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24.12.19

यूपी में हिंसाः पीएफआई लम्बे समय से था सक्रिय मगर सुरक्षा तंत्र आंख मूंदे रहा

                                              अजय कुमार, लखनऊ
उत्तर प्रदेश में प्रतिबंद्धित एवं विवादित संगठन ‘स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आॅफ इंडिया’(सिमी) और उससे जुड़ा संगठन ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ (पीएफआई) एक बार फिर से राज्य में अपने पैर पसार रहा हैं। सिमी और पीएफआई  दिल्ली में मोदी और यूपी में योगी सरकार बनने के बाद से राज्य के मुसलमानों को कथित भय दिखाकर उकसाने में लगे हैं तो रिहाई मंच, बामसेफ, आईसा, नागरिक एकता पार्टी और शराब मुक्ति मोर्चा जैसे विवादित संगठनों की भी सक्रियता में तेजी देखी गई। चाहें तीन तलाक पर कानून बनाने की बात हो या फिर अयोध्या पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला अथवा गौरक्षा के नाम पर यदाकदा हुईं माॅब लीचिंग की घटनाओं ने इन संगठनों को ‘उर्जा’ प्रदान की तो नागरिकता संशोधन बिल की आड़ में इन संगठनों ने उत्तर प्रदेश को दंगा-आगजनी की आग में झोंक दिया। प्रतिबंद्धित संगठन को गैर भाजपा दलों के नेताओं के विवादित बयानों ने भी खूब फलने-फूलने का मौका दिया। वैसे,खुफिया सूत्र बताते हैं कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी यूपी में बवाल और हिंसा के लिए ‘जमीन’ तैयार की गई थी,लेकिन उस समय खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलांे की अति-सक्रियता के कारण इनके मंसूबे कामयाब नहीं हो पाए थे। उस समय तमाम मुस्लिम धर्मगुरू भी परिपक्तता दिखाते हुए लगातार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करने और शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील  करते दिखाई दिए थे,लेकिन नागरिकता संशोधन बिल के पास होने के समय करीब-करीब सभी मुस्लिम धर्मगुरूओं और बुद्धिजीवियों ने मुसलमनों को समझाने की बजाए ‘आग में घी डालने’ का काम ज्यादा किया।

खुफिया जांच एजेंसियों की रिपोर्ट पर विश्वास किया जाए तो पीएफआई ने तीन तलाक बिल और अनुच्छेद 370 के विरोध के बहाने यूपी के मुस्लिम बहुल इलाकों में  पैठ बनानी शुरू कर दी थी, अयोध्या फैसले के बाद इन संगठनों की यूपी में गतिविधियां काफी बढ़ गईं थीं,लेकिन इसे किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। वैसे, यह पहला मौका नहीं था, कट्टर विचारधारा की समर्थक पीएफआई की गतिविधियों कई बार संदेह के घेरे में आ चुकी है। अबकी भी देश की सुरक्षा एजेंसिया इस संगठन पर नजर रखे थीं। लखनऊ में पैठ बना चुके पीएफआई ने 27 जुलाई 2019 को इन्दिरानगर की पंतनगर में भड़काऊ पोस्टर लगाए थे। विवादित पोस्टर हटवाने के बाद जांच को ठण्डे बस्ते मेें डाल दिया गया था। पुलिस और एलआईयू चूक का ही नतीजा था कि 19 दिसंबर को उपद्रवी शहर के कई इलाकों में हिंसा फेलाने में सफल हो गए। नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में जब दिल्ली के जामिया मिल्लिया विवि में हुई ंिहंसक प्रदर्शन के बाद 15 दिसंबर की रात लखनऊ के नदवा काॅलेज में छात्र एकजुट हुए थे,तो इसमें भी पीएफआई की भूमिका पर सवाल उठे थे। वही, 16 दिसंबर छात्रों और पुलिस के बीच भिंडत हुई थी। घंटों चलें हंगामें के बीच गुडम्बा स्थित इंटीग्रल विवि के छात्रों ने भी जमकर उपद्रव किया था।

उक्त घटनाओं कें बाद भी पुलिस और एलआईयू ने मामले को गम्भीरता से नहीं लिया,लेकिन खुफिया एजेंसियां सोशल मीडिया की तेजी के सामने पिछड़ गईं। सोशल मीडिया पर 19 दिसंबर को परिवर्तन चैक पर प्रदर्शन के आहृवान का इनपुट मिलने के बाद प्रदेश में धारा 144 लागू करते हुए प्रदर्शन को रोकने के प्रयास किए जाने लगे। 18 दिसंबर की रात एसएसपी कलानिधि  नैथानी की तरफ से बयान जारी की कई लोगोें को नजरबंद किए जाने का दावा किया गया। इसके बाद भी पीएफआई, रिहाई मंच, बामसेफ, आईसा, नागरिक एकता पार्टी और शराब मुक्ति मोर्चा की अगुवाई में प्रदर्शकारी परिवर्तन चैक तक पहुंच गए,जिन्हंें भारी तादाद में लगाई गयी फोर्स भी नही रोक सकी। हजरतगंज के साथ ही पीएफआई के अराजक तत्वों ने हसनगंज के मदेयगंज, हुसैनाबाद के ठाकुरगंज और सतखण्डा इलाके में भी हिंसा भड़काने में अहम किरदार अदा किया। मगर, पुलिस इस साजिश को भी समय रहते भांपने में नाकामयाब रही। अगर पुलिस सतर्क रहती तो उपद्रवियों पर पहले ही लगाम लगाई जा सकती हैं

हालात यह थे कि हिंसक प्रदर्शन की अगुआई करने वाले पीएफआई संगठन के खिलाफ बाराबंकी, सीतापुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ और बिजनौर में वर्ष 2010 से दिसंबर 2019 तक कुल 10 मुकदमे दर्ज किए गए हैं। वहीं, लखनऊ पुलिस की लापरवाही का आलम यह था कि भड़काऊ पोस्टर लगे मिलने के बाद भी इस संगठन के खिलाफ इन्दिरानगर और विकासनगर पुलिस ने रिपोर्ट तक नहीं लिखी थी। दूसरी ओर उक्त संगठनों द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर प्रदर्शन को सफल बनाने के प्रयास किए जा रहे थे। वहीं, लखनऊ पुलिस के साइबर सेल और वालेंटियर्स भड़काऊ पोस्ट डालने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की चेतावनी दे रही थी। फेसबुक, ट्विटर और व्हाटसएप ग्रुप पर प्रदर्शन में शामिल होने के लिए मैसेज भेजे जा रहे थे। मगर, पुलिस इन्हें भी ट्रैप नहीं कर सकी।

बहरहाल, अब लखनऊ समेत यूपी के कई शहरों में हुई हिंसा में भूमिका सामने आने के बाद संगठन पर प्रतिबंध की तलवार लटक रही है। झारखंड सरकार संदिग्ध गतिविधियों के कारण इस संगठन को पहले ही बैन कर चुकी है। केंद्र ने भी संगठन को बैन करने के लिए सभी राज्यों से खुफिया एजेंसियों के जरिए रिपोर्ट मांगी है। डीजीपी मुख्यालय केंद्र को पहले ही रिपोर्ट भेज चुका है। जल्द केंद्र को रिमाइंडर भेजा जाएगा। सूत्र बताते हैं कि समय-समय पर विवादित बयानों वाले विडियो वायरल करने वाले पीएफआई  की अयोध्या फैसले के बाद दक्षिण भारत के शहरों में बैठकें हुईं थीं। इस दौरान संगठन से जुड़े नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर आपत्तिजनक व विवादित बयान दिए। इसके विडियो सोशल साइट्स पर मौजूद हैं। खुफिया एजेंसियां इस संगठन की गतिविधियों पर लगातार नजरें बनाए हुए थी। पीएफआई ने 30 सितंबर को दिल्ली में जनाधिकार सम्मेलन बुलाया था। जिसमें यूपी के कई संगठनों के लोग बड़ी संख्या में जुटे थे।
सूत्र बताते हैं कि पीएफआई और इससे जुड़े लोग बीते दो वर्ष से लखनऊ, बाराबंकी, बहराइच, हरदोई, लखीमपुर खीरी और सीतापुर में काफी सक्रिय हैं। संगठन ने इन शहरों में पत्थरबाजी से जुड़े पोस्टर कई जगह लगवाए, लेकिन पुलिस आंखें मूंदे रही। संगठन से जुड़े दिल्ली के एक बड़े वकील ने लखनऊ में आकर भड़काऊ बयानबाजी की। रमजान की अलविदा नमाज के दौरान पीएफआई के लोगों ने लखनऊ में टीले वाली मस्जिद और बाराबंकी के फतेहपुर में पर्चे बंटवाए और मस्जिद के बाहर चादर फैलाकर फंड भी जुटाया। इसके अलावा पीएफआई से जुड़े लोगों ने कुर्सी रोड स्थित भाखामऊ के निजी शिक्षण संस्थान, बाराबंकी में महादेवा के पास, कुर्सी और अमरसंडा में, बहराइच के जरवल में कई नुक्कड़ सभाएं कीं और पर्चे बांटे।

बात पीएफआई की कार्यशैली की कि जाए तो यह संगठन जिलों के  अपंजीकृत मदरसों (मकतब) और गरीब मुस्लिमों के इलाकों को टारगेट करता रहा है।मदद के बहाने उसने इन मदरसों के बीच पैठ बनाई, लेकिन पुलिस शांत रही। बाराबंकी व सीतापुर पुलिस ने जरूर पीएफआई के खिलाफ मुकदमे दर्ज करवाए। अयोध्या फैसले से पहले पीएफआई से जुड़े दो अहम नेताओं के अनुच्छेद 370 और तीन तलाक को लेकर विडियो वायरल हुए थे। पीएफआई पश्चिम उत्तर प्रदेश के शामली, बिजनौर, मुजफ्फरनगर,मेरठ,मुरादाबाद,हापुड़,सहारनपुर, गाजियाबाद, अलीगढ़ में काफी सक्रिय है। इन सभी जिलों में पीएफआई के 50 से 60 सदस्य लोगों को संगठन से जोड़ने में लगे हुए हैं। यहां संगठन ने जिला कार्य समितियां बनाकर पदाधिकारियों की भी नियुक्ति कर रखी है। इसके अलावा कानपुर व वाराणसी में भी संगठन के लोग काफी सक्रिय हैं। पीएफआई और इसके सदस्यों के खिलाफ बाराबंकी, सीतापुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर व मेरठ में कई मुकदमे दर्ज हैं। इनमें कुछ मामलों में पुलिस ने जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट भी लगा दी है।

पीएफआई की मजबूती क्या है। यह जानने के लिए यह समझना जरूरी है कि  पीएफआई के साथ कई ऐसे लोग जुड़े हैं, जो अतीत में प्रतिबंधित संगठन सिमी का अहम हिस्सा रहे हैं और अभी भी पर्दे के पीछे से सक्रियता बनाए हुए हैं। इनमें सबसे अहम नाम है केरल का पी. कोया। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, पी. कोया सिमी, एनडीएफ और पीएफआई का फाउंडर सदस्य रहा है। कोया पीएफआई से जुड़े एक अहम संगठन नैशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन से भी जुड़ा है। इसके अलावा वह पीएफआई की नैशनल एग्जिक्यूटिव काउंसिल का भी सदस्य है। वर्तमान में पीएफआई का चेयरमैन ई. अबुबकर भी सिमी का सचिव रहा है। केरल का प्रदेश अध्यक्ष नसीरुद्दीन सिमी का भी प्रदेश अध्यक्ष रहा है। पीएफआई का पूर्व चेयरमैन ईएम अब्दुल रहमान सिमी का राष्ट्रीय महासचिव रहा है। केरल में पीएफआई का प्रदेश सचिव अब्दुल हमीद सिमी का प्रदेश सचिव था।

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में राजधानी में 19 दिसंबर को हुई हिंसा के बाद हिंसा के साजिशकर्ताओं स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) और रिहाई मंच के बाद अब पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआइ) के सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद ‘दूध का दूध,पानी का पानी’ होने लगा है। लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने बताया कि 20 दिसंबर को पीएफआइ के प्रदेश अध्यक्ष वसीम अहमद को गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ में पीएफआइ के प्रदेश कोषाध्यक्ष बाराबंकी निवासी नदीम और डिवीजन प्रेसीडेंट अशफाक की संलिप्तता का पता चला। इन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया है। दोनों आरोपितों ने कई वाट्सएप ग्रुप बना रखे थे। चैट के जरिए दोनों ने लोगों को 19 दिसंबर को परिवर्तन चैक पहुंचने की बात कही थी। दोनों के घर से पुलिस ने सीएए और एनआरसी का विरोध किए जाने की 26 तख्ती, 29 झंडा, 100 पर्चे व 36 पेपर कटिंग, भड़काऊ साहित्य, पोस्टर और सीडी बरामद की गई है। देखना यह है कि पुलिस पूरे घटनाक्रम के लिए जिम्मेदार लोगों को अंजाम तक पहुंचा पायेगी या हमेशा की तरह कुछ दिनों के बाद ढुलमुल नजर आने लगेगी।

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