भई, यह कहानी मैं किसी का उपहास या किसी को लांछित करने के लिए नहीं , बल्कि यूँ ही अपनी व्यथा दूर करने के लिए और भड़ासियों के बीच एक-आध कॉमेंट्स पाने के लिए कर रहा हूँ । हालाँकि कि कमेंट्स के मामले में भडासी बड़े कंजूस हैं और मंहगाई के इस युग में भला वो ऐसा क्यों न करें ।
तो , बात उस जमाने की है जब सोने की दूकानें बड़े बड़े शहरों में ही होती थीं । नेकनगर उनदिनों एक अच्छा शहर होता था । वहाँ शासन बहुत अच्छा था , दूर - दूर से लोग सोने के गहने बनवाने आते थे । एक सुनार ज़रा ठग था । उसे राजा ने एक गलती की सजा में दस वर्षों तक का नगर निकाला दे दिया । बहुत थोड़े-से पैसे लेकर वह बाहर निकला और एक ऐसे नगर में पहुँचा जहाँ बहुतेरे चोर थे ।
ये चोर चाहते थे कि कोई ऐसा सुनार मिले जो उनके चुराए हुए गहने ले कर उन्हें पैसे दे दे ।
अब उन्हें एक मिल गया । पर सुनार तो ठग था । उनके गहने वह औने पौने भाव में (खूब सस्ता ) खरीदता था और गला कर सोने में बदल देता था और सोना रख लेता था या थोड़ा बाहर बेच कर पैसे भी बना लेता था ।
एक दिन किसी ने कहा ,'यह सुनार ठग है ।'
किसी और ने कहा ।
सुनार ने कहा , ' मैं चला जाता हूँ , नेक नगर । '
चोरों में खलबली मची । नेकनगर जाकर अपना चोरी का सामान वे नहीं बेच सकते थे । वहाँ राजा का खटका था । वहाँ दार्शनिक भी थे जो चोरों के लिए नरक की चेतावनी भी देते थे । नरक का नाम सुनते ही चोर चिढ जाते थे । उनका मन खराब हो जाता था ।
चोरों ने कहा , ' बड़े भाग्य से एक सुनार जी हमारे शहर में आये हैं । ये किसी से कहने जाते हैं कि हमारे यहाँ गहने खरीदीये या बेचिए । इन्हें ठग कहने का अधिकार किसी को नहीं है । '
एक ढीठ चोर ने तो थोडा दूर हट यह भी कहा , ' इन सुनार भाई साहब को जिस ने ठग कहा उसकी जुबान खींच लेंगे । '
धीरे से एक चोर ने उससे कहा ,' पर, यार यह हमलोगों को कम पैसे देता है । '
ढीठ ने कहा , ' चोरी का माल दूर ले जाने में किता खतरा हैं । यहाँ घर बैठे जो मिलता है ले लो । '
ठग ने बहुत धन कमाया । चोर एक दिन उसी के घर चोरी करना चाह रहे थे पर दस वर्ष बीत चुके थे और वह सुनार वापस नेकनगर लौट गया ।
नेकनगर वालों ने उसका धन देखकर पूछा ,'किस उन्नतिशील राज्य में इतने ही वर्षों में इतना सारा धन कमाए ? '
सुनार ने कहा , ' अरे , मैं तो एक दम गरीब राज्य में था पर वहाँ चोरों की कमी नहीं थी और मैं यही समझा हूँ कि चोरों के राज्य में ठगों का धंधा तेज चलता है , ईमानदारों का नहीं । '
क्यों भाई भडासी , कैसा रहा ?
15.4.12
चोरों के राज्य में ठगों के पौ बारह
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