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26.7.12

जनता को बना रहें हैं सोनिया और मनमोहन सिंह


श्रीगंगानगर- दोनों बेहद खुश हैं। दोनों के यहां रोज दीवाली,होली,ईद है। इससे अधिक और क्या खुशी होगी कि एक सरकार में नहीं है फिर भी सरकार उसके इशारों पर चलती,बैठती,उठती है। दूसरा प्रधानमंत्री पद के काबिल नहीं फिर भी प्रधानमंत्री हैं। दोनों में से कोई राजनीतिक नहीं फिर भी हिंदुस्तान की राजनीति के सिरमौर हैं। एक दम सही आइडिया है सभी का...एक सोनिया गांधी...दूसरा मनमोहन सिंह। जिस काल में खुद की संतान माँ-बाप का कहा नहीं मानती उस दौर में हिंदुस्तान जैसे देश का प्रधानमंत्री सोनिया गांधी के  कहे से बैठता,उठता और बोलता है। संभव है कि किसी समय राहुल गांधी अपनी मम्मी का कोई कहा टाल दे लेकिन मनमोहन सिंह बिलकुल ऐसा नहीं करेंगे। बेटा बेशक आँख दिखा दे किन्तु मनमोहन सिंह कभी नजर नहीं उठाते सोनिया जी के सामने। देश का बंटाधार हो तो हो,सोनिया गांधी की बला से।  क्यों बदले सोनिया मनमोहन सिंह को।कलयुग में इस भाव में आज्ञाकारी,सुशील,ईमानदार,कर्तव्यनिष्ठ,मौन रहने वाला कर्मचारी मिलता कहां है। नरेगा के कारण तो और भी मुश्किल है।आप मनमोहन सिंह को कम मत समझो। पढे लिखे हैं। बड़े बड़े पद पर रहें हैं। वे भी समझते हैं सब बात। क्या हुआ जो कमरे में सोनिया गांधी को दंडवत करना पड़ता है। क्या खास बात है जो पर्दे के पीछे सोनिया जी किसी गलती पर दो चार पाँच दंड बैठक लगवा लेती हैं। उनकी डांट सुननी पड़ती है। मंच पर तो मनमोहन सिंह ही हीरो हैं। बंद कमरे में कान पकड़ने से कौनसी शान घटती है। बाहर दो दुनिया मनमोहन सिंह के कदमों में लाल कालीन बिछाती  हैं। इस बात का भी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि लोग कठपुतली,गुड्डा कहते हैं। मनमोहन सिंह तो बस ये ध्यान रखते हैं...कुछ तो लोग कहेंगे....लोगों का काम है कहना। फिर हमारे यहां तो कहावत है कि दूध देने वाली गाय की तो लात भी  सहनी ही पड़ती है।  दूध के लिए पशु की लात सहने वाले लोगों के इस देश में प्रधानमंत्री पद के लिए किसी भद्र महिला से डांट फटकार सुननी पड़े तो  कौनसा पहाड़ टूटता है।  इस देश में तो ऐसे ऐसे सेवक हुए हैं जिन्होने अपने नेता के कहने पर झाड़ू लगाने तक की बात कही। रसोई में काम करके इंसान कहां से कहां पहुँच गया। मनमोहन सिंह इसी श्रेणी के प्रधानमंत्री हैं तो क्या खास बात है। दोनों ज्ञानवान हैं। पढे लिखे हैं। सूझवान हैं। अच्छे संस्कारों वाले हैं। सब जानते हैं कि वे क्या कर रहें हैं। किन्तु दोनों की भलाई इसी में हैं। ये कहने की हिम्मत तो नहीं कि वे एक दूसरे को ...बना रहें हैं। हां,देश के हालत से ये जरूर साबित होता हैं कि दोनों एक दूसरे को यूज कर अपनी अपनी सत्ता का आनंद ले रहें हैं। सत्ता के लिए इनको ना तो अपने आत्म सम्मान से कोई मतलब है। है ना जनता के दुख दर्द से। एक को हिंदुस्तान जैसे महान देश का प्रधानमंत्री पद मिला हुआ है और दूसरे को एक आज्ञाकारी बेटे से भी अधिक आज्ञाकारी प्रधानमंत्री। सावन में कचरा पुस्तक की लाइन पढ़ो....मन मेरा तरसे नैना बरसे,आजा गौरी अब के सावन। सब के आँगन देखो पायल बाजे,छम छम को तरसे मेरा आँगन।

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