Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

28.12.12

गांधीजी की लाठी और दिल्ली पुलिस-ब्रज की दुनिया

मित्रों,कहते हैं कि जब हमारे कथित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मरे तो उनके पास से सिर्फ तीन चीजें बरामद हुईं-सत्य,अहिंसा और लाठी। सत्य जो दुनिया के सत्यानुरागियों को दिलासा देता था कि अंत में जीत तुम्हारी ही होगी भले ही तुझे रोज मर-मर कर जीना पड़े। अहिंसा दूसरों पर अत्याचार न करने की शिक्षा देती थी और लाठी इन दोनों के लड़खड़ाते हुए पावों को सहारा देती थी। सत्य और अहिंसा चूँकि उनके राजनैतिक उत्तराधिकारियों के किसी काम के नहीं थे इसलिए उन्हें उन्होंने तत्काल कूड़ा समझकर दूसरे देशों के आंगन में फेंक दिया जिसे उनमें से कई देशों के कई लोगों ने गले से लगा लिया और इस तरह दुनिया में कई मार्टिन लूथर किंग,नेल्सन मंडेला और सू की का जन्म हुआ। बच गई लाठी सो उसके तीन टुकड़े किए गए। पहले टुकड़े को लूट लिया नेताओं ने,दूसरे टुकड़े पर कब्जा जमाया प्रशासन ने और तीसरा टुकड़ा हाथ आया आम जनता के।
           मित्रों,तभी से महान भारतवर्ष की महान जनता ने धर्म-अधर्म संबंधी पूर्वजों के विचारों पर विचार करना छोड़ दिया और देश में जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत ने व्यावहारिक रूप से जन्म लिया। इसी लाठी की सहायता से हमारे नेता पिछले 65 सालों से जनता को भड़का और हड़का रहे हैं कुल मिलाकर हाँक रहे हैं और जनता भी आज्ञाकारी भेंड़ की तरह उनकी बातों में आती रही है। इस लाठी के गुणों से हमारे मध्यकालीन पूर्वज भी भलीभाँति परिचित थे तभी तो गिरिधर कवि ने इस महान अस्त्र-शस्त्र के सम्मान में कुछ यूँ कसीदे गढ़े थे-
लाठी में बहुत गुण है सदा राखिये संग,
सदा राखिये संग झपटी कुत्ते को मारे;
दुश्मन दावागीर मिले तिनहुँ को झारे,
कहे गिरिधर कविराय सुनो हे धुर के बाटी,
सब हथियारन को छोड़ के हाथ में लीजै लाठी।
आजकल सोनपुर मेले में भी सबसे ज्यादा बिक रही है यही लाठी। इससे यही सत्य भलीभाँति स्थापित हो रहा है कि बिहार के लोग बातों के या पैसों के धनी भले ही नहीं हों लाठी के धनी जरूर हैं। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि हमारे यहाँ लालूजी जैसे पूजनीय महापुरूष हुए हैं जिन्होंने लाठी को 15 सालों तक खूब तेल पिलाया है भले ही जनता को उनके शासन-काल में पेट की आग बुझाने के लिए दूसरे राज्यों का रूख करना पड़ा हो। जनता की कड़ाही और सिर में भले ही तेल की एक बूंद भी न हो लालूजी की टूट चुकी लाठी में आज भी खूब तेल मालिश हो रही है।
              मित्रों,परन्तु लाठी का सर्वाधिक मोहक स्वरूप तो तब उभरकर दुनिया के सामने आया जब वह भारतीय पुलिस के हाथों की शोभी बनी। आजकल लोग बेवजह दिल्ली पुलिस को भला-बुरा कह रहे हैं क्योंकि वे यह भूल गए हें कि इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस पूरी तरह से निर्दोष है दोषी है तो गांधीजी की प्यारी लाठी। अन्य राज्यों की पुलिस की तरह दिल्ली पुलिस भी पूरी तरह से निरपेक्ष भाव से काम करती है। उसको क्या पता कौन पीड़क है और कौन पीड़ित। वह बेचारी तो निष्काम भाव से बल-प्रयोग करती है यह देखना तो इस निगोड़ी लाठी का काम है न कि वह सिर्फ दोषियों पर ही प्रहार करे। यह लाठी ही है जिसने पोस्टमार्टम करनेवाले डॉक्टर से विवादास्पद रिपोर्ट तैयार करवाया। वो कहते हैं न कि लाठी के डर से तो भूत भी काँपता है फिर डॉक्टर तो बहुत मामूली शह है। उसको अपने ऊपर आईपीसी की सारी धाराएँ एकसाथ थोड़े ही ठोकवानी थी सो बेचारे ने जैसा भी पुलिसिया लाठी ने कहा लिख दिया। न तो एक हर्फ कम और न तो एक हर्फ ज्यादा। बुरा किया या भला किया जिन्दा और सही-सलामत रहेंगे तभी न कभी फुरसत में सोंच सकेंगे। हमारी पुलिस अगर सलीम अल्वी जैसे पूर्वप्रमाणित विवादास्पद झूठे गवाहों को पालती है तो इसमें भी उसका क्या दोष? गांधी के सत्य को क्या पुलिस ने दूसरे के आंगन में इस तरह से भँजाकर फेंका था कि वह फिर से वापस भारत में आ ही न सके? अब तो उसने सुभाषचंद्र तोमर को अस्पताल पहुँचानेवाले योगेन्द्र तथा पाउलिन की राजनैतिक पृष्टभूमि की झूठी जाँच भी शुरू कर दी है। हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर दोनों का संबंध बहुत जल्दी माननीय शिंदे साहब के संदेहानुसार नक्सलियों से स्थापित कर दिया जाए और वे दोनों कैमरे के सामने खुद ही अपने टूटे-फूटे मुँह से इसे कबूल भी कर लें। यहीं पर तो लाठी की नंगई वाला असली गुण आप अपनी नंगी आँखों से देख सकते हैं। यह लाठी ही तो है जो सच को सफेद झूठ और झूठ को सफेद सच में बदल देती है। निर्दोषों को सजा दिलवा देती है और दोषियों को लाल बत्ती।
             मित्रों,मेरे पास इस समय आपके लिए भी मुफ्त की एक नायाब सलाह उपलब्ध है-हो सके तो आपलोग कुछ महीनों के लिए दिल्ली की यात्रा न करें। अगर आप दिल्ली में ही रहते हैं तो नए साल का स्वागत घर में ही कर लें हरगिज इंडिया गेट की ओर न जाएँ क्योंकि ऐसा करने पर संभव है कि आपको सरे राह चलते दिल्ली पुलिस मिल जाए और आपपर सीधे देशद्रोह का मुकदमा चला दिया जाए। हो सकता है आपको इस दुस्साहस के लिए बालपन के बाद पहली बार ब्रह्मसोंटा उर्फ दुःखहरण बाबू का अलौकिक स्वाद भी चखना पड़े। दोस्त जब एक जिंदा लाश प्रधानमंत्री,एक पागल गृहमंत्री और एक महामूर्ख पुलिस चीफ हो तो आपके साथ कभी भी,दिल्ली में कहीं भी,कुछ भी हो सकता है। एक बार दिल्ली पुलिस के चंगुल में फँसे तो मानवाधिकार तो क्या आप शर्तिया यह भी भूल जाएंगे कि आपका नाम क्या है और आपको सिर्फ वही याद रह जाएगा जो आपको लाठी याद करवाएगी,गांधीजी की अहिंसक लाठी।

2 comments:

प्रेम सरोवर said...

सामयिक प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

ब्रजकिशोर सिंह said...

धन्यवाद प्रेम भैया निश्चित रूप से मैं आपके नए पोस्ट का रसास्वादन करना चाहूंगा।