शहर से दूर चलकर अब, चलो ऐसा बनायें घर
जहाँ रंजिश किसी से भी, न हो और न किसी का डर
खुले दिल से मिलें सबसे, बिताएं चैन का जीवन
उतारें कर्ज मिटटी का, हरदम हम ख़ुशी से तर
कुंवर प्रीतम
कोलकाता
१७.४.२०११
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
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