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25.12.19

ऐसे तो और भड़केगा सीएए और एनआरसी के खिलाफ हो रहा आंदोलन

सी.एस. राजपूत

नई दिल्ली। किसी भी लोकतांत्रिक देश में जब माहौल बिगड़ता है तो उस देश की सरकार का दायित्व बनता है कि वह किसी भी तरह से माहौल को शांत करे। जब बात किसी मांग की होती है और आंदोलन राष्ट्रव्यापी हो तो सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है कि वह उस आवाज को सुने। केंद्र में काबिज मोदी सरकार है कि हर आवाज को डंडे के बल पर दबाने पर आमादा है। यही वजह रही कि देश में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में हो रहे राष्ट्रव्यापी आंदोलन को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष के उकसावे के बाद मुस्लिमों के उपद्रव के रूप में लिया है।

हालांकि झारखंड विधानसभा चुनाव में आए परिणाम से इस आंदोलन का मतलब भाजपा की समझ में आ गया होगा। नई दिल्ली रामलीला मैदान से हुई भाजपा की रैली में यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण की समीक्षा करें तो वे आंदोलन को नता की आवाज मानने को कतई तैयार नहीं। पूरे भाषण में वह आंदोलन के लिए विपक्ष विशेषकर कांग्रेस को कोसते रहे। इस आंदोलन को वह जनता का न मानकर विपक्ष के उकसावे में मुस्लिमों का मानकर चल रहे हैं। देश में हुए हिंसक प्रदर्शनों के लिए उन्होंने आंदोलनकारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए पुलिस का बचाव किया।

प्रधानमंत्री की नजरों में वह सब ठीक है जो उन्होंने किया है या फिर कर रहे हैं। उन्होंने रैली में विपक्ष को उनकी कमी निकालने की चुनौती भी दी। हिंसक प्रदर्शन में मरे या घायल हुए आंदोलनकारियों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई। उन्हें बस पुलिस ही पीड़ित नजर आई। पुलिस के पक्ष में उन्होंने रैली में अपने समर्थकों के नारे भी लगवाए। यदि अब तक मोदी के कार्यकाल की समीक्षा की जाए तो देखने को मिलता है कि मोदी अंग्रेजी हुकूमत की तर्ज पर देश को चला रहे हैं। अंग्रेज भी भारत की जनता पर पुलिस के बल पर राज कर रहे थे और मोदी भी। अंग्रेजों ने भी पुलिस को पूरी छूट दे रखी थी और मोदी ने भी। वैसे तो यह राष्ट्रव्यापी आंदोलन है पर पूर्वोत्तर के बाद सबसे अधिक हिंसक प्रदर्शन दिल्ली और उत्तर प्रदेश में हुआ है।

आंदोलन से निपटने की बात करें तो जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आंदोलन को डंडे के बल पर कुचलने के संकेत दिये हैं वहीं उत्तर प्रदेश में योगी सरकार भी पुलिस बल का इस्तेमाल कर आंदोलन को दबाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने सरकारी नुकसान की भरपाई आंदोलनकारियों की संपत्ति बेचकर करने की बात कही है। मतलब साफ है कि चाहे केंद्र सरकार हो या फिर भाजपा की राज्यों की सरकारें कोई इस आंदोलन को जनता की आवाज मानने को तैयार नहीं। इन परिस्थितियों में भले ही आंदोलन थोड़ा थम सा गया हो पर आने वाले समय में इसके और भड़कने की आशंका बलवती हो गई है।

वैसे भी जिस तरह से भाजपा ने देश के हर जिले में रैली करने के अलावा 250 से अधिक प्रेस क्रांफ्रेंस करने की बात कही है। लगभग तीन करोड़ परिवारों से मिलने की भाजपा की योजना बताई जा रही है। उससे पूरे देश में माहौल खराब करने का की व्यवस्था खुद सरकार ने ही कर दी है। जब हर जिले में भाजपा की रैली होगी तो जहां भाजपा के समर्थक जुटेंगे, वहीं विरोधी के जुटने की भी पूरी संभावना है। ऐसे में टकराव बढ़ने की पूरी आशंका हो जाएगी। वैसे भी देश में जहां नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में आंदोलन हो रह है वहीं इसके पक्ष में भी आंदोलन होने शुरू हो गये हैं। एक और विरोध में हो रहा आंदोलन तो दूसरी ओर पक्ष में। साथ ही विभिन्न जिलों में रैलियां और प्रेस कांफ्रेंस मतलब माहौल शांत होने के बजाय और खराब होने की पूरी व्यवस्था राजनीतिक दलों ने कर दी है। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का यह शासन करने का तरीका है। वह खराब हुए माहौल को शांत करने के बजाय उसे भड़काते हैं। इस तरह के मामले में गोदरा कांड बड़ा उदाहरण है।

चाहे नोटबंदी हो, जीएसटी हो, धारा 370 हटाने का मामला हो, राम मंदिर निर्माण के पक्ष में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला हो, एनआरसी हो या फिर अब नागरिकता संशोधन कानून हर मामले में कितना भी बवाल मचा पर प्रधानमंत्री मोदी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। मतलब जनता की भावनाएं का मोदी राज में कोई मतलब नहीं है। उनका अपना एजेंडा है। उनका प्रयास होता है कि बस किसी तरह से लच्छेदार भाषण देकर भावनात्मक मुद्दों में उलझा दिया जाए। देश की जनता ने भी ऐसी भांग पी रखी है कि उसे हिन्दू-मुस्लिम के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है।

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे आंदोलन को बड़े स्तर पर लोग मुस्लिमों के आंदोलन के रूप में देख रहे हैं, जबकि दिल्ली आंदोलन में गिरफ्तार हुए भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर के जेल जाने की बात हो। योगेद्र यादव, सीताराम येचुरी की गिरफ्तारी हुई हो। या फिर विभिन्न प्रदेशों से विभिन्न पार्टियों के नेताओं की गिरफ्तारी। अधिकतर मामलों में हिन्दू नेता गिरफ्तार हुए हैं। मतलब इस आंदोलन में जहां मुस्लिमों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया है वहीं दलित और पिछड़ों की संख्या भी कम नहीं है। ऐसा नहीं है कि सवर्ण इस आंदोलन में शामिल नहीं हो रहे हैं। मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ बड़े स्तर पर सवर्ण नेताओं के अलावा आम लोग भी इस आंदोलन में शामिल हुए हैं।

हां वह बात दूसरी है कि भाजपा अपनी आईटी सेल के साथ ही अपने समर्थकों से इस आंदोलन को हिन्दू-मुस्लिम का रूप देने में लगी है। इस आंदोलन की अब तक की यह विशेषता रही है कि भाजपा के तमाम प्रयास के  बावजूद यह आंदोलन अभी तक हिन्दू-मुस्लिम में नहीं बदला है। चाहे विभिन्न विश्विद्यालयों में चल रहा प्रदर्शन हो, दिल्ली की जामा मस्जिद पर हुआ प्रदर्शन हो।

पूर्वोत्तर में हुआ प्रदर्शन हो या फिर उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर, वाराणसी, बिजनौर में हुआ प्रदर्शन हो। हर प्रदर्शन में सभी वर्गों से लोग शामिल रहे हैं। हां इतनी बात जरूर है कि यदि सत्ता पक्ष इस आंदोलन को विपक्ष का रचाया गया परोपैगेंडा समझ रहा है तो विपक्ष भी आंदोलन में राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है। 

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