Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

20.4.12

सस्नेह आमंत्रण

                                                              

                                                     बागमती की व्यथा कथा



Date : 22 April 2012
Time : 9:30 am to 5:00 pm
Place : Economics Department, BRA Bihar University Campus, Muzaffarpur

.



महोदय,

सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, सुपौल, खगड़िया आदि जिलों से गुजरनेवाली बागमती नदी तथा उसकी सहायक जलधाराएँ बकेया, लखनदेई, मानुषमारा आदि उन्मुक्त बहती थीं. लोग बाढ़ की प्रतीक्षा करते थे. कहावत थी-बाढ़े जीली, सुखाड़े मरली. नदी हर साल १२ किलोमीटर की चौड़ाई में उपजाऊ मिट्टी बिछा देती थी. लोग खुशहाल थे, लेकिन १९५४ से ही इसके दोनों ओर ३ किलोमीटर की चौड़ाई तटबंध बनाना शुरू हुआ. लोगों ने बहुत विरोध किया, लेकिन उनकी नहीं सुनी गयी. पुलिस और गुंडों की बंदूकों की नोक पर तटबंध बनना जारी रहा.

नदी के जिन-जिन हिस्सों में तटबंध बन गए, वहां के लोग उजड़ गए. पुनर्वास का भी कोइ इंतजाम नहीं हुआ. बाँध के अन्दर खेतों में बालू भर गया. जंगली घास, गुड़हन और जंगल उग आये. बनैया सूअर, नीलगाय आदि का वास हो गया, जो फसलों को चट कर जाते हैं. तटबंध के बाहर भी जलजमाव होने लगा है. उसके सड़े पानी और उसमें उगने वाली जहरीली घास के कारण ६० प्रतिशत गाय, भैंस, बैल-बकरी मर गए, मर रहे हैं. पक्षी भी मरते जा रहे है. विकास और बाढ़ नियंत्रण के नाम पर बागमती क्षेत्र के हजारों गांवों को काला पानी बना दिया गया.

हर साल बाढ़ के समय तटबंध टूटते हैं. जल प्रलय मच जाता है. तटबंध के अन्दर का हिस्सा सिल्ट भरते जाने के कारण ऊंचा हो गया और बाहर का खेत भरते के कारण ऊंचा हो गया और बाहर का खेत नीचा. बाढ़ नियंत्रण के नाम पर ज्यों-ज्यों तटबंध बनते गए बाढ़ और जलजमाव का क्षेत्र बढ़ता गया. लोगों की तबाही-बर्बादी बढ़ती गयी.

लोग चाहते हैं कि सरकार तटबंध को वैज्ञानिक तरीके से तोड़कर बागमती को कैद से मुक्त कराये ताकि बागमती क्षेत्र के हजारों गाँव फिर से खुशहाल हो सके. अगर ऐसा हो गया तो रोजी-रोटी के लिए आसाम, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली जाकर अपमान झेलने वाले लाखों बिहारी अपने-अपने गाँव लौट आयेंगे.

बागमती के जिन इलाकों में अभी तटबंध नहीं बने हैं वहां के लोग तटबंध निर्माण का विरोध कर रहे हैं. मुजफ्फरपुर जिले के कटरा, औराई, गायघाट आदि के १२० गाँव बांध बनते ही डूब क्षेत्र में आ जाएगा. उनका सब कुछ लूट जाएगा. जमीन के बदले न तो जमीन मिलेगा, न पुनर्वास होगा. अन्य जिलों के लोग भी बेचैन हैं. इसलिए तटबंध निर्माण का विरोध करने के लिए सत्याग्रहियों की भरती हो रही है. लोग फोरलेन जाम करके जेल जाने की तैयारियां कर रहे हैं.

इसी क्रम में २२ अप्रैल २०१२ को अर्थशास्त्र विभाग, विश्वविद्यालय कैम्पस, मुजफ्फरपुर में दिनभर का संवाद आयोजित किया गया है. बागमती क्षेत्र के तटबंध पीड़ित लोग जुटेंगे. साहित्यकार, कवि, लेखक, रंगकर्मी, संस्कृतिकर्मी, पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ता पहुंचेंगे. दिल्ली, लखनऊ, रांची, भागलपुर और पटना से भी कई महत्वपूर्ण लेखकों, कवियों, फिल्मकारों, पत्रकारों और विद्वानों ने भी आने की खबर भेजी है.

शामिल होने वाले प्रमुख लोगों के नाम : रंजीव (नदी विशेषज्ञ), सुकांत नागार्जुन (पूर्व सम्पादक, दैनिक हिन्दुस्तान), रामचंद्र खान (पूर्व डीजीपी), सुनीता त्रिपाठी (सम्पादक, गाँव समाज), प्रो. ब्रजेशपति त्रिपाठी (प्रबंध सम्पादक, गाँव समाज), शाहिना प्रवीण (सामाजिक कार्यकर्ता), डॉ. योगेन्द्र (लेखक), उदय, किरण शाहीन (वरीय पत्रकार), दरभंगा से उमेश राय, सीतामढ़ी से नागेन्द्र सिंह, विजय कुमार

आईये, इस संवाद में शामिल होकर मनुष्य व प्रकृति के मधुर संबंधों की बुनियाद पर समतामूलक लोकतान्त्रिक समाज के निर्माण की पहल में सहभागी बनिए. जरूर आईये. समय पर आईये. पूरे दिन साथ रहिये.

निवेदक : एम. अखलाक, डॉ. कुमार गणेश, अनिल प्रकाश

No comments: