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10.1.08

बधाई टाटा जी आम आदमी को खाक बनाने ,माफ कीजिए खास बनाने के लिये।

बात लखटकिया की है तो ये कार किसके लिऐ है,आम आदमी के पास खानें को आम नसीब नहीं,कार कहाँ से लेगा।
नया प्रश्न है मित्रों आज आम आदमी कौन है। वो जो लखटकिया खरीद सकता है,या वो जो हर घंटें,हर मिनट,हर दिन,हर रात,हर महीनें ये सोचता रहता है कि लाख रूपिया इकठ्ठा हो जाऐ तो घर की जुगाड हो,घर की जुगाड हो तो कमसकम गरीबी की कसमसाहट भरी पीडा छुपानें के लिऐ एक परदा मिल जाऐ।
साला आजादी के 60 साल बाद गाँवों में सडक नहीं,पीने को पानी नहीं,स्कूल नहीं,अस्पताल का अ नहीं,माँ को परदे से आजादी नहीं,खेत में खाद नहीं,लाईटवा नहीं,
पर टाटा की टनाटन कार जरूर है,
दुश्यंत जी आप हम हरामखोरों को क्या सटीक समझते थे,क्या लिख गये हो आप,
कहाँ तो तय था चिरागाँ हर एक घर के लिऐ,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिऐ ।
टाटा अपने कारखानों का कचडा आम आदमियों के लिऐ छोड जाता है पर बात कर रहा है आम आदमी की।
भोपाल के हजारों आम आदमी की लाश इस बेगैरत टाटा को नहीं दिखती,पर उसे युनियन कार्बाइड का आम आदमी को मार देनें वाला कचडा जरूर दिखता है।
शर्म नाम की चिडिया इन टाटाओं को और नेताओं को तो नहीं दिखती पर साली ये चिरैया नकली बौद्धिकों को भी नहीं दिखती।
मल्टी नेशनल कंपनियाँ आईं और हमरे लोगों को लगा गई उधारी की आदत झुग्गियों की ज़रा विजिट मारिये बच्चा काँव काँव कर रहा होगा और मताई देख रही होगी फायनेंस का टी.वी,बाप भी धूम का हीरो समझ कर अपनी फायनेंस वाली फटफटिया चेंप रहा होगा।
और कुछ दिनों बाद खडें होगें फायनेंस कपंनी के अति सज्जन माणुष जो मय जच्चा बच्चा के उस घर में दाई मताई कर रहे होगें ।
आम आदमी के लिये लखटकिया तो नहीं ये शेर ज़रूर है,
झूठा सच है,अधूरा ख्वाब है,
क्या कहें तुमसे जिंदगी अजा़ब है ।
भूख में गरीबी में हर तडपती साँस में,
जिंदगी सवाल है,तो मौत ही जवाब है ।
अबे गरीबों समझ ही नही रहे हो तुमरी जिंदगी कार खरीदनें के लिये नहीं रोज़ अगले दिन के खाने की चिंता करते हुये घुटघुट कर मरने के लिऐ है,रही बात सब्जी वालों,नाई,फुटकर विक्रेताओ की कार खरीदनें की तो भईये कार छोडो धंधा देखो आधा रिलांयस फ्रेश खा चुका है आधा कार की किश्त खा जायेगी।
खैर अब लखटकिया निकल चुकी है तो दूर तलक जायेगी पर एक बात सोच रहा हूँ ससुरी सरकार इन लखटकियाओं के लिये रोडवा कहाँ से लायेगी।
-मुशकिलातों के सफ़र में ये हुक्मरान अजी़ब हैं
घर तो है पर छत नहीं और बारिश बेहिसाब है ।
और एक बात और अब फुटपाथ पर रहनें वालों बदनसीबों अब उन लाखों आम सलमान खानों से बचना जो माईकल शूमाकर बन आपके बाप माई को अनाथ बन निकल लेगें ।
आखिर में कल अपने चैनल के लिये बशीर बद्र का मैनें ईंटरव्यूह लिया उनका 31 की रात को लिखा शेर आम आदमी को पेशे खिदमत है
हर तरफ कार रेल और बसें
अब समुदंर में घर बनाऊँ क्या ।
हम तो भोपाल झील का प्लाट ले लिये हैं क्योंकि आजहि हमको पता चला है कि भोपाल के हजारों आम आदमी एक्टिव हो चुका है लखटकिया खरीद खास बनने के लिये।
वैसे आपको नहीं लगता हमरा देश क्या लपक प्रगति कर रिया है,
कल जैसे दुष्यंत जी घूम रहे थे आटो एक्सपो में और कह रहे थे
कल नुमाईश में मिली वो चीथडे पहने हुये,
मैनें पूछा नाम तो वो बोला हिंदोस्तान हूँ।
बधाई टाटा जी आम आदमी को खाक बनाने ,माफ कीजिए खास बनाने के लिये।

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