ललित कला अकादमी नामक संस्थान भारत सरकार का वह सफ़ेद हाथी है जहाँ करोड़ों रुपये अध्यक्ष के घूमने एवं दान कार्य में लगाए जाते हैं. वर्तमान अध्यक्ष के चयन प्रक्रिया में सभी नियम ताक पर रख दिए गए.
अध्यक्ष महोदय ने इस संस्थान को गर्त की ओर धकेलना शुरू कर दिया है. पुराने हटाए गए कर्मचारी फिर से काम पर लगा दिए गए हैं. नियमों को तोड़ मरोड़ कर कला की सेवा में स्वार्थसेवा हो रही है.
अध्यक्ष का कृपापात्र बनकर कुछ भी करवाया जा सकता है. कला गतिविधि की आड़ में स्वार्थपूर्ति बड़े धन से की जा सकती है. दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारति चुनाव आज तक नहीं करवाए गए. कोई लोकतान्त्रिक प्रक्रिया नहीं है.
“नजदीक आओ और धन पाओ योजना” के अंतर्गत सरकारी धन से कला सेवा हो रही है.
अध्यक्ष महोदय ने आते ही श्री धर्म सिंह यादव नामक पदाधिकारी को सेवानिवृति के बाद भी अनान फानन में नियुक्त करा दिया जबकि पूर्व अध्यक्ष ने श्री यादव को भ्रष्टाचार के कारण निलंबित किया था और उसका केस अभी भी चल रहा है.
पूर्व मंत्री ने सीबीआई जाँच शुरू करवाई और वांछित अधिकारी श्री मेहरा को निलंबित भी किया परन्तु अध्यक्ष महोदय ने उनको भी काम पर बुला कर बागडोर सौंप दी है. अन्य कई हटाए गए लोग भी बुला लिए गए हैं. संविदा पर बड़े अधिकारी भी लगाए जाने लगे हैं. एक ठेकेदार ने अध्यक्ष, उनके अधिकारियों पर पैसे मांगने का आरोप लगा दिया है जिस पर मंत्रालय में जाँच हो रही है.
जाने क्या होगा इस संस्थान का?
इस बीच श्री राजन फुलेरी सचिव नियुक्त किये गए परन्तु उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और भ्रष्टाचार की शिकायत मंत्रालय से की. परन्तु ढाक के तीन पात. अध्यक्ष महोदय पर तो एक बड़े नेता का वरदहस्त है, मंत्रालय क्या कर लेगा?
अध्यक्ष महोदय ने तो संस्कृति मंत्री श्री पटेल को ही मंच से सुना दिया कि उनका मंत्रालय काम नहीं करने देता. संस्कृति मंत्री ने लीगल ऑडिट की बात भी कही परन्तु वह बात भी दबा दी गई. शायद मंत्री महोदय इस संस्थान के पुराने इतिहास को नहीं जानते.
श्रीकांत पांडेय नामक एक कलाकार ने पहले श्री अशोक वाजपयी की कृपा से पटना कला कैंप के लिया 12 लाख एवं 32 लाख का खर्च दिखाया. इस पर मंत्रालय ने आपत्ति की और आज तक हिसाब पूरा नहीं हुआ. उनको कला दीर्घा समिति में लगा दिया गया है.
बताया जाता है कि भांति भांति तरीके से कलादीर्घा को चूना लगाया जा रहा है.
भयंकर कला सेवा हो रही है इस संस्थान में. कलाकार बाहर हैं और भ्रष्ट लोग अंदर हैं.
प्रधानमंत्री जी, कुछ तो ध्यान दीजिये इस संस्थान पर… कहीं देर न हो जाये!
ललित कला अकादमी को लेकर काफी कुछ अखबारों में भी छप चुका है. देखें-
अध्यक्ष महोदय ने इस संस्थान को गर्त की ओर धकेलना शुरू कर दिया है. पुराने हटाए गए कर्मचारी फिर से काम पर लगा दिए गए हैं. नियमों को तोड़ मरोड़ कर कला की सेवा में स्वार्थसेवा हो रही है.
अध्यक्ष का कृपापात्र बनकर कुछ भी करवाया जा सकता है. कला गतिविधि की आड़ में स्वार्थपूर्ति बड़े धन से की जा सकती है. दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारति चुनाव आज तक नहीं करवाए गए. कोई लोकतान्त्रिक प्रक्रिया नहीं है.
“नजदीक आओ और धन पाओ योजना” के अंतर्गत सरकारी धन से कला सेवा हो रही है.
अध्यक्ष महोदय ने आते ही श्री धर्म सिंह यादव नामक पदाधिकारी को सेवानिवृति के बाद भी अनान फानन में नियुक्त करा दिया जबकि पूर्व अध्यक्ष ने श्री यादव को भ्रष्टाचार के कारण निलंबित किया था और उसका केस अभी भी चल रहा है.
पूर्व मंत्री ने सीबीआई जाँच शुरू करवाई और वांछित अधिकारी श्री मेहरा को निलंबित भी किया परन्तु अध्यक्ष महोदय ने उनको भी काम पर बुला कर बागडोर सौंप दी है. अन्य कई हटाए गए लोग भी बुला लिए गए हैं. संविदा पर बड़े अधिकारी भी लगाए जाने लगे हैं. एक ठेकेदार ने अध्यक्ष, उनके अधिकारियों पर पैसे मांगने का आरोप लगा दिया है जिस पर मंत्रालय में जाँच हो रही है.
जाने क्या होगा इस संस्थान का?
इस बीच श्री राजन फुलेरी सचिव नियुक्त किये गए परन्तु उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और भ्रष्टाचार की शिकायत मंत्रालय से की. परन्तु ढाक के तीन पात. अध्यक्ष महोदय पर तो एक बड़े नेता का वरदहस्त है, मंत्रालय क्या कर लेगा?
अध्यक्ष महोदय ने तो संस्कृति मंत्री श्री पटेल को ही मंच से सुना दिया कि उनका मंत्रालय काम नहीं करने देता. संस्कृति मंत्री ने लीगल ऑडिट की बात भी कही परन्तु वह बात भी दबा दी गई. शायद मंत्री महोदय इस संस्थान के पुराने इतिहास को नहीं जानते.
श्रीकांत पांडेय नामक एक कलाकार ने पहले श्री अशोक वाजपयी की कृपा से पटना कला कैंप के लिया 12 लाख एवं 32 लाख का खर्च दिखाया. इस पर मंत्रालय ने आपत्ति की और आज तक हिसाब पूरा नहीं हुआ. उनको कला दीर्घा समिति में लगा दिया गया है.
बताया जाता है कि भांति भांति तरीके से कलादीर्घा को चूना लगाया जा रहा है.
भयंकर कला सेवा हो रही है इस संस्थान में. कलाकार बाहर हैं और भ्रष्ट लोग अंदर हैं.
प्रधानमंत्री जी, कुछ तो ध्यान दीजिये इस संस्थान पर… कहीं देर न हो जाये!
ललित कला अकादमी को लेकर काफी कुछ अखबारों में भी छप चुका है. देखें-
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