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17.4.12

यहाँ पर कुछ भी कहने से पहले यह कह देना आवश्यक समझता हूँ कि पिछले कई दिनों से टी वी चैनलों पर चर्चा का विषय बने हुए बाबा निर्मल का मैं कोई भक्त नहीं हूँ और न ही ऐसे किसी व्यक्ति का समर्थक हूँ . लेकिन बाबा निर्मल पर कुछ भी कहे जाने से पूर्व बहुत कुछ कहा जाना अभी तक शेष है जिसके बारे में अभी तक न तो कुछ कहा गया न समझने की कोशिश हो रही है .
आजकल टी वी पर एक विज्ञापन देख रहा हूँ . विज्ञापन स्प्राईट कंपनी का है. एक लड़की सड़क पर खड़ी है . वहां पर एक बाईक आकर रूकती है . बाईक पर बैठा लड़का निस्संदेह उस लड़की को अपनी बाईक पर बैठना चाहता है . तभी एक कार भी आकर रूकती है जिस पर एक लड़का है  वह भी उस लड़की को अपनी कार पर बैठाना चाहता है . वहां पर एक वृद्ध महिला भी है. कार वाले लड़के को देखकर बाईक वाला लड़का समझ जाता है कि लड़की अब कार में ही बैठेगी . अचानक वह एक स्प्राईट की बोतल निकालता है और उसको पीने लगता है . तभी लड़की का मन बदल जाता है और वह वृद्ध महिला को यह कहते हुए कि माँ जी आप इस कार में बैठ जाईये बाईक में बैठ जाती है . तभी पार्श्व में दो पंक्तियाँ कही जाती हैं . वह पंक्तियाँ आप भी सुनेंगे तो हैरान होंगे . मैं वह पंक्तियाँ यहाँ पर लिखकर ब्लॉग परंपरा को कलंकित नहीं करना चाहूंगा . आप भी वो विज्ञापन देखें और समझें कि वह क्या है.
यहाँ पर यह कंपनी क्या दावा कर सकती है कि स्प्राईट पीकर वैसा ही होगा जैसा विज्ञापन में दिखाया गया है. क्या यह लोगों के कमजोर मन और प्रवृतियों  का दोहन नहीं है ? क्या यह मार्केटिंग के नियमों के अनुकूल है ? नहीं न , तो फिर यही तो बाबा निर्मल कर रहे हैं. बाबा निर्मल की बातें बेतुकी हैं . इस देश में यदि कोई कम्पनी लोगों को यह सपना दिखाती है कि वह गोल्ड स्कीम के तहत उनका पैसा अठारह माह में डेढ़ सौ गुना कर देगी और लोग उसके पास अपने करोड़ों रूपये जमा करा देते हैं. और वो कम्पनी लोगों का पैसा लेकर भाग जाती है.
ऐसे देश के ऐसे लोगों की भावनाए तर्क को निर्मूल कर के ही पनपती हैं. जिस देश में एन एस सी जैसी योजना भी वर्षों में लोगों के पैसों को दुगुना नहीं कर पाती वही पर लोग गोल्ड कंपनियों के चक्कर में पड़ जाते हैं.
सिगरेट और तम्बाको की कंपनिया लोक लुभावने विज्ञापन दिखाकर सामान बेचती हैं लोग फंसते हैं . कैंसर टी वी जैसी बीमारियों के शिकार होते हैं . मरते हैं. कंपनी सिर्फ विज्ञापन दिखाती है . प्रोडक्ट पर लिखती भी है कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानि कारक है . लोग भी अपने आप पीते खाते हैं. मरते बीमार पड़ते हैं. क्या कंपनी के लिए कोई सजा है. बाबा निर्मल भी लोगों की आध्यात्मिक भावनाओं व मजबूरियों का फ़ायदा उठाकर गोल मोल बातें करते हैं. लोग अपने आप आते हैं . जैसे सिगरेट तम्बाकू खरीदने दूकान पर जाते हैं. निर्मल बाबा की भी एक दूकान है. निर्मल बाबा डाट काम . लोग मर्जी से फंस रहे हैं . कौन समझाए ?
तम्बाकू  आदि  की कंपनियों को बंद  करने  पर सरकार  को राजस्व  की चिंता  सताने  लगती  है . निर्मल बाबा  से भी तो सरकार को राजस्व प्राप्त  होता  है . टैक्स  तो निर्मल बाबा भी देते हैं. दोनों  में फर्क  क्या है ? दोनों ही लोगों का दोहन कर रहे हैं. यदि कोई कहे कि क्या सन्यासी को क्या अधिकार है कि वह गांधी के देश में ऐसा करे ? तो क्या गांधी के देश में एक टीचर को न पढ़ाने का , क्लर्क को घूश लेने का , सांसदों को पैसा लेकर प्रश्न पूछने का व पैसे से सरकार बचाने व तरह तरह के भ्रष्टाचार करने का अधिकार किसने दिया है ? क्या नियम सिर्फ कुछ जगह तक सीमित नहीं हो सकते . गांधी के सिद्धांतो की बात अब न ही की जाए तो बेहतर है क्योंकि हम में वो जज्बा ही नहीं कि हम उनको अपने जीवन में उतार सकें . हम सिर्फ उस पर बात करना सीख गए हैं. 
बाबा निर्मल के उपदेशों या तथाकथित उपदेशों और बेतुकी बातो ने अब तक किसी को मारा तो नहीं ही होगा . लेकिन कंपनियों ने बहुतों को मारा है . सरकार के टैक्स को भी मारा है. यदि बाबा के नाम से किसी को कोई फायदा हुआ और वो बाबा की फर्जी बातो में आकर उसे दस प्रतिशत अंश ही दे रहा है . भले ही डर से . तो भी यह उसकी आस्था ही उससे करवाती है . बाबा के बहुत से भक्त ऐसे भी होते होंगे जो फायदा होने पर उसको कहते हों कि कोई लाभ नहीं हुआ और दस प्रतिशत न देते हों . भले ही फायदा उन्हें अपनी मेहनत से हुआ हो.लेकिन बाबा उन्हें मजबूर नहीं कर सकते ज्यादा से ज्यादा वे उन्हें कह सकते हैं कि तुम पर अब कृपा नहीं होगी . अब यदि मेहनत से सब कुछ मिल रहा है और बाबा की कृपा फिजूल है तो उसको कोई चिंता भी नहीं करनी चाहिए . 
बाबा धोखेबाज हो सकते हैं . लेकिन तम्बाकू कंपनियों की तरह किसी की जान नहीं ले रहा है .कम्पनियां भी टैक्स चुराती हैं . बीमारियाँ फैलाती हैं . कोई सजा है.
सोचिये , हर दृष्टिकोण से , मैं कोई बाबा का भक्त नहीं लेकिन टी वी पर बीमार बहस देख कर उकता गया हूँ सो लिखना पड़ रहा है. सजा मुक़र्रर कीजिये , सबके लिए.
धन्यवाद . 

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