सी.एस. राजपूत
नई दिल्ली। झारखंड का विधानसभा चुनाव एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे आंदोलन के बीच हुआ है। आंदोलन सही था या फिर गलत इसका निर्णय बहुत हद तक झारखंड चुनाव के परिणाम से भी होना था। इतना ही नहीं मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल के कारनामे भी इस आंदोलन में समाहित थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी झारखंड चु नाव प्रचार में धारा 370 धारा का हटाना, तीन तलाक पर बिल लाना, राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो जाना, ये सभी अपनी उपलब्धियों का बखान झारखंड चुनाव प्रचार में किया।
यह परिणाम इसलिए भी महत्व रखता है क्योंकि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ चल रहे आंदोलन को भाजपा जनता की आवाज मानने को तैयार नहीं है। भाजपा अब भी इस आंदोलन को विपक्ष द्वारा उकसाया गया मुस्लिमों का आंदोलन मानकर चल रही है। यही वजह रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली रामलीला मैदान से आंदोलन को विपक्ष विशेषकर कांग्रेस द्वारा प्रायोजित बताया। हालांकि केंद्र सरकार ने विरोधियों से सुझाव मांगे हैं पर मोदी सरकार जो कुछ कर रही है वह सब सही मानकर चल रही है।
झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम में हेमंत सोरेन की अगुआई वाला महागठबंधन ने 41 के जादुई आंकड़े को पार कर लिया है।
मलतब झारखंड में भी भाजपा का सत्ता से बाहर हो चुकी है। महाराष्ट्र के बाद अब झारखंड में भी बीजेपी सत्ता से बाहर हुई है। मतलब एक साल में भाजपा ने छह प्रदेश खोये हैैं।
ज्ञात हो कि मार्च 2018 में 21 राज्यों में बीजेपी या उसके सहयोगियों की सरकार थी लेकिन दिसंबर 2019 आते-आते यह आंकड़ा सिमटकर 15 राज्यों तक पहुंच गया है। जो लोग प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी के कार्यकाल को सराह रहे हैं उन्हें भाजपा की गत साल की स्थिति देख लेनी चाहिए औेर आज की भी। मतलब साफ है कि गत साल में ही झारखंड समेत पांच राज्य भाजपा के हाथ से निकल चुके हैं।
ज्ञात हो कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी नरेंद्र मोदी की अगुआई में प्रचंड बहुत के साथ केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई थी। वह मोदी की बढ़ती लोकप्रियता ही थी कि इसके बाद तो बीजेपी एक के बाद एक राज्यों के चुनावों में फतह हासिल करती गई। 2014 में बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए की सिर्फ 7 राज्यों में सरकार थी।
यहां से बीजेपी के चरम की शुरुआत हुई। पार्टी एक के बाद एक राज्यों को फतह करती चली गई। उसी साल हुए महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत का परचम लहराया था। जब 2017 में कांग्रेस और सपा के गठबंधन के साथ ही बहुजन समाज पार्टी को शिकस्त देते हुए भाजपा ने देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण प्रदेश उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ फतह हासिल की तो बीजेपी का आत्मविश्वास सातंवें आसमान पर था। यही वजह थी कि 2018 आते-आते 21 राज्यों में भगवा रंग की पताका लहरा गई। इन राज्यों में या तो बीजेपी की सरकार थी या फिर उसके गठबंधन वाली सरकार।
एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ चुनाव बाद तेजी से गिरा बीजेपी का ग्राफ : मार्च 2018 में जहां 21 राज्यों में बीजेपी की सरकार थी, वहीं साल बीतते-बीतते तस्वीर तेजी से बदली। भले ही इसमें किसान आंदोलन का बहुत बड़ा योगदान रहा हो पर 2018 के आखिर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो करीब डेढ़ दशकों से पार्टी का एकछत्र राज था।
हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पहले से भी बड़ी जीत हासिल कर 303 सीटें जीतीं तो भाजपा फिर से बौराने लगे। केंद्र में एक बार फिर मोदी सरकार बनने के बाद अक्टूबर में हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आए।
महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला लेकिन सीएम पद को लेकर ऐसी पेच फंसी कि सूबा बीजेपी से छिटक गया और शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे एनसीपी-कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि, हरियाणा में बीजेपी किसी तरह जेजेपी के साथ हाथ मिलाकर सत्ता बरकरार रखने में कामयाब हो गई। अब 2019 बीतते-बीतते झारखंड भी बीजेपी के हाथ से फिसल गया है।
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