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मनोज कुमार राठौर
भगवान का दूसरा रूप हैं पिताजी। कर्तव्य और जिम्मेदारियों से लदी जिंदगी को अपने कंधों पर ढोने वाले व्यक्ति की दासता को कौन भूल पाया है। उन्हें हर पल याद किया जाता है। चाहे वे दुख हो या सुख। मैं भी कहता हूं कि मेरे पापा भगवान है। दुनिया में यह बात सभी लोग सोचते होंगे।
पिता बनने के साथ जितनी खुशी मिलती है, उतना ही दायित्वों में बढ़ोत्तरी भी हो जाती है। पिता को पितृ धर्म निभाने के अलावा संरक्षक, पालक और दोस्त सरीखे होने जैसी जिम्मेदारियों को भी निभाना पड़ता है। फादर्स डे 19 जून 1910 को सबसे पहले वाशिंगटन में मनाया गया। इस शुभ दिन की शुरूआत सोनेरा डोड ने की। सोनेरा जब छोटी थी, तभी उनकी मां का देहांत हो गया। पिता विलियम स्मार्ट ने सानेरा को मां का प्यार भी दिया। एक दिन सोनेरा को ख्याल आया कि एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं? इस तरह 19 जून 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया। 1924 में अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कोली ने राष्ट्रपति स्तर पर फादर्स डे पर अपनी सहमति दे दी। 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनने की आधिकारिक घोषणा की।मशहूर पिता की तपस्या से आज उनके बेटों का समाज में सर्वोच्य स्थान है। भारत देश के किसान पुत्र से लेकर मजदूर वर्ग के पिता ने इस कर्तव्य को जिम्मेदारी से निभाया है।
पेश है, कुछ पिता-पुत्र के नाम।
जेआरडी टाटा-रतन टाटा
हरिवंश राय बच्चन-अभिताभ बच्चन
धीरूभाई अंबानी-मुकेश एवं अनिल
आदित्य बिरला-कुमारमंगलम बिरला
मोतीलाल नेहरू-जवाहरलाल नेहरू
पंडित रविशंकर-अनुष्का शंकर
महेंद्र द्विवेदी-कृष्ण कुमार द्विवेदी (मेरे घनिष्ठ मित्र)
तथ्य कहते हैं दासता
-फादर्स डे हमेशा जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है।
-पहला फादर्स डे 19 जून 1910 को अमेरिका में मनाया गया।
-रोम वाले दिवंगत पिता का फरवरी माह में सम्मान करते हैं।
-1972 में अमेरिका में फादर्स डे पर स्थायी अवकाश घोषित हुआ।
-फादर्स डे पर नेकटाई सबसे मशहूर और प्रचलित दिया जाने वाला उपहार है।
यादे पापा की...
-अमिताभ बच्चन
हरिवंश राय बच्चन हर साल अपने बेटे अमिताभ के जन्म दिन पर एक नई कविता लिखते थे। 1982 में जब अमिताभ बच्चन का एक्सीडेंट हुआ था तब भी उन्होंने एक कविता लिखी थी, लेकिन उसे लिखते हुए वे इमोशनल हो गए और फूट-फूट कर रोने लगे। अमिताभ कहते हैं कि मैंने अपने पिता को इस तरह से रोते हुए कभी नहीं देखा। अमिताभ आज भी पिता की याद आने पर उनके द्वारा लिख गई कविता की इन पंक्तियों को अक्सर गुनगुनाते हुए देखे जा सकते हैं।हर्ष नव, वर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव।
-राहुल गांधी
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राहुल गांधी अपने पिता स्वर्गीय राजीव गांधी की गोद में बैठकर रोते हुए लोगों के सामने आए थे। वहीं 25 मई 1991 में पिता की मृत्यु के समय राहुल को अपनी मां सोनिया गांधी को ढांढस बंधाते हुए देखा गया। राहुल कहते हैं मै आज जो भी अपने पिता और पूर्वजों के आशीर्वाद के कारण हूं। राजीव की छवि राहुल के काम में आज भी स्पष्ट झलकती है।
-शाहरूख खान
फिरोज साहब के इंतकाल का दुख मुझे भी उतना ही है जितना कि फरदीन को, क्योकि मेरे अब्बू का इंतकाल भी कैंसर की वजह से ही हुआ। आज इस बुलंदियों को छूने के बाद भी जिंदगी में कहीं कोई कमी रह गई, क्योकि आज वे दुनिया से जा चुके हैं जो इस समय मेरी कामयाबी को देखकर इतना खुश होते जितना कोई दूसरा नहीं हो सकता।
-मीरा कुमार
लोकसभा की पहली महिला स्पीकर का पद संभालने वाली मीरा कुमार अपनी सफलता का श्रेय अपने स्वर्गीय पिता जगजीवन राम को देती हैं। मीरा के लोकसभ में स्पीकर बनते ही लोगों के दिलों में उस जमाने की याद ताजा हो गई जब वे अपने पिता जगजीवन राम के साथ जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात कर ने तीन मूर्ति भवन जाती थी। मीरा कहती है कि जब 1967 में बाबूली स्वतंत्र पार्टी के अग्रिभेज से कड़ा संघर्ष करते थे तो मैं भी उनके साथ एंबेसडर कार से गांव-गांव जाती थी। उसकी वक्त उन्हें इस बात का अहसास हो गया था कि लोगों की सेवा का सबसे अच्छा माध्यम राजनीति में आना हो सकता है। बाबूजी के निधन के बाद वर्ष 89 में पहली बार चुनाव में किस्मत आजमाने वाली मीरा को जहां लगाातार दो बार असफलता मिली, वहीं विभिन्न राजनैतिक मोर्चों पर संघर्ष करते हुए आज मीरा कुमार लोकसभी की पहली महिला स्पीकर पद पर विराज मान है।ऐसे ही कई हस्तियां है, जिनकी सफलता के पीछे उनके पिता की कड़ी मेहनत, तपस्या छिपी है। इस बात को उनके बेटे-बेटी स्वयं मानते है।
महसूस करो उस पल को
जिसे तू ने साथ गुजारा
आज उनकी याद करो तुम
जिसने तुझे चलना सिखलाया
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21.6.09
पापा जैसा कोई नहीं...
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