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1.8.12

जनता की सहन शक्ति और जन लोकपाल के सिपाही


जनता की सहन शक्ति और जन लोकपाल के सिपाही 

प्रसंग मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम से जुडा  है .सीता के अन्वेषण के पश्चात लंका पर धावा करने
की तैयारी थी ,श्रीराम अनुज के साथ पूरी सेना के साथ समुद्र तट पर पहुँच चुके थे .भगवन राम
समुद्र से विनय कर रहे थे मगर समुद्र रास्ता देने को तैयार नहीं था .राम ने साम नीति का
उपयोग करते हुये अनशन किया मगर तीन दिन बीत जाने के बाद भी समुद्र श्री राम को रास्ता देने
को राजी नहीं हुआ तब श्री राम जो स्वयं मर्यादा पुरषोत्तम थे कि मर्यादा भी टूट गयी और कुटिल,
शठ, अहंकारी के लिए प्रयुक्त की जाने वाली दंड निति का सहारा लेने की घोषणा कर दी .प्राण संकट
में देख समुद्र दंडवत हो गया और अपने ऊपर सेतु बंधवाने को राजी हो गया .

  अन्ना और उसके सिपाही मूढ़ सरकार से एक सशक्त लोकपाल देश के लिए मांग रहे हैं और महीनो से
अपनी मांग रख रहे हैं मगर सरकार एक सशक्त लोकपाल देने का इरादा नहीं रखती ...क्यों ?इसका
कारण देश के सामने स्पष्ट है .आज अन्ना अपने सहयोगियों के साथ भूखे रहकर अनशन कर रहे हैं
और मतिभ्रमित देश के शासक अड़े हुए हैं कि लोकपाल अभी नहीं आना है

यह देश की जनता की सब्र की परीक्षा है मगर कब तक भूखे रहकर परीक्षा देना है क्या संवेदनहीन
सरकार को पाठ पढाने के लिए हर भारतीय को अनशन के लिये उतरना पडेगा?

क्या अन्ना और उसकी टीम खुद के लिए सरकार से कुछ मांग रही है ?क्या लोकपाल के लाने से देश
को विपत्ति से झुझना पड  जाएगा?आखिर इतना अहंकार क्यों ?

जिनको हमने ही गद्दी पर बिठाया आज वो लोग अपने राज धर्म को भूल गए हैं ,जनता के प्रति अपने
कर्तव्यो को भूल गए हैं उनको याद है सिर्फ अपने अधिकार जो जनता ने ही उन्हें सुशासन के लिये दिए
हैं.

कानून संसद में ही बनेगा यह ठीक है ,जनता से चुने हुए प्रतिनिधि ही कानून बनायेंगे यह भी उचित है
मगर कानून जनता की आकांक्षा पर खरा उतरना चाहिए ताकि जन-प्रतिनिधि या सरकारी नौकर पर
उस कानून का कडक रूप से इस्तेमाल हो सके ताकि जनता के धन का दुरूपयोग रुक सके .

अन्ना की निति साम निति है जिसका अभी तक पुरे देश में समर्थन है मगर यदि उन्होंने मर्यादा को
हाथ में ले लिया तब क्या होगा ...जनता को क्रोध में लाने का काम कौन कर रहा है ?

समय हर पापी को उचित दंड देता रहा है और सत्य की स्थापना होती रही है .इस काल में भी सत्य
को रोका नहीं जा सकता है हो सकता है कुछ भारतियों को जान भी जोखिम में डालनी पड़ जाए.
देश के लिए मर मिटने वाले मतवाले कभी भी किसी भी काल में कम नहीं हुए हैं

 अन्ना शायद अपनी शांति की नीति में बदलाव लायेंगे ,कब?यह देखना है।  

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