(एक कमाऊ कवि द्वारा अपनी श्रद्धालु पत्नी को )
तोरा मन निर्मल कहलाये ।
तीसर नैन खुले तब देखे , समझे और सिखाये । तोरा ......... ॥
काला पर्स नितम्ब सँवारे ,
चाट पकोरे खाए । तोरा मन निर्मल कहलाये ॥
बंद कृपा की राह खोल दे ,
मूसलधर बरसाए । तोरा ............................................. ... ॥
लखि-लखि तेरे लाल लिपस्टिक ,
लोभी मन ललचाये । तोरा ................................................. ॥
तीसर नैन खुले तब देखे , समझे और सिखाये । तोरा........ ॥
हम इनकम का टैक्स बचावें ,
तू दसवंद पठावे । तोरा .................................... ॥
तू सजनी मति की अति भोरी ,
टी वी कहे पतियाये ।
अब जब मीडिया अट-पट बोले
सुनि कहे खिसिलाये । तोरा ............................... ॥
कहे कवि कब काजू बर्फी ,
किसमिस खीर खिलाये ।
तीसर नैन खुले तब देखे , समझे और सिखाये ।
तोरा मन निर्मल कहलाये ॥
17.4.12
तोरा मन निर्मल कहलाये
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