शिरीष खरे
यह टी-20 वर्ल्ड-कप में भारत की हार को क्रिएटिव स्टाइल में विश्लेषण करने का वक्त है। ऐसी नाजुक घड़ी में बड़ी लेकिन सीधे-साधे ढ़ंग से एक खबर कही जा रही है कि- मेलघाट में बीते 60 दिनों के दौरान कुपोषण से 97 बच्चों की मौत हुई है। हो सकता है टी-20 में हार के गम में यह गम थोड़ा छोटा लगे लेकिन हर साल की तरह इस साल भी जैसे ही मानसून के बादल छाए वैसे ही आदिवासी बच्चों के बीच मौत का तांडव शुरू हो गया। एक तरफ जहां बच्चों की मौत का आकड़ा बेकाबू हो रहा है तो दूसरी तरफ पेट की भूख मिटाने के लिए पलायन करने वाले परिवारों का आकड़ा भी कम होने का नाम नहीं लेता। महाराष्ट्र का मेलघाट टाईगर रिजर्व एरिया भूख से मरने वाले बच्चों के कारण बदनाम हो चुका है। यहां की चिकलदरा और धारणी तहसीलों का यह हाल है कि बीते 2 महीनों में कुपोषण के कारण 97 बच्चे मारे जा चुके हैं। सरकारी आकड़ों के मुताबिक जहां 26 मार्च से 25 अप्रेल के बीच 45 बच्चों की मौत हुई है, वहीं 26 अप्रेल से 25 मई के बीच 52 बच्चे मारे गए। इस तरह 1 अप्रेल 2008 से 31 मार्च 2009, इस एक साल में कुपोषण ने कुल 7,58 बच्चों को शिकार बनाया। 26 मार्च से 25 अप्रेल, इन 30 दिनों के भीतर कुपोषण से मरने वाले 45 बच्चों में से 11 मां के पेट में मर गए। बाकी 34 बच्चे ऐसे थे जिनकी उम्र 0 से 7 साल की थी। इसके बाद 26 अप्रेल से 25 मई, इन 30 दिनों के भीतर कुपोषण से मरने वाले 52 बच्चों में से 19 मां के पेट में ही मारे गए। इसमें 0 से 7 साल की उम्र के 33 बच्चे थे। इस तरह 1 अप्रेल 2008 से 31 मार्च 2009, इन 3,65 दिनों के भीतर मरने वाले कुल 7,58 बच्चों में से 1,75 ने मां के पेट में ही दम तोड़ा। इसके अलावा मरने वालों में 1,16 नवजात शिशु थे, जबकि 0 से 7 साल की उम्र के 4,67 बच्चे थे। मेलघाट की चिकलदरा और धारणी तहसीलों में कुपोषण की स्थिति को सरकारी आकड़ों के नजरिए से देखा जाए तो यहां सामान्य श्रेणी में आने वाले बच्चों की कुल संख्या सिर्फ 11,324 है। इसके बाद कुपोषण की पहली श्रेणी में 12,644, दूसरी श्रेणी में 6,177, तीसरी श्रेणी में 4,29 और चौथी श्रेणी में 57 बच्चे आते हैं। कुपोषण के लिहाज से तीसरी श्रेणी को गंभीर और चौथी श्रेणी को अति गंभीर माना जाता है। बरसात के दिनों में तीसरी श्रेणी के बच्चे चौथी श्रेणी में पहुंचकर बड़े पैमाने पर मौत के मुंह में जाते हैं। यहां सबसे पहले 1993 को कुपोषण से बच्चों की मामले उजागर हुए थे। इन 16 सालों में 10,000 से भी ज्यादा बच्चे मारे जा चुके हैं। मेलघाट में बच्चों की मौत अब एक गंभीर सवाल के रुप में हाजिर है। यह सवाल भोजन और रोजगार के सवालों से जुड़ा हुआ है। भूख और बेकारी ने इस पूरी पहाड़ी को बुरी तरह से घेर लिया है। जैसे ही यहां के हजारों परिवार पलायन करते हैं वैसे ही उनके बच्चे, गर्भवती और दूध पिलाने वाली मांओं को कमजोरी जकड़ने लगती है। इस दौरान भोजन की कमी और ईलाज की सही व्यवस्था न होने से कुपोषण नियंत्रण से बाहर हो जाता है। सरकार के मुताबिक इन दिनों 1,151 परिवार के 4,260 लोग पलायन कर गए हैं। इसमें से 0 से 6 साल तक के 1,525 बच्चे, 1,35 गर्भवती माएं और 1,58 दूध पिलाने वाली माएं हैं। मेलघाट में कुपोषण का मुद्दा राजनैतिक तौर से नजरअंदाज बना हुआ है। इधर बच्चे और उनके बड़े-बूढ़े भूखे होकर भी चुपचाप हैं। उधर व्यवस्था जिम्मेदारी लेने की बजाय औपचारिकताएं निपटाने में लगी हुई है। एक तरफ व्यवस्था खुद को बचाने के लिए नए-नए तर्क ढ़ूढ़ रही है। दूसरी तरफ भूख हजारों बच्चों को खाती जा रही है। इस बीच एक सवाल लगातार गहराता जा रहा है कि मेलघाट की भूख कब मिटेगी ?
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लेखक बच्चों के लिए कार्यरत संस्था ‘चाईल्ड राईट्स एण्ड यू’ के ‘संचार विभाग’ से जुड़े हैं।
संपर्क : shirish2410@gmail.com
ब्लॉग : www.crykedost.blogspot.com
1 comment:
शिरीष भाई ! जब तक कि बच्चे नेताओं की वोट बैंक का हिस्सा नहीं होंगे उन पर कोई ध्यान नहीं देगा सिर्फ रिपोर्टें जारी होंगीं और समितियां गठित होंगीं . कुछ विशेष करना होगा . मै हमेशा आपके साथ हूँ .
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