स्थानीय जमीनी कांग्रेसियों की मेहनत पर पानी फेरा हरवंश-मुनमुन नूरा कुश्ती ने?
ठीकरा फोड़ने की जुगत में जुटे भाजपायी
सिवनी। नगर पंचायत लखनादौन के चुनाव में 8 पार्षद जीतने तथा 15 वार्डों में 3226 वोट पाने वाली कांग्रेस का अध्यक्ष पद से मैदान से बाहर होना राजनैतिक हल्कों में एक बार चर्चित हो गया हैं। जबकि पूरी ताकत झोंकने के बाद भी भाजपा 3 पार्षद जीतने एवं अध्यक्ष पद के लिये 1880 और 15 वार्डों में मात्र 2375 वोट ही ले सकी हैं। सभी भाजपा नेता एक दूसरे के सिर पर इस हार का ठीकरा फोड़ने के प्रयास में जुटे हुये हैं। इंका विधायक हरवंश सिंह और मुनमुन की सांठ गांठ के कारण स्थानीय कांग्रेस नेताओं की मेहनत पर पानी फिर गया हैं।
कांग्रेस ने किया शानदार प्रदर्शन-लखनादौन विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा हैं। आजादी के बाद से इस क्षेत्र से कांग्रेस ही जीतती रही हैं। लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनावों से कांग्रेस इस क्षेत्र से हार रही हैं। यहां से भाजपा की शशि ठाकुर विधायक हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस विधानसभा क्षेत्र से लगभग 23 हजार वोटों की बढ़त ली थी जो कि इंका सांसद बसोरीसिंह मसराम की जीत का एक प्रमुख कारण बनी थी। जबकि जिले के इकलौते इंका विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के केवलारी विस क्षेत्र से लोस चुनाव में कांग्रेस करीब 3 हजार वोटों से हार गयी थी। पिछले लोस चुनाव की तरह ही लखनादौन क्षेत्र में हुये इस चुनाव में भी कांग्रेस ने शानदार प्रर्दशन तो किया लेकिन यहां से अध्यक्ष पद का कांग्रेस का कोई उम्मीदवार ही मैदान में नहीं था। इसके बावजूद भी कांग्रेस ने पंचायत के 15 वार्डों में से अपने 8 पार्षद जितवा कर बहुमत बनानेे में सफलता प्राप्त की हैं। इतना ही नहीं वरन कांग्रेस के पंजे को 15 वार्डों में कुल 3226 वोट मिले हैं। जबकि निर्दलीय उम्मीदवार श्रीमती सुधा राय को 6628 वोट लेकर भाजपा प्रत्याशी को 4548 वोट से भाजपा उम्मीदवार से चुनाव जीत गयी थीं। इन राजनैतिक परिस्थितियों में कांग्रेस यदि अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ती तो परिणाम कुछ और भी आ सकते थे। राजनैतिक विश्लेषकों का ऐसा भी मानना हैं कि चुनावी वातावरण को भांप कर ही विकास के नाम पर चुनाव जीतने का दावा करने वाले मुनमुन राय अंतिम समय में फिल्मी कलाकारों के रोड़ शो करवा कर माहौल अपने पक्ष में करने का प्रयास किया था।
दूसरे के सिर ठीकरा फोड़ने की जुगत में जुटे भाजपायी - भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा, संगठन मंत्री अरविंद मैनन,राज्यसभा सदस्य एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते,पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल,मविप्रा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर,जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन,विधायकगण शशि ठाकुर,नीता पटेरिया एवं कमल मर्सकोले सहित तमाम भाजपायी दिग्गजों की फौज भी इस चुनाव में पंद्रह में मात्र तीन पार्षद ही जिता पायी। अध्यक्ष पद के लिये भी भाजपा को मात्र 1880 वोट ही मिल सके। नगर के पंद्रह वार्डों में पार्षद पर के भाजपा प्रत्याशियों को मात्र 2475 वोट ही मिल पाये जो कि अध्यक्ष को मिले वोटों से लगभग 500 अधिक हैं। मीडिया में कभी यह समाचार छपता कि नरेश दिवाकर को विशेष चुनाव संचालक बनाया गया हैं तो कभी यह प्रकाशित होता था कि चुनाव की कमान जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन थामे हुये हैं। जीत का सेहरा अपने सिर पर बंधाने के लिये जितने भी भाजपा नेता उतावले थे वे सभी अब खुद को बचाते हुये दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ने की जुगत जमाते देखे जा सकते हैं।
जिले में कांग्रेस के इतिहास का सर्वाधिक कलंकित अध्याय-लखनादौन के कांग्रेस के स्थानीय जमीनी कार्यकर्त्ताओं की मेहनत और तमन्नाओं पर एक राजनैतिक फिक्सिंग ने पानी फेर दिया हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना हैं कि लोस चुनाव में केवलारी से कांग्रेस के हारने और क्षेत्र निर्णायक कलार समाज के वोटों पर मुनमुन राय की पकड़ से चिंतित इंका विधायक एवं विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह 2013 के चुनाव के लिये कोई भी खतरा मोल लेना नहीं चाहते थे। इसीलिये हरवंश सिंह ने मुनमुन रा से सांठगांठ करके यह सारा राजनैतिक खेल खेला था। वैसे भी पार्टियां सामान्य तौर पर एक डमी उम्मीदवार का भी फार्म भरातीं हैं ताकि यदि घोषित उम्मीदवार का नामांकन किन्हीं कारणों से चुनाव मैदान से बाहर हो जाये तो डमी उम्मीदवार को चुनाव लड़ाया जा सके। जिले के कद्दावर इंका नेता हरवंश सिंह इस बात से अनभिज्ञ होंगें? इसे कोई भी नहीं मानेगा। इसके बाद भी अध्यक्ष चुनाव से कांग्रेस का प्रत्याशी ना रहना बड़े ही आश्चर्य की बात हैं। वैसे अपने हित के लिये कांग्रेस की बली देना हरवंश सिंह के लिये कोई नयी बात नहीं और यही इस चुनाव में भी हुआ जिसने जिले में कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं के मनोबल को बुरी तरह तोड़ दिया हैं।
पूरे प्रदेश में बने इस रिकार्ड एवं जिले में कांग्रेस के इतिहास को सर्वाधिक कलंकित करने वाली इस घटना पर कांग्रेस आलाकमान की कार्यवाही पर राजनैतिक विश्लेषकों की नजरें टिकी हुयी हैं।
साप्ताहिक दर्पण झूठ ना बोने से साभार
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