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8.1.08

हमारे हरिवंश, आपके हरिवंश, यानी हम सबके हरिवंश जी

तो जनाबे हाजरीन. जो पढ रहे हैं उनको नमस्कार और प्राथमिक धन्यवाद कि भाइयों आपने समय निकाला, लेकिन धन्यवाद भी क्यों दें आपको एक शख्सियत से मुलाकात करवाने का वादा किया था सो हाजिर हूं और आपकी भी उनमें श्रद्धा है सो आप हाजिर हुए हैं भडास पर. इसलिए धन्यवाद वापस लेता हूं... चलिए बिना किसी इधर उधर की कहे सीधे मुद्दे पर आते हैं... कद पांच फीट दो इंच.. रंग सांवला... चेहरा भरा हुआ जिसे गोल भी कह सकते हैं... आंखें चमकदार... चेहरे पर अभी थोडी तल्खी है जो जल्द ही गायब हो जाएगी और इसकी जगह होगी एक रहस्यमयी मुस्कान.. इसे मोनालिसा की उस ऐतिहासिक मुस्कान से कुछ अलग अर्थों में सोचिए.... बात हो रही है प्रभात खबर के प्रधान संपादक जी की जिन्हें आप लोग हरिवंश जी के नाम से जानते हैं.... मेरी हरिवंश जी से पहली मुलाकात 17 सितंबर 2003 को हुई थी.... नवभारत के गुना ब्यूरो में बतौर रिपोर्टर काम करते हुए अपने शहर को देख रहा था... अखिलेश जी को अपने शहर में काम करने की दिक्कतें बताईं तो उन्होंने हरिवंश जी से बात की... हरिवंश जी ने बुला लिया... और मैं चल पढा रांची की ओर... उसके बाद और प्रभात खबर के ऑफिस पहुंचने तक के हिस्से से रूबरू होने के लिए यहां क्लिक करें....
हरिवंश जी ने ट्रांसलेशन देखा, भाषा देखी, कुछ घर की बातें पूछीं कुछ पत्रकारिता में आ रहे बदलावों की चर्चा की और मुझे दिया प्रभात खबर परिवार का हिस्सा होने का न्यौता... मैंने सहर्ष स्वीकार किया.... और जीवेश रंजन सिंह जी की टीम का हिस्सा हो गया मैं... रहने की व्यवस्था एमएचआई बिल्डिंग में केशव आनंद जी ने तुरंत करवा दी... रांची ने बारिश के बाद हरी चादर को और जोर से खींच लिया था... कुछ हवा में नरमी भी थी और मैं इस ताव को न सहते हुए बीमार हो गया... जालंधर में लगातार दो महीने रहने के बाद यह पहला मौका था जब मैं लगातार दस दिन तक घर से बाहर रहा था सो घर की याद भी आ रही थी... मैं अपनी बेजार शक्ल को और भी बीमार बनाए की बोर्ड खटखटा रहा था कि पीछे से हरिवंश जी आ गए... मुझे ध्यान नहीं था कि कोई पीछे खडा है.... अशोक अकेला की तकरीबन चार कॉलम की खबर को मैंने डेढ कॉलम में समेट दिया था.... कुछ तथ्य भी डिलीट कर दिए थे... हरिवंश जी ने पूरी खबर देखी थी.. खबर थी बोकारोवासी अब घर बैठे करा सकेंगे टिकट की बुकिंग...अशोक अकेला जी अपनी खबर भेजने से पहले हरिवंश जी को बता देते थे सो उसके बारे में उन्हें जानकारी थी... हरिवंश जी ने सीधा सवाल दागा... सचिन तुमने इस खबर को क्यों काटा.... खबर काटी तो काटी अबकी तो आपने मुझे हलाल कर दिया.... यह मैंने सोचा कहा नहीं... बजाहिर मुझे काटो तो खून नहीं... प्रधान संपादक सामने खडा है (तब तक मैं खडा हो गया था) खबर के बारें में पूछ रहा है जिसे मैं जर्राह की तरह काट चुका हूं,,,, क्या बोलूं क्या जवाब दूं... इसकी तो कोई तैयारी भी नहीं यह तो अचानक आई आफत है.... और अपने भाई भोजपुरी रउआ बानी अशोक अकेला की खबर काट डाली क्या सोचकर सचिन भाई बुंदेलखंडी... यह सोचना और पसीने पसीने होने में तकरीबन पांच सात सेकंड गुजरे होंगे... हरिवंश जी भांप गए कि मैं घबरा गया हूं... वे बोले- "हां वैसे यह खबर तो दिल्ली से बननी चाहिए थी.. इसमें बोकारो से जुडा कोई मसला है क्या" मैंने कहा- नहीं सर कल जो देश विदेश पर खबर छपी थी उसे ही बोकारो से जोडा गया है...
"तो इसमें लोगों के वर्जन क्यों नहीं लिए गए" फिर उन्होंने जीवेश जी की ओर मुखातिब होते हुए कहा- "जीवेश, देखो यह किस तरह किया जा सकता है इसकी व्यवस्था करवाओ... जो भी खबर का फालोअप छपे उसमें स्थानीय लोगों के वर्जन जरूर हों और किसी भी खबर पर सभी जिलों से प्रतिक्रिया लेने के बाद उसे एक साथ एक ही दिन छापें"
ऐसे हैं हरिवंश जी..... किसी भी खबर को देखकर उसमें से नई संवाभनाएं खोज लेने वाले... नए लोगों की हडबडाहट ताडकर चीजें सकारात्मक और सिरे से रख देने वाले... किसी को कमजोरी को भी उसकी ताकत के रूप में बदल देने की अदभुत क्षमता रखने वाले...
यहां तक की पोस्ट मैंने कल लिखी थी... यह यशवंत जी की पोस्ट और घनश्याम जी की आंखों के पहले का हिस्सा है... अब बात इन दोनों अग्रजों की पोस्ट पर कुछ
यशवंत जी मैं आलोचना जैसे शब्दों से परहेज करता हूं.. मुझमें वह योग्यता नहीं कि मैं किसी की समालोचना भी कर सकूं ... हरिवंश जी के साथ जितना वक्त गुजारा है जो सीखा है जो उनसे लिया है उसे जीने की बात तो अलग यदि पूरा पूरा बता भी सकूं और इससे दूसरे लोग कुछ बेहतर होने की प्रेरणा पा सकें तो खुशनसीब समझूंगा खुद को... साथ ही अपने होने का कुछ हिस्सा भी जी लूंगा... बहरकैफ... आप बात कर रहे हैं नकारात्मकता की... पता नहीं मेरे लिखे में यह था या फिर लोगों की मानसिकता ही ऐसी है कि किसी पर कुछ लिखने की बात कहें तो लोग समझ लेते हैं कि कोई खुलासा होगा... मूर्ति टूटेगी... असल में मैं जो कहना चाह रहा था कि हरिवंश जी जैसे लोगों पर लिखते हुए हम सिर्फ अपने हिस्से के हरिवंश को ही उजागर कर सकते हैं.... घनश्याम जी हो सकता है उनके एक बडे हिस्से से परिचित हुए हों... पर माफ कीजिए आप पूरा पूरा जज्ब भी कर पाए होंगे इसमें मुझे शक है... विश्वास कीजिए हरिवंश के कद से बहुत बौने हैं आप लोग.... और मैं तो हूं ही दूब में दबा एक वैक्टीरिया... 360 डिग्री के कोण से भी उस कद की पूरी पैमाइश करने की क्षमता मुझमें नहीं है बस यह सौभाग्य रहा कि मैं हरिवंश जी के दिल के उस कोने में रहा जहां धडकनें सबसे आदिम संगीत में अपना राग गाती हैं... जहां झारखंड की आदिवासी संस्कृति का साफ सफ्फाक चेहरा होता है और पूरी दुनिया में एक ही लय में सरकती बारिश की मखमली दुपट्टा होता है... नीबूं की चाय के साथ पत्रकारिता के साथ देश दुनिया के तमाम हिस्सों से उठती जिंदगी की बुनावट का तागा होता है, जिस पर एक जुलाहे की सी शिद्धत से हरिवंश खूबसूरत चीजों को कातते है, समेटते हैं.... उन्हें काम करते हुए देखना भी उतना ही सुखद अनुभव है जितना मंच से संबोधन के दौरान आपकी सवालों को भांपकर पहले ही जवाब हाजिर कर देने की अनूठी कला...
आप सभी हरिवंश जी के एक और मित्र कामरेड महेंद्र सिंह से परिचित होंगे.... महेंद्र सिंह हमारे बीच नहीं हैं..... फिजिकली हमारे बीच नहीं है.... 16 जनवरी 2005 को जिस दिन महेंद्र सिंह की आदमीयत के खिलाफ खडी भाजपाई ताकतों ने हत्या की थी... तब उनके पॉलिटिकल धुर विरोधी बैजनाथ जी भी दुखी थे... हरिवंश जी उस दिन हम लोगों को कोई निर्देश नहीं दे पाए थे... भरे गले से उन्होंने उस दिन पूछा था... सचिन, तुम बगोदर चल रहे हो क्या? सत्य प्रकाश, दयामनी दी, फैसल जी के अलावा जीवेश जी, मधुकर जी और सुरजीत तो जा ही रहे थे... मैंने तब रांची में रहकर ही खबरों को प्लेसमेंट देने की जिम्मेदारी ली और अतिरेक में मैंने एक साथी को यह कहने का मौका भी दिया कि प्रभात खबर को माले खबर बना दीजिए... लेकिन दूसरे दिन अखबार देखने के बाद हरिवंश जी सिर्फ इतना पूछा यह पेज किसने बनाया,,, जवाब मिला सचिन ने ... उन्होंने मुझे बुलाया.. पेज सामने था... वे नम आंखों से पेज देख रहे थे... महेंद्र सिंह की आखिरी सभा वाला फोटो जिसमें वे मुट्ठी बंद किए हुए हैं... बीच में लगी थी... अन्य कई फोटो थीं.... उन्होंने कहा- पेज अच्छा नहीं है.... दूसरे दिन मधुकर जी और विनय जी की मदद से दो स्पेशल पेज निकाले गए.... मधुकर जी और अविनाश जी के लेख उसमें शामिल थे... उन पेजों पर टिप्पणी आई इन्हें हर कोई अपने पास रखना चाहेगा... बाद में हरिवंश जी का वहां से लौटकर लिखा गया आर्टिकल छपा... उसमें हरिवंश जी की सबसे बडी चिंता जाहिर हुई थी... तकरीबन शब्द मुझे याद नहीं पर लिखा यह था कि इतने लोग थे... मधुकर जी के शब्दों में चींटी के झुंड की तरह... हरिवंश जी ने उस अनुशासन पर लिखा कि माले के किसी ने ता ने कोई अनर्गल बयान नहीं दिया... सयंम बनाए रखा... एक गलत बयान झारखंड को जला सकता था लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ... दीपांकर की नम आंखों का जिक्र और रामजी राय की थके कदमों की सरसराहट के साथ वह आर्टिकल बाद में महेन्द्र सिंह पर 32 पेज की एक पुस्तिका में भी शामिल किया गया था..... यह सब मैं इसलिए कह रहा हूं कि महेंद्र सिंह की तरह हरिवंश भी लार्जर देन लाईफ शख्सियत हैं.... वे चीजों को पांच साल और दस साल बाद की स्थितियों में देखते परखते हैं... आज के साथ जोडते हैं...
फिलहाल इतना ही
जो लोग हरिवंश जी को जानते हैं वे जानते होंगे कि उन पर लिखना कितना मुश्किल है.... उन पर लिखना कितना आसान है.... क्योंकि वह इस भरी दुनिया को पूरी आंख से देखने का माद्दा भी रखते हैं और बच्चों सी खिलखिलाहट के साथ आपकी गलतियों को चाय की भाप में उडा भी देते हैं..
इसलिए आज इतना ही कल बताउंगा...... वे कहते कहां है वे बोलते कहां है...बस सुनते हैं और गुनते हैं....

5 comments:

Ashish Maharishi said...

हिन्‍दी मीडिया के हीरो बन गए हैं हरिवंशजी, कलम जारी रखें

सचिन श्रीवास्तव said...

अरे महाराज बन नहीं गए हैं वे हीरो हैं ही... अनादि अतं

Raju Neera said...

किसी के बारे में लिखने के लिए उसका हिस्सा होना जरूरी होता है,मैं इस बात को समझ रहा हूँ कि तुमने उन्हें महसूस किया है। यदि मैं माखनलाल में नहीं आता तो मुझे भी उनका सानिध्य मिलता पर इसका अर्थ यह नहीं है कि मुझे अफसोस है। अपने हिस्से में सबकुछ अच्छा आ जाये तो जिंदगी का मज़ा नहीं आता, मैं यह भी कहूँगा कि यह जरूरी नहीं कि जो तुम्हें अच्छा लगे वो सबको अच्छा लगे, पर यह भी नहीं को जो मुझे अच्छा नहीं लगे वो अच्छा नहीं हो। फिलहाल एक शख्स के बारे में अलग अलग लोगों की राय जानकर खाका बनने का प्रयास कर रहा हूँ। आगे किसी और के बारे में भी यह सिलसिला चलाये या कहें तो मैं शुरू करूं।

यशवंत सिंह yashwant singh said...

राजू नीरा जी, आप जरूर सिलसिला चलायें। नेकी और पूछ पूछ कर। आपके लिखे का इंतजार रहेगा।
यशवंत

prasoon mishra said...

jaise hi ham kahte hain, main bataunga asliyat, logon ka dar jana bahut hi swabhavik hai sachin bhai. ek bat aur, ham jise mante hain uske prati dusron ko bhi manne ka agrah rakhte hain. jaise hi koi janne ka dawa karta hai. manne wale ka manna tootne lagta hai. ghanshyam bhai dharm kuch aise hi bana hoga. baharhal yashwant g ke sath hun main, raju bhai kuch ho jaye to maja aa jaye. asish tum bhi kuch yogdan de sakte ho. hath saf kar hi lo. kyun?
ye sab to thik hai koi mujhe bhi to devnagri sikhaye.