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3.1.08

पुरस्कारोत्सुकी आत्माएं

पंकज पराशर


दफ्तरी कंप्यूटर पर अफसरी रौब में डिक्टेट करवाई अफसर-कवि ने
नाभिदर्शना सेक्रेटरी को पूरी गंभीरता से संचिका-हस्ताक्षरी-सत्र में कविता
जगण, मगण, तगण का रखा पूरा ख्याल


घोंट डाला था विद्यार्थी जीवन में ही अफसर-कवि ने पूरा भारतीय काव्यशास्त्र
और तभी से वे पूरे परिवार में माने गए अपनी कौशल्या की नजरों में...भये प्रगट कृपाला...

संपादकों के लिए खुली रहती है हमेशा उनके दफ्तर में विज्ञापन देनेवाली फाइल
और पधारित शाम को मद्याधारित पूरी खाली और खुली शाम
जो लघु-पत्रिकाओं के महत्वपूर्ण पृष्ठों पर काव्य-रूप में सार्थकता पाती है

ऐसी ही शामों में नफरतों, अफवाहों और गालियों से गर्म होती राजधानी की ज्यादातर महफिलों में तय होते हैं पुरस्कार
तय होती हैं समीक्षा के लिए पृष्ठों की संख्या और आलोचना जगत में मुनादियों की बारंबारता का प्रतिशत
पूरे हिसाब-किताब के साथ


पुरस्कारोत्सुकी आत्माएं अक्सर चक्कर काटती दीखती हैं इन शामों में
दावतों और हें.हें..हें टाइप हँसी की पूरी अश्लीलता को सख्ती से दरकिनार करते हुए


इन्हें कोई जरूरत नहीं यह जानने की कि मुक्तिबोध के जीते जी
उनका एक भी कविता-संग्रह नहीं छप सका और पागल के आभूषण से नवाजे गए
दारागंज में भटकते हुए निराला साहित्य अकादमी के बेखबरी से बेपरवाह
फणीश्वरनाथ रेणु भी अपने नाम के अनुकूल महज एक धूल के कण समझे गए


आज तुक्कड़ों के वार्डरोब में शाल रखने की जगह नहीं बची
और अंटा पड़ा है उनका नफीस ड्राइंग रूम प्रशस्ति-पत्रों से
जहां किसी रियासत के महाराज की तरह उनकी छाती पर लटकते मोबाइल पर
अनवरत सूचना आती रहती है रसरंजक शामों को रंगीन करने
राजधानी के सबसे महंगे इलाके बेहद महंगे और नफासतपसंद क्लब में


इस दौर में निराला को याद मत करो
मत करो चर्चा उस मुंहफट नागार्जुन की जो पैदा ही बाबा बनकर हुआ था
और सब के रसोईघर तक सीधे घुसपैठ कर लेता था
इस प्रजाति के कवियों की कोई जगह नहीं दीखती सांझ-गोष्ठी के रसरंगी आकाओं के बीच


हम जो देखते हैं वह कभी नहीं लिखते
हम जो बोलते हैं वह कभी नहीं लिखते
हम जो करते हैं वह कभी नहीं लिखते
हम वही करते हैं जो हमारा समीकरण कहता है


संस्कृति पुरुष ने इन दिनों बहुतेरे अफसरों को रुपांतरित किया है काव्य-पुरुषों में
और जाहिर है आभार के भार से दबे काव्य-पुरुष जो कर सकते हैं एवज में
वह करते रहते हैं पूरी निष्ठा से संचिका-निबटाऊ-सत्र में उनके लिए
विदेशी दौरों, कमिटियों और रसरंजक शामों के लिए हलकान.....
--पंकज पराशर

2 comments:

Anonymous said...

PANKAJ DA ,ROJ AISE DRISHY GUJARTE HAIN SAMNE SE...ANDAR TAK HILA DETI HAI KATHIT SAMMANITON KE JAMAAT KI BHAAV-BHANGIMAAEIN.NAVANKUR KALAMKARON KO KYA PRERNA DE RAHE HAIN PURASKAR KO GAANR MAARNE VAALE AADARNIYA FALNAA BAABU.
AAPNE ACHHA CHITRAN KIYA HAI.BEJOR LAGA MAHARAJ.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

कोटि-कोटि बार जय हो,भयंकर भड़ासी उदगार हैं...