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28.12.15

जहरीली हवा से जूझ रहा बनारस, बच्चों पर सबसे ज्यादा खतरा Varanasi Battles Toxic Air; Children Most Vulnerable.


व्हीसल ब्लोवर ट्रस्ट की ओर से “बनारस का बदलता हुआ पर्यावरण और खतरे में बचपन” विषय पर पराडकर भवन में एक प्रेस वार्ता का अयोजन किया गया. इस प्रेस वार्ता को व्हीसल ब्लोवर ट्रस्ट द्वारा संचालित “केयर 4 एयर अभियान” की प्रबंधक एकता सिंह और शहर के जाने माने पर्यावरण प्रेमी और आशा ट्रस्ट के सदस्य वल्लभाचार्य पांडेय ने सम्बोधित किया. उपरोक्त विषय पर बोलते हुए अभियान की प्रबंधक एकता ने बताया कि दिल्ली के प्रदूषण स्तर की चर्चा करते हुए हमने बनारस के साथ साथ पुरे उत्तर भारत के प्रदूषण स्तर के बारे में न तो जरूरी चर्चा की है और न ही जरूरी कदम उठाये गये हैं. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी पी सी बी) की आधिकारिक वेबसाइट पर जारी होने वाला प्रति घंटे का आंकडा यह साबित करता है कि पूरे उत्तर भारत के साथ साथ ही हमारा शहर बनारस भी ज़बर्दस्त वायु प्रदूषण से पीडित है.


एकता ने इन आंकडों की विस्त्रित जानकारी देते हुए बताया कि “सी पी सी बी के अनुसार बनारस में पिछले 60 दिनों में प्रदूषण का जो स्तर रहा है, उसमें कूल 15 दिन खराब, 36 दिन बेहद खराब और 4 दिन बेहद चिन्ताजनक हालात रहे हैं.” (आंकडा 20 अक्टूबर से 20 दिसम्बर 2015 तक का). उन्होने बताया कि शहर की वायु में उपस्थित पार्टिकुलेट मैटर (छोटे और बडे, दोनों) के अलावा सल्फर डाइ आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, कारबन मोनो आक्साइड और कारबन डाइआक्साइड, ओज़ोन गैस सभी ने मिलकर खास तौर पर बच्चों और श्वांस सम्बंधि रोगों से जूझ रहे सभी आयु वर्ग के लोगों को खतरनाक स्थिति में डाल दिया है.

बच्चों पर पडने वाले असर के बारे में एकता ने बताया कि चुंकि बच्चे तेज़ सांस लेते हैं और उनकी प्रतिरोधक क्षमता अभी पूर्ण रूप से विकसित नही होती, इसलिये सांस के साथ अन्दर गये प्रदूषक उनके लिये ज़हर का काम करते हैं. यही कारण है कि आज कल ज्यादातर बच्चे छोटी उम्र से ही अस्थमा आदि श्वांस और फेफडे सम्बन्धि रोगों के शिकार हो रहे हैं.

इस विषय पर बोलते हुये वल्लभाचार्य पांडेय जी ने बताया कि 2.5 माइक्रोन के छोटे पार्टिकुलेट मैटर, जिन्हें पी एम 2.5 कहा जाता है, वे केवल छोटे धूलकण नहीं होते, बल्कि उनमे उद्योगों और परिवहन सेक्टर से उत्सर्जित विषाक्त कार्बनिक तत्व और भारी धातु मौजूद होते हैं. उन्होनें बताया कि एक स्वस्थ समाज में पी एम 2.5 का अधिकतम स्वीकार्य स्तर शून्य से लेकर 50 युनिट तक होता है, जबकि सी पी सी बी, जो कि भारत सरकार का ही नियामक है, की वेबसाइट के अनुसार बनारस में पी एम 2.5 कण 350 से लेकर 400 युनिट तक मौजूद है. इसके अलावा अन्य प्रदूषक तत्वों की मौजूदगी भी स्वीकार्य मात्रा से कई गुणा अधिक है, जिससे शहर के बच्चे रोज़ाना काल के गाल में समा रहे हैं.

श्री वल्लभाचार्य जी ने कहा कि बनारस में लगातार हरियाली कम होती जा रही है. नदियों-तालाबों पर अतिक्रमण कर लिया जा रहा है. सिंगरौली और सोनभद्र में लगातार जीवाश्म इंधन आधारित उद्योग और बिज़ली कारखाने बनाये जा रहे हैं और पहले से मौजूद कारखानों की क्षमता बढाई जा रही है. सडक बनाने के नाम पर अंधाधुध कटाई कराई जा रही है, जबकि जिला और राज्य शासन को दिल्ली से सीखते हुए सकारात्मक पहल करने की जरूरत है. अक्षय उर्जा साधनों में अधिक से अधिक निवेश करने की ज़रूरत है. आम जन से इस विषय पर जागरुकता दिखाने की अपील करते हुए उन्होनें कहा कि पर्यावरण केवल राज्य का मसला मानने के कारण ही आज यह आपातकलीन स्थिति आ गयी है. ऐसे में, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये सबसे अपील करते हुए उन्होंने कहा कि अपने अपने स्तर से प्रयास किये गये तो जल्द ही नतीजा भी दिखने लगेगा.

A press conference was called by the Whistle Blower Trust on the subject “Changing Environment of Varanasi and Childhood in Danger”, on 21 December 2015. The conference was attended by Ekta Singh, Program Manager of the Care4Air Campaign run by Whistle Blower Trust and the famous environment activist and ASHA Trust member, Vallabhacharya Pandey.

Speaking on the above issue, Ms Ekta said that the pollution levels in Delhi has eaten up our attention in such a way that the pollution levels of north India including Varanasi has not enjoyed even a marginal space in the public domain. The live data which is available online on the website of Central Pollution Control Board  (CPCB) is itself a proof that Varanasi, along with several other major north Indian cities like Lucknow and Patna, is suffering through critical air pollution levels. Citing the detailed information which is available to the general public on the official website, Ekta informed that Varanasi has undergone 15 days of poor air quality, 36 days of very poor and 4 days of critical air pollution levels, during last 60 days (data from 20 October, 2015 to 20 December 2015). According to her, besides the particulate matters (small and big, both) the air in Varanasi contains Sulpher Dioxide, Nitrogen Oxide, Carbon Mono Oxide and Dioxide and ozone gases. “These all together have made air in Varanasi lethal for people affected by cardiovascular and respiratory problems in all age groups, and especially for children.

She further added that child's lung, for example, grows most rapidly in the first two years of life and continues to grow until the late teen years. "Children tend to absorb pollutants more readily than adults do and retain them in their systems for a longer period, making them more susceptible,' says Ekta. Also, children breathe at a faster rate than adults. A three-year-old child, for example, takes in twice the amount of air that an adult inhales per kilogram of body weight. The risk to children is, therefore, far greater.

Talking to the press persons, Mr Vallabhacharya Pandey said that particulate matter of size 2.5 microns are not simple dust particles, rather they are constituted by toxic carbonic compounds and heavy metals, emitted by the Industries and transport sector[vi]. He informed that the acceptable limits for PM 2.5 particles in a healthy society ranges from 0 to 50 units, while in Varanasi, it is present from 350 to 400 units, according to the website of CPCB, which is a Central governments body. Besides PM 2.5, other pollutant materials are also present in Varanasi air much beyond acceptable units and this is why hundreds of children are undergoing critical treatments everyday in Varanasi, added Vallabhacharya.

He also cited the increasing deforestation in and around Varanasi as a major cause of pollution. “Not only deforestation, but the ongoing unbridled process of illegally acquiring of ponds and rivers by the land mafias in the city also aggravate the problem” adds Vallabhacharya. He appealed to the state administration that more and more investment should be made to clean energy mechanism and using fossil fuel must be discouraged. He also appealed to the general public that environment should not be taken as state matter only and people should start behaving like whistle blowers for the environment.

Issued By

Ravi Shekhar,
Program Manager,
Rights of Mother Earth Campaign
8127401252
www.wbtrust.blogspot.in

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