जबसे सूचना प्राप्ति के अधिकार का कानून प्रकाश में आया तो हम जैसे लिबलिबे लोगों को लगने लगा कि हमारे लिये रीढ़ की हड्डी के इम्प्लांटेशन की व्यवस्था सरकार ने कर दी है पर जब मैंने इसके अंतर्गत जानकारी लेने की प्रक्रिया शुरू करी तो लगा कि अब तो बस भ्रष्टाचार का खुलासा होगा और हम बन जाएंगे सोशल हीरो ,देश का कायाकल्प हो गया समझो जनाब । दिन बीतते चले गये और हम बीच बीच में छाती फुला कर नगर परिषद भवन में जाकर हूल-पट्टी देते रहते थे कि अब भ्रष्टाचार का खुलासा होगा और तुम लोग नई नौकरी तलाश लो । समय बीता हमारी अधीरता में भी हम एक सप्ताह ऊपर झेल गये ,फिर अपील ठोंक दी कि जानकारी नही मिली ;जब तक अपील की सुनवाई हो इस बीच एक नगर परिषद का चपरासी हमारे घर आकर कुछ कागज़-पत्तर माताजी को दे गया कि डाक्टर साहब को दे देना इन कागजों को, इन्हीं के लिए वो प्राण दिए दे रहें हैं ।
अपील की तारीख आ गयी तो हमें लगा कि बस आज मेरे देश की हालत बदल जाएगी । अपील अधिकारी के सामने जाने पर लगा कि यदि ढीढता के क्षेत्र में नोबल पुरुस्कार दिया जाता तो यह आदमी उसका प्रबल दावेदार होता । मैंने रिरियाते हुए कहा कि जनाब इन्होंने सूचना विलंब से दी तो उसने कहा कि यार बिजली नहीं रहती है इसलिए थोड़ा भी धीरज नहीं रख सकते ,अब जानकारी मिल तो गयी है न करो जो करना है । मैंने कहा कि जनाब भ्रष्टाचार हुआ है साफ़ दिख रहा है तो मान्यवर बोले भ्रष्टाचार दूर करवाना मेरे कार्यक्षेत्र से बाहर है ,आगे बढो । विधायिका , कार्यपालिका , न्यायपालिका और प्रेस के अलावा एक और खम्भा हमारे लोकतंत्र की इमारत में जुड़ा है वह है "माफ़िया" । न्याय प्रणाली का पालन करवा पाने में शास्त्र बाध्य नहीं कर पा रहें हैं तो क्या शस्त्र का आदिम तरीका ही अपनाना उचित है ? भ्रष्टाचार ने विधायिका , कार्यपालिका , न्यायपालिका और प्रेस सबको घेर रखा है । क्या करें मानसिकता नहीं बदल रही है । कुछ उपाय सुझाइये अगर किसी के पास हो तो ।
12.1.08
क्या करें........?
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1 comment:
भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वाले को ही अब संदिग्ध नजरों से देखा जाने लगा है और कई बार तो लोग उसे इस दुनिया का प्राणी ही नहीं समझते। ऐसे में जब पूरे कुएं में भांग पड़ी हो, किससे न्याय की अपेक्षा कर सकते हैं हम लोग? शायद हम आप जैसे लोग मिलकर ही जो सामूहिक आवाज उठाएंगे उससे कुछ असर हो तो हो।
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