जिंदगी आखिर किस तरह एक छोटी सी घटना की वजह से बदल जाती है इसका जीता जागता उदाहरण हैं सेक्टर-29 स्थित फ्लैट संख्या-326 में खुद को कैद की हुई दो बहनें. छह महीनों से अधिक तक अपने ही घर में बंद यह बहनें इस बात की संकेतक हैं कि आज के युवाओं में डिप्रेशन किस तरह हावी है. हालांकि यह घटना हमारे समाज और हमारे मतलबीपने पर एक जोरदार प्रहार है कि किस तरह एक भरे मोहल्ले के एक घर में इस तरह की घटना हो जाती है.
आज समाज में इतनी अधिक व्यस्तता हो गई है कि लोगों को अपनी जिंदगी से निकलकर दूसरों के बारे में सोचने का समय है ही नहीं. जो समाज कल तक एक-दूसरे की हंसी-खुशी में एक-दूसरे का साथ देता था आज वह समाज इतना अधिक व्यस्त हो गया है कि उसे अपने बगल वाले की भी खबर नहीं रहती. आखिर हम किस मुंह से कहते हैं कि इंसान एक समाजिक प्राणी है? क्या सामाजिक होना इसी को कहते हैं कि आपके बगल में कोई मरता रहे और आपको उसकी खबर भी ना हो?
इस खबर ने हमारे पूरे सामाजिक तंत्र पर करारा प्रहार किया है. बेशक से भ्रष्टाचार और आईपीएल जैसे खबरों के बीच इस खबर को लोग ज्यादा अहमियत ना दें लेकिन सच से मुंह फेर लेने से सच बदल नहीं जाता है.
एक आम आदमी का जीवन वैसे बहुत ही व्यस्त होता है लेकिन फिर भी वह अपने परिवार के लिए तो समय निकाल ही लेता है. ना जाने फिर कैसे अनुराधा और सोनाली के भाई ने अपनी दोनों बहनों की पिछले कई महीनों से सुध नहीं ली थी. क्या भाई होने का सिर्फ यही कर्तव्य है कि हर रक्षाबंधन को आओ, राखी बंधवाओ और जाओ. क्या वह अपनी निजी जिंदगी में इतना उलझा था कि उसे अपने खून की भी परवाह नहीं रही.
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16.4.11
क्या इंसानियत बची भी है? चलो एक बार फिर सोचें
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