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15.4.11

मीडिया पर नकेल का मतलब देश दुनिया का खत्म होने से कम नहीं

पत्रकारों को पढऩा होगा।
नेता, प्रशासन और न्याय की मंथर गति से परेशान लोगों ने जिस तरह से मीडिया को सरआंखों पर बिठाया है, उससे नेताजगत खासा परेशान भी है। इस बात को सोचते और मानते हुए, प्रशासनिकों के साथ मिलकर कुछ तिकड़म में लग भी गया है। यही वजह है कि मीडिया मालिकान अब अन्यत्र बिजनेस को चमकाने के लिए समाचार पत्र मार्ग पर चल रहे हैं। अन्ना की सफलता के बाद से दरके नेता और बौखलाए ब्यूरोक्रेट्स क्या लगता है, चुप बैठेंगे। हरगिज नहीं। दरअसल वे इस प्लानिंग में जुट गए हैं, कि कैसे मीडिया को अपने इशारों पर नचाने के लिए कोई मैकेनिज्म बनाया जाए। इस पर पूरी प्लानिंग से कोई सरकार कुछ ऐसा करेगी, जो हो भी जाएगा। इससे बचने के लिए मीडिया को कुछ अलग और अपने उन्नयन के लिए कुछ और करने की जरूरत है। इसकी शुरुआत कुछ इन बिंदुओं के मुताबिक की जा सकती है।
* एकल मंच: देश में एक मंच मीडियाकर्मियों का होना चाहिए, इसकी विभिन्न विंज्स हों, जैसे टीवी, वेब, रेडियो, फोक, अखबार, मैगजीन आदि। इसका एक ही अध्यक्ष हो। यह समाचार पत्रों को मान्यता से लेकर अपनी स्वयं की टीआरपी रेटिंग और रीडरशिप, सर्कुलेशन आदि रिपोर्टें इजाद करे। इसके साथ ही देश के तमाम संगठन इसके अंर्तगत ही आएं। कोई बिखराव न हो। इसकी अपनी यूनिवर्सिटीज हों, अपना संसाधन हो। चाहें तो इसे लोकतांत्रिक स्वरूप भी दिया जा सकता है, जो देशभर में एक निश्चित समय में चुनाव के माध्यम से कार्यकारिणी बनाए।
* योजना और समीक्षा: इस संगठन की एक बॉडी इस काम में लग सकती है। योजना बनाने से लेकर समीक्षा तक की बात करती है। समाचार पत्रों के नोटिस जारी करने तक का काम यह करे अगर वे सरकारों के तालु चाटते हैं। गलत बात को प्रचारित करते हैं। इसके अलावा यह टीम किसी मुद्दे पर मीडिया का जनहित रुख तय करे। पूरा देश इस पर चले। इसकी सही मॉनिटरिंग के लिए हालांकि टीम का निर्माण बहुत बारीकी से करना होगी। यह एक व्यवस्था के पैरेलल व्यवस्था बनाना है। जो अच्छे काम के लिए है। यह टीम पत्रकारों को बौद्धिक बल देने के लिए समय-समय पर कार्यशालाओं, सेमिनारों और अन्यत्र क्लासों का आयोजन करे। इसके साथ ही विभिन्न पुरस्कारों के माध्यम से अच्छा काम करने वालों को आगे बढ़ाए। साथ हर पत्रकार समाचार पत्र मालिक से ज्यादा इस संस्था के प्रति जवाबदेह हो। अगर इसके लिए कोई संवैधानिक धारा, प्रतिधारा, सूची अनुसूची में भी बदलवा करना पड़े तो किया जाए।
* वरना खा जाएंगे बेइमान: इस काम की मंशा कोई सियासी या स्वयंभू बनने की नहीं बल्कि पत्रकारों की सामाजिक जवाबदेही तय करने की है। साथ ही सरकारों के काजू किसमिस से बौराए अर्धपत्रकारों के इस्तेमाल रोकने की है। मान लीजिए आने वाले कुछ समय में ही व्यवस्था के तथाकथित ठेकेदार आईएएस कुछ न कुछ ऐसा जरूर बना देंगे, जिससे अभिव्यक्ति का रचनानृत्य चंद दायरों में बंधकर रह जाएगा। इस बात पर सबको सोचना होगा।
* वे कर रहे हैं, प्लानिगं नकेल कसने की:


होगा। इसके लिए किए जा रहे प्रयास संभव है कि आने वालो कुछ सालों में ही दिखने लगें। घेरेबंदी से निपटने के लिए मीडिया को भी अपने अंदर कुछ सुधार लाने होंगे। इनमें मतमतांतर होता है, इसलिए संभव नहीं कि बिना किसी सार्वभौमिक संगठन के यह किया जा सके। व्यवस्था की सबसे बड़ा सिरदर्द आईएएस इसको अमली जामा पहनाएं इससे पहले ही कुछ हम करें। आओ भाइयों यह सब जनहित में है।
सादर
वरुण के सखाजी, ९००९९८६१७९

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