एडवोकेट के लिए बार कौंसिल की तर्ज पर पत्रकारों के लिए भी देशव्यापी एक कौंसिल होनी चाहिए। यह मेरा निजी विचार है। मंदी की मार और इसके बाद बेलगाम हुए मालिकों के कारण यह विचार कुछ मजबूत हुआ है। पत्रकारिता में बीते कुछ सालों से जिस तरह पहलवान किस्म के लोग आ रहे हैं। इससे यह मंशा कुछ अधिक बढ़ी है कि इस तरह की बार कौंसिल पत्रकारों की सारी नहीं तो कुछ बीमारियों का हल कर सकती हैं। इस बारे में लोगों की अपनी राय हो सकती है। कुछ इसके पक्ष में भी होंगे तो कुछ प्रेस पर सरकार की दखलंदाजी जैसे तर्क भी उठा सकते हैं। मगर बार कौंसिल की अवधारणा को पहले समझने की जरूरत है। किसी भी वकील को प्रैक्टिस से पहले बार कौंसिल की मान्यता लेनी होती है। यह मान्यता उस राज्य की कौंसिल देती है जहां वह प्रैक्टिस करना चाहता है। एक निर्धारित फीस अदा करने के बाद ही उसे राज्य की किसी भी अदालत में प्रैक्टिस की अनुमति मिलती है। प्रैक्टिस के नियमों का उल्लंघन करने या फिर अपने क्लाइंट से धोखा देने का आरोप सिद्ध होने पर उसकी मान्यता खत्म कर दी जाती है। इसके बाद वह किसी भी अदालत में बहस नहीं कर सकता है। ऐसी ही ताकत की एक कौंसिल पत्रकारों के लिए होनी चाहिए। यह कौंसिल निर्धारित योग्यता रखने वाले व्यक्ति को पत्रकारिता का प्रोफेशन अपनाने की मान्यता दे सके। ऐसे नियम भी बनाए जाने चाहिए जिससे प्रेस और चैनल मालिक ऐसी मान्यता न पाने वाले को अपने यहां काम न दे सकें। इसके लिए कौंसिल को कुछ कानूनी अधिकार भी मिलने चाहिए। भारतीय प्रेस परिषद की तरह उसे दंतहीन नहीं होना चाहिए। इसके अलावा और भी नियम बनाए जा सकते हैं। मसलन यह परिषद पत्रकारों की समस्या को सरकार के सामने रख सके। साथ ही उसे न्यायिक दंड की शक्ति की मिलनी चाहिए। कुछ लोग कह सकते हैं कि जब भारतीय प्रेस परिषद है तो फिर किसी कौंसिल की जरूरत ही क्या है। लेकिन इस परिषद की हालत सभी को पता ही है।
10.6.09
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4 comments:
आपके विचाारों से में सहमत हॅंू आज मैं अपने जनपद में देखता हॅू कि अचानक पत्रकारों की बाढ सी आ गई है। किसी के प्रति मान सम्मान की कमी भी दिखाई देती है। आपके विचार के अनुसार एक काॅउसिल की अत्यन्त आवश्यकता है। जिस प्रकार पहलवान किस्म के लोगो का इस पेशे में घुसपेंठ हुई है वह चिन्ता का विषय है कुछ पत्रकारों ने भी माफियाओं की तरह काम शुरू कर दिया है पूरी मीडिया का ठेका एक ही आदमी ले लेता है। इन बीमारियों का हल किया जा सकता है। केवल कौशिल बना कर, आज जिले स्तर के पत्रकारों का किस प्रकार शोषण हो रहा है यह किसी से छुपा नही है, सालों से मान्यता कमेटी की बैठके नही हुई है। मान्यता भी आजकल ले देकर ही मिल रही है। मान्यता के लिये भी मालिकों की तरफ ही देखना पड़ता है। मालिक चाहे तो मान्यता होगी अन्यथा नही आखिर सरकार की ओर से पत्रकारों के हित के लिये कोन कार्य किये जा रहे हैं।
आपके विचाारों से में सहमत हॅंू आज मैं अपने जनपद में देखता हॅू कि अचानक पत्रकारों की बाढ सी आ गई है। किसी के प्रति मान सम्मान की कमी भी दिखाई देती है। आपके विचार के अनुसार एक काॅउसिल की अत्यन्त आवश्यकता है। जिस प्रकार पहलवान किस्म के लोगो का इस पेशे में घुसपेंठ हुई है वह चिन्ता का विषय है कुछ पत्रकारों ने भी माफियाओं की तरह काम शुरू कर दिया है पूरी मीडिया का ठेका एक ही आदमी ले लेता है। इन बीमारियों का हल किया जा सकता है। केवल कौशिल बना कर, आज जिले स्तर के पत्रकारों का किस प्रकार शोषण हो रहा है यह किसी से छुपा नही है, सालों से मान्यता कमेटी की बैठके नही हुई है। मान्यता भी आजकल ले देकर ही मिल रही है। मान्यता के लिये भी मालिकों की तरफ ही देखना पड़ता है। मालिक चाहे तो मान्यता होगी अन्यथा नही आखिर सरकार की ओर से पत्रकारों के हित के लिये कोन कार्य किये जा रहे हैं।
sahi likha ye bahoot jaroori hai Jhhola chhap patrkaro ne asl patrkaro ki ijjat b mitti me mila di hai
Yes, My vote for you.
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