मिलकर भी मिल न सका जो ,
मन खोज रहा है उसको।
सव विश्व खलित धाराएं
अपना कह दूँ मैं किसको ॥
याचक नयनो का पानी
अवगुण्ठन में मुसकाता ।
''कल्याण -रूप , चिर-सुंदर-
तुम सत्य'' यही कह जाता॥
पृथ्वी का आँचल भीगा
तरुनी -लहर ममता में।
निर्दयता की गाथायें
अम्बर -पट की समता में॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
14.6.09
लो क सं घ र्ष !: अपना कह दूँ मैं किसको ...
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