टीवी एंकर को पत्रकार से जमूरे बनने में समय नहीं लगता और न ही देश के टैलेंट को बंदर-बंदरिया बनाकर नचाने में। लगभग सारे न्यूज चैनलों ने लत पाल लिया है कि मौका चाहे जो भी हो, रियलिटी शो में शामिल बच्चों को अपने स्टूडियो में ले आओ और फिर शुरु कर दो वही सब करना जो मीका और राखी को बुला कर करते हैं।
आप इन बच्चों की बातों को जरा गौर से सुनिए आपको कहीं से नहीं लगेगा कि अब ये बच्चे रह गए हैं, उम्र के पहले ही इतने मैच्योर हो गए हैं कि जब असल में मैच्योर होने की उम्र आएगी तो जानने-समझने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं। सारेगम के हॉस्ट आदित्य ने आठ साल की लड़की के अच्छा गाने पर अपनी गर्लफ्रैंड मान लिया है और एंकर इसे मजे से पूछती है कि तुम्हें क्या लगता है। बच्ची का जबाब है, इस बारे में आप आदि से ही बात करें। इधर उसी उम्र के एक बच्चे को रिचा भा गई है जो कि उम्र में 15-16 साल बढ़ी होगी। संयोग से आइबीएन 7 की इस एंकर का भी नाम रिचा है तो वो अपने बारे में भी पूछ लेती है कि मेरे बारे में क्या ख्याल है, मैं ऋचा कि वो ऋचा। बच्चे का जबाब है दोनो। लीजिए अब समझिए और समझाइए परस्त्री और एक के रहते दूसरी नहीं वाला फंड़ा।
मैं ये नहीं कह रहा कि इन चैनलों ने ही इन्हें इस तरह की बातें और जबाब देने को कहा होगा लेकिन इस ओर मानसिकता बनाने में चैनलों का कम हाथ नहीं है। अब बताइए आपको क्या जरुरत पड़ गयी है कि आप आठ साल के बच्चे से ये पूछें कि कौन गर्लफ्रैंड मैं या वो वाली ऋचा। कभी आपके दिमाग ये बात आती है कि इसका इस कोमल मन पर क्या असर होगा। आपको तो बस बकते रहना है और आधे घंटे के लिए बुलाए हो तो उसे दुह लेना है। कभी नहीं पूछते कि तुम इतना आगे आ गए अपने उम्र के लोगों के बारे में क्या सोचते हो और उनके लिए क्या कुछ करना चाहते हो।
मैं जब भी स्कूल के बच्चों से खासकर दिल्ली के बच्चों से मिलता हूं तो आठ साल, दस साल के बच्चों की उलझनों को सुनकर परेशान हो जाता हूं। थोड़ी देर तो अपनी पढ़ाई-लिखाई की बात करता है लेकिन जब मैं उससे खुलने लगता हूं तो बताता है कि कैसे उसकी कोई गर्लफ्रैंड नहीं होने पर और बच्चे उसका मजाक उड़ाते हैं। मतलब बच्चे की कोई गर्लफ्रैंड नहीं है तो उसकी कोई पर्सनालिटी ही नहीं है। दस साल का एक बच्चा, मेयो कॉलेज, अजमेर में पढ़ता है। रोते हुए बताने लगा कि सब खत्म हो गया भइया, मेरा तो ब्रेकअप हो गया। बताइए दस साल, बारह साल में बच्चे ब्रेकअप को झेल रहे हैं और उनमें जिंदगी के प्रति एक अजीब ढ़ंग का असंतोष है। एक ने कहा क्या होगा अब पढ़कर और नंबर लाकर, जिसके लिए पढ़ता रहा साली वो ही दगा दे गई।इसी उम्र में डिप्रेशन, जिंदगी के प्रति अरुचि। कितनी खतरनाक स्थिति हैं।
टीवी चैनल टैलेंट हंट के दौरान स्टेज पर अफेयर को खूब खाद-पानी देते हैं और अपने हीमेश जी एक बंदे को प्यार के लिए प्रमोट करते हैं, उसके प्यार की खातिर वोट मांगते हैं। क्यों भाई, क्या साबित करना चाहते हो आप। कभी ब्च्चों के उपर इसका सोशियोलॉजिकल स्टडी किया कि आपके इस छद्म कल्चर को बढ़ावा देने से बच्चों पर क्या असर पड़ता है। इसी बीच जब कोई बच्चा सोसाइड कर ले तो फिर न्यूज चैनलवाले विशेषज्ञों की पूरी पैनल बिठा देगें। कभी अपने उपर भी रिसर्च कर लो।अच्छी बात है कि आप देश भर में भटक-भटककर बच्चों को खोजते हो, उसे ट्रेंड करते हो लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि टीवी की दुनिया में घुसते ही वो बच्चा रह ही न जाए, उसका बचपन ही चला जाए। और इधर जो बच्चे टीवी से बाहर हैं वो अपने को किसी लायक समझे ही नहीं। उसके दिमाग में बस एक ही बात चलती रहे कि चुन लिए जाते तो खूब सारी गर्लफ्रैंड मिलती और फिर ऐश......। पढ़ने से क्या मिल जाएगा, इस कॉन्सेप्ट को इतनी बरहमी से मत बढ़ाओ, आपको कोई अधिकार नहीं है कि आप देश के इन नौनिहालों का भविष्य इतना डार्क बना दें।
28.1.08
मैं ऋचा आइबीएन 7 से, मुझसे प्यार करोगे
Labels: गाहे-बगाहे की भसर
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7 comments:
वैसे अगर एक आध पैराग्राफ बदल दिए होते तो पढने में थोडी आसानी होती :)
सौरभ
पोस्ट अच्छी लगी!
उपाय क्या है इस गर्त में जाती हुई पीढ़ी के लिये ???
vineet Bhai sahi kahin.
mushkil hai kathin.
Bachch tab tak ye sawal sahin.
jab tak chanel bale bachcha rahin.
ये बहुत ही अच्छा लेख था....
यदि देश का भविष्य संवारना है तो इस लेख को ध्यान से पढ़ें और जो कुछ बन पड़े वो करें...
GOOD ONE
बहुत सही बात है. मेरा तो मानना है बच्चों को समय से पहले जवान किया है चैनलों ने ही. शायद टीवी वलों गर्ल्फ्रैन्ड/ब्याइफ्रेंड के अलावा कुछ दिखता ही नहीं...
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