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24.4.11

एक ब्लॉग से लौट कर बिना किसी क्षमायाचना के......!!

एक ब्लॉग से लौट कर बिना किसी क्षमायाचना के......
प्रश्न :मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
सन्दर्भ :http://blostnews.blogspot.com/
                  हरीश जी,हालांकि इस विषय के विरुद्द कुछ लिखने का मन तो नहीं होता,किन्तु माननीय अनवर जी (और कतिपय अन्य लोगों के भी)के सामान्य ज्ञान हेतु कुछ बताने से खुद को मैं रोक नहीं पा रहा हूँ कि लिंग और योनि पूजन सिर्फ वर्तमान भारतीय धर्म के अंश नहीं है अपितु यह ना जाने कब से धरती के हर हिस्से में हर काल में पाया जाता है,भारत,मिस्र,करीत,बेबिलोनिया,फिनिशिया,ग्रीस,अखिदिया,क्रीट एवं यूरोप सभी स्थानों पर सभी काल में यह प्रवृति व्याप्त रही है,और यहाँ तक के विश्व के समस्त देवालयों में अन्तरंग यौन-कर्म से सम्बंधित मूर्तियाँ आदि पायी जाती हैं,और यह अकारण भी नहीं है !
              सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है हरीश जी,कि आज जिस काम को हम पाप की दृष्टि से देखते हैं(मजा यह कि दिन-रात इसी के पीछे भागते भी रहते हैं...हा..हा...हा...हा..हा..हर किसी को हम इस पाप-कर्म से दूर रहने की शिक्षा देते रहते हैं,और खुद.....!!और मजा यह कि हम सबके साथ ही लागू है!!)तो किसी जमाने में यही "काम" अत्यंत पवित्र कार्य हुआ करता था और यहाँ तक कि लोग देवालयों में ईश्वर को साक्षी बना कर सम्भोग किया करते थे और यह भी जान लीजिये कि यह कार्य स्त्री-पुरुष विवाह-पूर्व ही किया करते थे,तत्पश्चात उनकी ईच्छा कि वे आपस में विवाह करें या ना करें,इससे इस पवित्र "सम्भोग-कार्य" की प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आती थी,यह कार्य असल में ईश्वर की सेवा को समर्पित था,इसकी डिटेल के लिए अलग से एक अध्याय लिखना होगा, आप बस यह जान लो कि ऐसी प्रथाएं आज से दो हजार साल पूर्व तक हुआ करती थीं....ये प्रथाएं कब और कैसे शुरू हुईं,किस प्रकार पल्लवित-पुष्पित हुईं और क्योंकर बंद हुईं,यह सब भी इतिहास में बाकायदा दर्ज है....!!और हिन्दू धर्म-ग्रंथों में ही क्यूँ बाईबिल में भी दर्ज हैं,मुस्लिम धर्म पर कुछ कहूंगा तो अनवर भाई नाराज़ हो जायेंगे... मगर मेरे भाई जब तथ्यों को देखा-परखा या जांचा जाता है,तब हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई की तरह नहीं सोचा जाता... और इस विषय पर अगर किसी को मेरे तथ्यों पर कोई एतराज हो तो वाद-विवाद कर ले,तथ्य किसी व्यक्ति या समाज के नहीं होते वो तो इतिहास के अविभाज्य अंश होते हैं !!
             अब जहां तक विज्ञान की बात है तो परम्पराओं का कोई विज्ञान है कि नहीं,इसकी परख कौन करेगा ?
कौन-सी परम्परा का उत्स क्या है,कैसे वो समय के साथ अपभ्रंश हो गयी,उसमें कैसे-कैसे विकार पैदा हो गए,यह जानने के हिमाकत कौन करता है?हम अपने देश की परम्पराओं को या धरती पर के इतिहास को कितना जानते समझते और खंगालते हैं,यह तो भाई अनवर के आलेख से साफ़ जाहिर होता है...लाखों ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं,जो आज भी हमारी दादी माँ और नानी माँ की कहानियों में है,मगर हम जिन्हें अक्सर जांचे बगैर बेतुका करार देते हैं, अनेक ऐसे तथ्य हमारे ग्रामीण समाज में बिलकुल सतह पर हैं,जिन्हें हम शहरवासी उनका गंवारपन समझते हैं,ठीक इसी प्रकार उपरोक्त तथ्य भी है,जिसकी डिटेल हमें ना सिर्फ रोचक लगेगी,वरन गरिमापूर्ण और अचंभित करने वाली भी है,योनि और लिंग पूजन का आदि स्त्रोत हिन्दू नहीं अपितु आदि-मानव है,यहाँ तक कि बहुत से स्थानों पर सिर्फ लिंग या सिर्फ योनि भी पूजे जाते रहे हैं अंतर मात्र इतना है कि सभ्यताओं के विकास के संग विभिन्न तरह के आवश्यकताओं या अन्य किन्हीं कारणों से वे स-प्रयास हटा या मिटा दिए गए हैं,किन्तु भारत नाम के इस विसंगतिपूर्ण देश में हिन्दू नाम की एक असंगतिपूर्ण जाति ने इस परम्परा को अभी तक थाम कर रखा हुआ है,बेशक यह बिना जाने हुए कि इसका कारण क्या है...किन्तु तब भी कोई महज इस कारण गलीच तो नहीं हो जाता ना कि वो नहीं जानता कि वह जिस परम्परा का पोषण कर रहा है,उसका और या छोर क्या है ??           



2 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

raajivji sbhi dhrmon kaa smaan krte hue nmn krna achaahiye dusre ke dhrm pr jo kichd uchhalta hai voh apne dhrm se bhi bhtktaa hai islaam kaa siddhaant hai jo quraan men aaya he ke tumhe tumhaara din mubaark mujhe meraa din mubark yaani apne apne dhrm pr qaaym rhkar dosti rkho rnjish me kya rkha hai aapki bhavnayen aaht hui hai to me maafi chaahtaa hun . akhtar khan akela kota rajsthan

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक पोस्ट..