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20.7.19

बाबरी विध्वंस साजिश पर 9 माह में आएगा फैसला, विशेष जज एसके यादव को सेवा विस्तार

जे.पी.सिंह

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद  के बड़े नेताओं पर चल रहा मुकदमा 9 महीने में निपटाया जाएगा। उच्चतम न्यायालय  ने मामले की सुनवाई कर रहे लखनऊ के विशेष जज एस के यादव को सेवा विस्तार देते हुए केस के निपटारे की समय सीमा तय कर दी है।यादव 30 सितंबर को रिटायर होने वाले थे।कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया है कि वो उन्हें सेवा विस्तार देने का औपचारिक आदेश जारी करे।साथ ही साफ किया कि इस अवधि में जज सिर्फ इसी केस की सुनवाई करेंगे।

अप्रैल 2017 में उच्चतम न्यायालय  ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार समेत 14 नेताओं पर इस मामले में आपराधिक साजिश की धारा बहाल की थी।सीबीआई ने मूल अपील 21 नेताओं के खिलाफ थी।इनमें से सात नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं। कल्याण सिंह को फ़िलहाल राजस्थान का राज्यपाल होने के चलते मुक़दमे से छूट हासिल है। पीठ ने कहा था कि मामले में एक आरोपी कल्याण सिंह को राजस्थान के राज्यपाल होने के नाते संवैधानिक प्रतिरक्षा प्राप्त है लेकिन जैसे ही वह पद त्यागते हैं तो उनके खिलाफ अतिरिक्त आरोप दायर किए जाएंगे।

गौरतलब है कि 19 अप्रैल, 2017 को जस्टिस पी. सी. घोष और जस्टिस आर. एफ. नरीमन की  न्यायालय की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपमुक्त किए जाने के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर अपील की अनुमति देकर आडवाणी, जोशी, उमा भारती और 13 अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ साजिश के आरोपों को बहाल किया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए पीठ ने रायबरेली की एक मजिस्ट्रेट अदालत में लंबित अलग मुकदमे को भी स्थानांतरित कर दिया और इसे लखनऊ सीबीआई कोर्ट में आपराधिक कार्यवाही के साथ जोड़ दिया।उच्चतम न्यायालय ने माना था कि सिर्फ कुछ तकनीकी कारणों से मुकदमा लखनऊ और रायबरेली की अदालतों में अलग-अलग चल रहा है। इसी वजह से बड़े नेताओं से पर साज़िश की धारा भी नहीं लग सकी थी । 6 दिसंबर 1992 को हुई घटना का मुकदमा 25 साल तक खिंचने पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने 2 साल के भीतर इसे निपटाने का आदेश दिया था।

रायबरेली में जिन नेताओं पर मुकदमा चल रहा था उन पर आईपीसी की धारा 153ए  (समाज में वैमनस्य फैलाना), 153बी  (राष्ट्रीय अखंडता को खतरे में डालना) और 505 (अशांति और उपद्रव फ़ैलाने की नीयत से झूठी अफवाहें फैलाना) के आरोप हैं.। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद इसमें धारा 120बी (आपराधिक साज़िश) भी जोड़ दी गई थी।  अगर नेताओं पर पहले से चल रही धाराओं में दोष साबित होता है तो 120बी की मौजूदगी के चलते उन्हें अधिकतम 5 साल तक की सज़ा मिल सकती है।

जस्टिस आर. एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह निर्देश दिया कि जज 6 महीने में सुनवाई पूरी करेंगे और आज से 9 महीने के भीतर मामले में अपना फैसला देंगे। पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को यह निर्देश दिया है कि वो हाई कोर्ट से परामर्श कर जज के कार्यकाल को बढ़ाने के लिए एक नोटिफिकेशन जारी करे। हालांकि राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है इसलिए अदालत ये निर्देश जारी कर सकती है।

गौरतलब है उच्चतम न्यायालय ने 15 जुलाई को एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से यह पूछा था कि किस तरह विशेष जज का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है ताकि वो 6 महीने में ट्रायल पूरा कर सकें। विशेष जज का कार्यकाल 30 सितंबर, 2019 तक ही है। दरअसल विशेष जज एस. के. यादव ने मई में लिखे एक पत्र में शीर्ष अदालत को इस बारे में सूचित किया था कि वह 30 सितंबर, 2019 को सेवानिवृत हो रहे हैं जबकि इस ट्रायल को पूरा होने में अभी 6 महीने लगेंगे। पीठ ने कहा था कि ये हाई प्रोफाइल मामला है और इस ट्रायल को उसी जज द्वारा पूरा किया जाना चाहिए। पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ऐश्वर्या भाटी से यह पूछा था कि आखिर किस तरह विशेष जज का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए कोई कानूनी प्रावधान हो तो वो भी बताया जाए।



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