हाल ही अजमेर कलेक्ट्रेट की मस्जिद में लगाए गए जिस पर्चे की वजह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अजमेर दौरा अचानक रद्द होने के कयास लगाए जा रहे हैं, उसमें कितनी सच्चाई है, ये तो पता नहीं, मगर इतना तय है कि इसमें शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर विरोधी लोगों के अतिरिक्त गहलोत विरोधी मुस्लिम वर्ग का हाथ है। मोटे तौर पर यही माना जा रहा है कि श्रीमती नसीम अख्तर की ओर से आयोजित ऐतिहासिक रोजा इफ्तार कार्यक्रम का रायता ढ़ोलने की खातिर ही यह पर्चा श्रीमती इंसाफ के किसी विरोधी ने शाया करवा होगा। इसमें ऐसे कट्टरपंथी मुसलमानों का भी हाथ होने का संदेह है जो धर्मनिरपेक्षता के नाते श्रीमती इंसाफ के अपने विधानसभा क्षेत्र तीर्थराज पुष्कर के सरोवर व मंदिरों आदि में पूजा-अर्चना करने से खफा हैं।
पर्चे में उठाये गए मुद्दे साफ-साफ इंगित कर रहे हैं कि इसका मकसद रोजा इफ्तार कार्यक्रम में सभी धर्मों के प्रमुख लोग और बड़ी तादाद में जुटने वाले मुसलमानों के सामने गहलोत को शर्मिंदगी झेलनी पड़े या फिर वे अपना दौरा रद्द करें ताकि नसीम का कार्यक्रम खराब हो जाए। किसी कथित जागरूक मुसलमान समिति की ओर से चस्पा किए गए इस पर्चे में सरवाड़ की घटना के साथ ही गोपालगढ़ की हिंसा में मारे गए 11 लोगों का मुद्दा उठाया गया है। गोपालगढ़ के मुद्दे पर सीएम गहलोत की तुलना गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से की गई है। पैम्फलेट पर संस्था का पता और फोन नंबर कुछ नहीं थे। इसमें आम मुसलमानों से कहा गया कि वे रोजा इफ्तार करने से पहले इन सवालों पर गौर जरूर करें। बताया जा रहा है कि खुफिया विभाग ने इस पर्चे को लेकर सरकार को रिपोर्ट भेजी थी, जिसके बाद मुख्यमंत्री ने अजमेर का दौरा रद्द कर दिया। यदि यह सही है तो पर्चा शाया करने वाले का मकसद पूरा हो गया है। न केवल गहलोत ने रोजा इफ्तार में आना रद्द किया अपितु नसीम के कार्यक्रम में गहलोत की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बन गई। यह दीगर बात है कि उसके बाद भी कार्यक्रम शानदार तरीके से कामयाब हो गया।
हालांकि मस्जिद प्रबंधन समिति ने इसे लोगों के जज्बात भड़काने वाली कार्रवाई बताया है, मगर सच ये है कि इस मस्जिद की तीमारदारी से ले कर अब इसके आबाद होने तक शहर के कुछ बुद्धिजीवियों की सक्रिय भागीदारी रही है, जो कि तुष्टिकरण का फायदा भी उठाते रहे और मुसलमानों की दयनीय हालात के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार भी मानते रहे हैं।
बहरहाल, गहलोत ने भले ही इस कार्यक्रम में शिरकत कर मुद्दे के प्रति मुंह फेरने की कोशिश की हो, मगर यह इतना तो इशारा कर ही रहा है कि अंदर की अंदर मुस्लिम जमात का एक वर्ग गहलोत के विरुद्ध मुहिम चलाए हुए है, जिसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
यह पहला मौका नहीं कि एक पर्चे की वजह से गहलोत सवालिया घेरे में आए हैं। इससे पहले भी एक पर्चे ने उन्हें हाईकमान तक को सफाई देनी पड़ गई थी। उस पर्चे में एक जमीन घोटाले में उनके पुत्र वैभव गहलोत का हाथ बताया गया था। इस पर राज्य सरकार ने तुरंत अजमेर की पंचशील कॉलोनी में दीप दर्शन सोसायटी के नाम नगर सुधार न्यास की ओर से आवंटित 63 बीघा जमीन का आवंटन व लीज को रद्द कर इस पर्चे से बड़ी मुश्किल से अपना पिंड छुड़वाया था। सब जानते हैं कि गहलोत अपने आपको गांधीवादी नेता बताते हैं और उसी छवि को बरकरार रखने के लिए भ्रष्टाचार के मामले में विशेष सतर्कता बररते हैं और कभी नहीं चाहते कि उनके अथवा उनके पारिवारिक सदस्य की वजह से वे किसी भी स्तर पर बदनाम हों। इसी कारण उन्होंने आवंटन रद्द करने संबंधी कई कानूनी अड़चनों को नजरअंदाज कर एक झटके में ही कड़ा निर्णय लेते हुए आवंटन रद्द कर दिया। ऐसा करके उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से पाक साबित करने की कोशिश की, मगर गहलोत विरोधी लॉबी ने उसे हाईकमान तक पहुंचा दिया था।
-तेजवानी गिरधर
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