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13.1.08

जो न्योता भेजे वो खुद न आए

कल मैं भी पहुंच दिल्ली ब्लागर मीट में। साथ में विनीत कुमार, डीयू वाले। हम दोनों हिंदी सर्च इंजन रफ्तार डाट काम के डायरेक्टर पीयूष जी की कार पर लद लिए। गुड़गांव पहुंचे तो अंदर मीटिंग स्थल पर पहुंचने में पसीने छूट गए। जाने कितनी बार घूमना पड़ा। घुमरीपरौता वाला खेल खेलने के बाद जब पहुंचे तो देखा लोग भकोस रहे हैं। मतलब टी वाला टाइम हो गया था। और फिर शुरू हुआ सत्र। अभिषेक बक्शी नामक सज्जन ने बड़े प्यार से घंटा भर अंग्रेजी में बोल कर पका दिया। वो जाने क्या समझा रहे थे, ब्लागिंग के बारे में, लोग समझ भी रहे थे क्योंकि न समझते तो सवाल कैसे पूछते। पर मैंने समझने की कोशिश नहीं की। यहां तो अंग्रेजी को सुनने या समझने की कोई मजबूरी तो थी नहीं सो मैंने अभिषक का भाषण समझने से चुपचाप इनकार कर दिया। फिर करें क्या?

कोक की एक बोतल उठाई और गटागट पीने लगा। एक तो भयानक ठंड और उपर से कोक। थोड़ी ही देर में पूरे शरीर में झुरझुरी होने लगी। भागा आग की तरफ। दो तीन मजूर लोग आग जला के घेरे बइठे थे। उनके साथ हो लिया और उनसे पूछा आप लोग भी ब्लागर हो। वे तीनों एक दूसरे का मुंह देखने के बाद दांत निपोर दिये।

थोड़ी देर में सफर ब्लाग वाले राकेश भी आग तापने आए।

अभिषेक का सत्र खत्म हुआ तो अशोक चक्रधर जी ने हिंदी में बोलकर जान में जान डाली। लोगों को हंसाया। काफी बातें की। माइक्रोसाफ्ट की जय जय भी की। ब्लागिंग की जय की। पर हिंदी ब्लागरों की बेहद कम संख्या पर चिंता भी जताई।

उनके बाद ओपेन सेशन शुरू हुआ और ये सत्र आग के इर्द गिर्द कुर्सी लगाकर गोल गोल बैठकर शुरू हुआ। सभी को राहत मिली। एक तो आग से ठंड कम होने की राहत। दूजे गोल गोल बैठने से एक दूसरे की शक्ल देखने की प्रसन्नता। लेकिन आयोजक लोग बैठे नहीं। वो लोग गोलाइ में ही हम लोगों के पीछे घूम घूम कर माइक से अंग्रेजी झाड़ते रहे। उनसे विनती की, भइया, बैठ जाओ, जब आए हैं तो भागेंगे नहीं और दूसरे इतनी जल्दी भी क्या है सब समझा देने की। और वो भी अंग्रेजी में।

मुझे अंत तक समझ में नहीं आया कि मीटिंग क्यों रखी गई थी। पर वहां जाने से फायदा ये हुआ कि हिंदी के कई ब्लागरों के दर्शन हो गए। सृजन शिल्पी, भारतीयम, सफर जैसे ब्लाग के रचयिता को देख पाया। वहीं मैथिली जी और सिरिल भी थे। उनसे भी बातचीत हुई। अपने आरकुटी मित्र प्रत्युष रंजन भी मिले। शैलेश भारतवासी भी दिखे।

और गोल गोल राउंड होने के दौरान ही हम लोग निकल लिये।

पर वहां जो कुछ दिक्कतें समझ में आईं वो ये थी कि एक तो आयोजन बहुत दूर था। दूजे अंग्रेजी में ज्यादा तामझाम था। तीजे ब्लागर असहज महसूस कर रहे थे। चौथे जो आयोजक थे वे किसी एमएनसी के एक्जीक्यूटीव ज्यादा दिख रहे थे, ब्लागर कम। पांचवें, जिन्होंने मुझे न्योता भेजा, अमित गुप्ता ने, वे खुद नहीं आये।

बढ़िया ये रहा कि ब्लागिंग को न्यू मीडिया के रूप में मान्यता मिलने से इस विधा पर बड़ी कंपनियों और बड़े लोगों की नजर पड़ती दिख रही है। जाहिर है, इससे ब्लागरों की महत्ता बढ़ेगी।

ब्लाग मीटिंग के बारे में असली रिपोर्ट डीयू के विनीत कुमार गाहे बगाहे वाले लिखेंगे, उन्होंने वादा किया हुआ है। इसलिए मैं ज्यादा गहराई में और विस्तार में जाने की बजाय मोटामोटी बातों का जिक्र कर अपनी बात खत्म कर रहा हूं।

जय भड़ास
यशवंत

3 comments:

Srijan Shilpi said...

अमित तो कल सुबह से ही अचानक तेज बुखार से पीड़ित होने की वजह से नहीं आ पाए। यदि आते तो शायद वहां के माहौल में हिन्दी हाशिये पर सिमटी न रही होती। वहां प्रभासाक्षी वाले अपने बालेन्दु जी भी थे, लेकिन उन्हें आयोजकों ने मंच दिया ही नहीं। वे भी एनडीटीवी को एक बाइट देकर कट लिए, चक्रधर जी का सत्र शुरू होने से पहले ही।

ख़ैर, जब वहाँ गया था तो एक रपट मैं भी लिखता हूं आज।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा ,ब्लागिंग को भी कानूनी चड्ढी पहना दें तो बकैती में चैलेंज आ जायेगा और जर्नलिज्म का विकास सही अर्थ में जर्नोलाजी के रूप में हो पाएगा और रही बात छपास की प्यास बुझने की तो दीन पत्रकारॊं के लिये तो ये गंगोत्री है ।

अविनाश वाचस्पति said...

यशवंत जी बात आपने वहां भी सोलह आने सच कही थी यहां चौबीसों आने सच लिखी है। जो आपने महसूस किया उससे अधिक मैंने और सुभाष नीरव ने भोगा। वो तो आपसे डेस्टीनेशन मालूम हो गया, अविनाश मोहल्ले ने जब आपका मोबाइल नंबर दिया तो आपने पता बताया। हमें वहां पहुंचाने में आपका योगदान रहा। वहां हिंदी लाने में आपका योगदान रहा। अब पता लगा कि आग सुलगवाने में भी आपका योगदान था। आपको शत शत बार नमन है। इसी तरह लगे रहें। विस्तृत प्रतिक्रिया बाद में। मेरा कम्प्यूटर नाराज चल रहा है।