वतन बेचते नेता लोग
पहन के खद्दर निकल पड़े हैं, वतन बेचने नेता लोग
मल्टी मिलियन कमा चुके पर, छूट न पाता इनका रोग
दाउद से इनके रिश्ते और आतंकी मौसेरे हैं
खरी- खरी प्रीतम कहता है, इसीलिए मुंह फेरे हैं
कुर्सी इनकी देवी है और कुर्सी ही इनकी पूजा
माल लबालब ठूंस रहे हैं, काम नही इनका दूजा
सरहद की चिंता क्या करनी, क्यूँ महंगाई का रोना
वोट पड़ेंगे तब देखेंगे, तब तक खूंटी तान के सोना
गद्दारों की फौज से बंधू कौन यहाँ रखवाला है?
बापू बोले राम से रो कर, कैसा गड़बड़झाला है?
कुंवर प्रीतमकोलकाता
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