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14.7.19

कर्नाटक का संकट : न्यायपालिका और स्पीकर के संवैधानिक अधिकारों को लेकर पेंच फंसा

जे.पी.सिंह
कर्नाटक के राजनीतिक संकट को लेकर एक बार फिर न्यायपालिका और स्पीकर के संवैधानिक अधिकारों को लेकर पेंच फंस गया है। कर्नाटक संकट पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने सवाल किया कि क्या विधानसभा अध्यक्ष को उच्चतम न्यायालय के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है?इस पर कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि अध्यक्ष का पद संवैधानिक है और बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए पेश याचिका पर फैसला करने के लिए वह सांविधानिक रूप से बाध्य हैं।

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि स्पीकर का संवैधानिक दायित्व अनुच्छेद 190 (3) (बी) के तहत यह सुनिश्चित करना है कि विधायकों के इस्तीफे स्वैच्छिक और वास्तविक हों। बागी विधायक त्यागपत्र देकर अयोग्यता से बचने का प्रयास कर रहे हैं। सिंघवी ने कहा कि अध्यक्ष को इस बात की जांच करनी है कि क्या संविधान की अनुसूची 10 के तहत दलबदल विरोधी धारा के अनुसार उन्होंने अयोग्य ठहराया जाए, जोकि जल्दबाजी में नहीं किया जा सकता।मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि आपकी दलील है कि उच्चतम न्यायालय को इस मामले में सुनवाई का अधिकार नहीं है। क्या आप कोर्ट के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं? सिंघवी ने इस पर कहा कि नहीं, ऐसा नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि  क्या आपका यह कहना है कि इस्तीफे से पहले अयोग्यता तय करने के लिए आप संवैधानिक रूप से बाध्य हैं?सिंघवी ने कहा  कि आपने बिल्कुल सही समझा। दो विधायकों ने अयोग्यता प्रक्रिया शुरू होने के बाद इस्तीफा दिया। 8 विधायकों ने यह प्रक्रिया शुरू होने से पहले इस्तीफा दिया। परंतु उन्होंने इस्तीफा खुद आकर नहीं दिया।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ कर्नाटक संकट पर विधान सभा अध्यक्ष और कांग्रेस तथा जेडीएस के बागी विधायकों की याचिकाओं पर सुनवाई की।10 बागी विधायकों के इस्तीफों के मामले में फैसला करने का निर्देश देने के उच्चतम न्यायालय के गुरुवार के आदेश के खिलाफ कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष के. आर. रमेश की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सवाल किया।

कर्नाटक के राजनीतिक संकट के मामले में उच्चतम न्यायालय  ने 16 जुलाई तक यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है । यानी स्पीकर तबतक न तो बागी विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेंगे और न ही अयोग्यता के मसले पर। कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर को विधायकों के इस्तीफे पर फैसले के लिए 16 जुलाई तक का वक्त दिया है। उसी दिन अगली सुनवाई होगी। बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि उनके इस्तीफे के मामले को लंबित रखने का मकसद उन्हें पार्टी व्हिप के प्रति बाध्यकारी बनाना है।

सिंघवी ने कहा कि स्पीकर विधानसभा के बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं और वह संवैधानिक नियम-कानूनों को जानते हैं। इस तरह उनकी छवि के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। सिंघवी ने कहा कि स्पीकर को पहले विधायकों के डिस्क्वॉलिफिकेशन पर फैसला लेना है। यह उनका कर्तव्य है और इसका उन्हें अधिकार है।

सिंघवी ने सवाल उठाया कि क्या स्पीकर को इस तरह का आदेश दिया जा सकता है कि आप इतने समय में यह काम करो। सिंघवी ने कहा कि बागी विधायकों ने स्पीकर के लिए आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया। उनके लिए भगोड़ा शब्द का इस्तेमाल किया गया और कहा गया कि लुकाछिपी का खेल रहे हैं।

मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि याचिका "राजनीतिक रूप से प्रेरित" है जिसमें अनुच्छेद 32 के तहत हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है। स्पीकर की तथाकथित देरी से किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है। धवन ने यह तर्क दिया कि हालांकि अदालत असाधारण परिस्थितियों में स्पीकर के निर्णय की समीक्षा कर सकती है, लेकिन निर्णय होने से पहले ही वह अध्यक्ष को निर्देश जारी नहीं कर सकती।

लेखक जेपी सिंह इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार हैं.



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