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5.1.08

हकीकते हिंदोस्तान

हकीकते हिंदोस्तान
झूठा सच है,अधूरा ख्वाब है,
क्या कहें तुमसे जिंदगी अजा़ब है ।
भूख में गरीबी में हर तडपती साँस में,
जिंदगी सवाल है,तो मौत ही जवाब है ।
इस मुल्क में सुना है इंसान बेहिसाब है,
रियासतों में भुखमरी,नेता यहाँ नवाब है ।
वहशतों के दौर में बढा रहे हैं हाथ जो,
जुर्म हर सफे पे है,मुल्क ऐसी किताब है ।
मुशकिलातों के सफ़र में ये हुक्मरान अजी़ब हैं
घर तो है पर छत नहीं और बारिश बेहिसाब है ।
सोनें का था जो चमन अब क्यों वीरान है,
मुरझा चुका है फूल ये तुम कहते हो गुलाब है ।
बदलेगें तस्वीर मुल्क की कह रहे थे जो कभी
,रह रहें है महलों में वो वाह क्या इंकलाब है ।
अनुराग अमिताभ

2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

घर तो है पर छत नहीं और बारिश बेहिसाब है ।
वाह...बहुत खूबसूरत मिसरा है...देश के हालात पर तल्ख़ बयानी से रंगी बेहतरीन रचना...बधाई.
नीरज

अनुराग अमिताभ said...

धन्यवाद नीरज जी ईज्जत अफज़ाई के लिए शुक्रिया विश्वास रखें दुष्यंत का एकलव्य हूँ नेताऔ की माँ बहन करता रहूँगा ।