समस्त विद्याओं की भण्डागार-गायत्री महाशक्ति
ॐ र्भूभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्ग 79; देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् गायत्री संसार के समस्त ज्ञान-विज्ञान की आदि जननी है । वेदों को समस्त प्रकार की विद्याओं का भण्डार माना जाता है, वे वेद गायत्री की व्याख्या मात्र हैं । गायत्री को 'वेदमाता' कहा गया है । चारों वेद गायत्री के पुत्र हैं । ब्रह्माजी ने अपने एक-एक मुख से गायत्री के एक-एक चरण की व्याख्या करके चार वेदों को प्रकट किया ।
'ॐ भूर्भवः स्वः' से-ऋग्वेद,
'ॐ भूर्भवः स्वः' से-ऋग्वेद,
'तत्सवितुर्वरेण्यं' से-यर्जुवेद,
'भर्गोदेवस्य धीमहि' से-सामवेद और
'धियो योनः प्रचोदयात्' से अथर्ववेद की रचना हुई ।
इन वेदों से शास्त्र, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, सूत्र, उपनिषद्, पुराण, स्मृति आदि का निर्माण हुआ । इन्हीं ग्रन्थों से शिल्प, वाणिज्य, शिक्षा, रसायन, वास्तु, संगीत आदि ८४ कलाओं का आविष्कार हुआ । इस प्रकार गायत्री, संसार के समस्त ज्ञान-विज्ञान की जननी ठहरती है । जिस प्रकार बीज के भीतर वृक्ष तथा वीर्य की एक बूंद के भीतर पूरा मनुष्य सन्निहित होता है, उसी प्रकार गायत्री के २४ अक्षरों में संसार का समस्त ज्ञान-विज्ञान भरा हुआ है । यह सब गायत्री का ही अर्थ विस्तार है ।
मंत्रों में शक्ति होती है । मंत्रों के अक्षर शक्ति बीज कहलाते हैं । उनका शब्द गुन्थन ऐसा होता है कि उनके विधिवत् उच्चारण एवं प्रयोग से अदृश्य आकाश मण्डल में शक्तिशाली विद्युत् तरंगें उत्पन्न होती हैं, और मनःशक्ति तरंगों द्वारा नाना प्रकार के आध्यात्मिक एवं सांसारिक प्रयोजन पूरे होते हैं । साधारणतः सभी विशिष;्ट मंत्रों में यही बात होती है । उनके शब्दों में शक्ति तो होती है, पर उन शब्दों का कोई विशेष महत्वपूर्ण अर्थ नहीं होता । पर गायत्री मंत्र में यह बात नहीं है । इसके एक-एक अक्षर में अनेक प्रकार के ज्ञान-विज्ञानों के रहस्यमय तत्त्व छिपे हुए हैं । 'तत्-सवितुः - वरेण्यं-' आदि के स्थूल अर्थ तो सभी को मालूम है एवं पुस्तकों में छपे हुए हैं । यह अर्थ भी शिक्षाप्रद हैं । परन्तु इनके अतिरिक्त ६४ कलाओं, ६ शास्त्रों, ६ दर्शनों एवं ८४ विद्याओं के रहस्य प्रकाशित करने वाले अर्थ भी गायत्री के हैं । उन अर्थों का भेद कोई-कोई अधिकारी पुरुष ही जानते हैं । वे न तो छपे हुए हैं और न सबके लिये प्रकट हैं ।
'भर्गोदेवस्य धीमहि' से-सामवेद और
'धियो योनः प्रचोदयात्' से अथर्ववेद की रचना हुई ।
इन वेदों से शास्त्र, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, सूत्र, उपनिषद्, पुराण, स्मृति आदि का निर्माण हुआ । इन्हीं ग्रन्थों से शिल्प, वाणिज्य, शिक्षा, रसायन, वास्तु, संगीत आदि ८४ कलाओं का आविष्कार हुआ । इस प्रकार गायत्री, संसार के समस्त ज्ञान-विज्ञान की जननी ठहरती है । जिस प्रकार बीज के भीतर वृक्ष तथा वीर्य की एक बूंद के भीतर पूरा मनुष्य सन्निहित होता है, उसी प्रकार गायत्री के २४ अक्षरों में संसार का समस्त ज्ञान-विज्ञान भरा हुआ है । यह सब गायत्री का ही अर्थ विस्तार है ।
मंत्रों में शक्ति होती है । मंत्रों के अक्षर शक्ति बीज कहलाते हैं । उनका शब्द गुन्थन ऐसा होता है कि उनके विधिवत् उच्चारण एवं प्रयोग से अदृश्य आकाश मण्डल में शक्तिशाली विद्युत् तरंगें उत्पन्न होती हैं, और मनःशक्ति तरंगों द्वारा नाना प्रकार के आध्यात्मिक एवं सांसारिक प्रयोजन पूरे होते हैं । साधारणतः सभी विशिष;्ट मंत्रों में यही बात होती है । उनके शब्दों में शक्ति तो होती है, पर उन शब्दों का कोई विशेष महत्वपूर्ण अर्थ नहीं होता । पर गायत्री मंत्र में यह बात नहीं है । इसके एक-एक अक्षर में अनेक प्रकार के ज्ञान-विज्ञानों के रहस्यमय तत्त्व छिपे हुए हैं । 'तत्-सवितुः - वरेण्यं-' आदि के स्थूल अर्थ तो सभी को मालूम है एवं पुस्तकों में छपे हुए हैं । यह अर्थ भी शिक्षाप्रद हैं । परन्तु इनके अतिरिक्त ६४ कलाओं, ६ शास्त्रों, ६ दर्शनों एवं ८४ विद्याओं के रहस्य प्रकाशित करने वाले अर्थ भी गायत्री के हैं । उन अर्थों का भेद कोई-कोई अधिकारी पुरुष ही जानते हैं । वे न तो छपे हुए हैं और न सबके लिये प्रकट हैं ।
2 comments:
बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट.
मेरे विचार ते जो भी व्चक्ति गात्री मंत्र का अर्थ जान जाता है उसके बाद उसे और कुछ जानने समझने की जरुरत नही रह जाती है। गात्री मंत्र मे समस्त ब्रह्माण्ड की जानकारी संनिहीत है।
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