CHARAN SINGH RAJPUT-
वैसे तो मौजूदा हालात में लगभग सभी दल कॉरपोरेट घरानों के लिए राजनीति कर रहे हैं। पर भाजपा ने इन सबके रिकार्ड तोड़ दिये हैं। भाजपा का तो मैनिफेस्टो भी पूंजपीतियों के हिसाब बनता है। तभी तो देश की जनता की स्थिति बद से बदतर होती जा ही है और प्रधानमंत्री मोदी के करीबी अडानी और अंबानी ग्रुप मालामाल होते जा रहे हैं।
खुद अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ने हेडलाइन टुडे चैनल को दिये गये इंटरव्यू में स्वीकार किया है कि भाजपा का एजेंडा उनके हिसाब से बना था। मतलब यह मोदी सरकार के बनने से पहले तय हो चुका था कि गौतम अडानी को किस क्षेत्र में कितना फायदा पहुंचाना है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या भाजपा शासित राज्यों में भी अडानी के हिसाब से मैनिफेस्टो बना था ? तभी तो भाजपा शासित एयरपोर्ट के रखरखाव की जिम्मेदारी अडानी ग्रुप को दी गई है।
प्रधानमंत्री की शपथ लेने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी का नाम गौतम अडानी के साथ जुड़ गया था। गौतम अडानी को मोदी सरकार ने बड़ा तोहफा देते हुए देश के पांच बड़े एयरपोर्ट को चलाने की जिम्मेदारी सौंप दी थी। छह एयरपोर्ट चलाने के लिए बाकायदा बोली लगाई गई थी, इस बोली में 6 में से 5 पर एकतरफा अडानी ग्रुप ने जीत हासिल की। जयपुर, अहमदाबाद, लखनऊ, मेंगलुरु और त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट ऐसे ही अडानी ग्रुप को थोड़े ही मिले थे।
ये एयरपोर्ट्स अब अडानी ग्रुप के पास अगले 50 साल तक होंगे। मतलब सरकार किसी की भी आये अडानी का यह कारोपार फलता फूलता रहेगा। यानि इन एयरपोर्ट को इनको कैसे चलाना है, रख-रखाव कैसे करना है इसका अधिकार अडानी ग्रुप के पास होगा।
अडानी के इस बयान तो स्पष्ट हो चुका है कि नये किसान कानून भी अडानी के हिसाब से बनाये गये हैं। कांट्रेटिंग फार्मिंग के लिए हजारों एकड़ जमीन पर अडानी ग्रुप के गौतम मोदी सरकार के बनने से पहले ऐसे ही नहीं बन गये थे। मतलब देश की खेती पर अडानी ग्रुप का कब्जा करने के लिए भाजपा ने यह षड्यंत्र रचा है। प्रधानमंत्री मोदी के उन्हें व्यक्तिगत फायदा पहुंचाने के बारे में अडानी ने मोदी का पक्ष लेते हुए कहा कि वह किसी का पक्ष नहीं लेते हां कारोबार के लिए वह माहौल जरूर देते हैं। मतलब जनता के लिए भले ही मरने का माहौल दें पर कारोबारियों पर मोदी पूरी तरह से मेहरबान रहते हैं। भ्रष्टाचार मुक्त भारतÓ के नारे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार पर लगातार गुप्त घोटाले और अपने करीबियों को फायदा पहुँचाने के आरोप ऐसे ही नहीं लगते रह हैं।
दरअसल २०१४ मोदी सरकार बनने के बाद गौतम अडानी की कंपनी की संपत्ति में 230 फीसदी का हिजाफा हुआ है। फाइनेंसियल टाइम्स की एक खबर के मुताबिक 2014 के बाद लगातार गौतम अडानी की कंपनी आगे बढ़ी और बनती चली गई।
यह अपने आप में आश्चर्य की बात है कि कोरोना महामारी में हर कोई आर्थिक रूप से टूटा है पर अडानी और अंबानी की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
आज की तारीख में जब हम हम उद्योग जगत के लोगों की व्यक्तिगत बात करते हैं तो देश के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी ने मोदी के पहले कार्यकाल में ही अपनी संपत्ति दोगुनी से भी ज्यादा कर ली थी। उनकी संपत्ति 118 फीसदी उछाल के साथ 1.68 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 3.65 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुकी थी। 2019 में जारी हुई फोबर्स इंडिया लिस्ट के हवाले से बनाए गए चार्ट में गौतम अडानी के मामले में तो उछाल और भी ज्यादा था। उनकी संपत्ति में 121 फीसदी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी। अडानी की संपत्ति मोदी के पहले कार्यकाल में ही 50.4 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 1.1 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुकी थी। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र की मोदी की दोस्ती का ही कमाल था कि 2014 में वे 11वें सबसे अमीर भारतीय थे और 2019 में अडानी दूसरे नंबर पर पहुंच चुके थे।
देश के ये दोनों पूंजपीति प्रधानमंत्री मोदी और सत्ता से निकटता के लिए जाने जाते हैं। निकटता इतनी कि रिलायंस टेलीकॉम सर्विस की जियो के लॉन्च इवेंट के लिए प्रधानमंत्री मोदी का पूरे पेज का विज्ञापन आया था। दरअसल अडानी के मोदी से तबसे संबंध हैं, जब वे मुख्यमंत्री हुआ करते थे। लेकिन मोदी के नई दिल्ली आते ही अडानी की किस्मत ने भी खूब उछाल मारी।
फोबर्स इंडिया लिस्ट का चार्ट देखने से पता चला था कि केवल दो दूसरे लोग, कोटक महिंद्रा बैंक के उदय कोटक और एवेन्यू सुपरमार्केट द्वारा प्रायोजित डी मार्ट हायपरमार्केट चैन के मालिक राधाकिशन दमानी ने ही बड़ी छलांग लगाई थी। एवेन्यू सुपरमार्केट का 2018-19 में कुल राजस्व 2.7 बिलियन डॉलर रहा था।
अडानी और अंबानी के साथ ही उदय कोटक को भी सरकार की पसंद माना जाता है। उन्हें 2018 में सरकार नियंत्रित 'बोर्ड ऑफ कोलेप्सड इंफ्रास्ट्रक्चर फायनेंसिंग ग्रुप, ढ्ढरु&स्नस्" का चेयरमैन बनाया गया था।
यह मोदी का कॉरपोरेट घरानों के प्रति प्यार ही था कि जहां जनता पर दुनियाभर के टैक्स लादे जा रहे हैं वहीं मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही कॉरपोरेट टैक्स को 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी कर दिया था। इससे सरकार को लगभग 1.45 लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ था।
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