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29.4.11

ग़ज़ल

तुम्हें मुबारक तुम्हारी खुशियाँ,
हमारे दिल को भी गम नहीं है।
नहीं था कह दो कि प्यार हमसे,
तुम्हें तो कोई कसम नहीं है॥

है प्यार सच्चा तेरे जहाँ से,
ये प्यार ऊंचा है आसमां से।
तुम्हें भले ही यकीन न हो,
हमे तो कोई भरम नहीं हैं॥

लहर के डर से किनारे बैंठे,
यही नहीं है हमे गंवारा।
भले ही कट जाएँ पर हमारे,
पर हौसले भी तो कम नहीं हैं॥

वो दोस्त हैं तो करीब आयें,
जो दुश्मनी है तो फिर निभाएं।
ये सोच के घर से चल पड़े हैं,
कि आज वो हैं या हम नहीं हैं॥

1 comment:

तेजवानी गिरधर said...

अच्छी रचना है