मित्रों,बात बहुत पुरानी है मेरे जन्म के समय की लेकिन क्या करूँ देशहित में हम अपने मन में दबाए हुए थे। दरअसल इससे पहले देश की हालत कुछ अच्छी नहीं थी। कोई भी काम देशहित में नहीं हो रहा था। अब चूँकि देश में प्रत्येक काम देशहित में हो रहा है यहाँ तक कि घोटाले-महाघोटाले भी देशहित में हो रहे हैं इसलिए मैंने भी सोंचा कि चलिए अब भेद खोल ही देते हैं। दरअसल बात यह है कि जब मेरा जन्म हुआ तब पंडित जी ने पोथी-पत्रा देखकर यह महान भविष्यवाणी की थी कि यह बालक देशहित में जन्मा है इसलिए बड़ा होकर यह अपने सारे काम देशहित में ही करेगा। पंडित जी तो भरी जवानी में अपनी झगड़ालु मगर खूबसूरत पत्नी को विधवा बनाकर दुनिया से खिसक लिए लेकिन आगे चलकर उनकी भविष्यवाणी एकदम सटीक साबित हुई। दरअसल मैं आज एक नेता हूँ और वह भी केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी का। आलाकमान का चहेता हूँ सो मुझे केंद्र में कैबिनेट मंत्री बना दिया गया है और हर तरह की छूट भी दी गई है। बस मुझे इतना ही ध्यान में रखना होता है कि मैं जो कुछ भी करूँ वह देशहित में हो। सो मैं अपने हरेक उल्टे-सीधे काम को चुटकियों में देशहित में किया गया ठहरा देता हूँ। वास्तव में मेरी पूरी जिन्दगी ही देशहित में बीती है। देशहित में ही मैंने कई जरूरतमंद अबलाओं का उद्धार किया है और महिला-सशक्तीकरण के काम को नई गति और नया आयाम दिया है। देशहित में ही मैंने अनगिनत हत्याएँ करवाई,अनगिनत बलात्कार किए और डाके डलवाए-अपहरण करवाए। अब आप ही बताइए कि अगर मैंने यह सब करके अपने हुनर को प्रदर्शित नहीं किया होता तो क्या मुझे सत्तारूढ़ पार्टी ने लोकसभा का टिकट दिया होता? फिर कैसे मुझे देशहित में प्रत्येक कर्म करने का सुअवसर मिलता?
मित्रों,आप ही सोंचिए कि अगर 2-जी घोटाला नहीं हुआ होता तो जनता कैसे राजा बनती और फोनकॉल कैसे सस्ता होता? फिर भी देखिए मूर्खों को कहते हैं कि राजा ने घोटाला किया। राजा ने तो भिखारी को भी टेलीफोन का राजा बना दिया और देशहित में फिर जेल भी गया। इसी तरह अगर कोयला घोटाला नहीं हुआ होता तो देश को सस्ती बिजली कैसे मिलती (मुझे तो मुफ्त में ही मिल जाती है इसलिए मेरे लिये तो सस्ती ही हुई न?)। इसी तरह अगर देश में राष्ट्रमंडल घोटाला नहीं होता तो देश की जनता सवा लाख की घटिया कुर्सी पर कैसे बैठती? देश के लोग नासमझ हैं वास्तविकता को समझना ही नहीं चाहते। घोटाला मतलब देशहित और इसके सिवा और कुछ नहीं। मेरा बैंक अकाउंट इन दिनों देशहित में लबालब भरा हुआ है। क्या करूँ पूरी दुनिया में घूम-घूमकर बैंकों में खाता खोलता फिर रहा हूँ। साथ ही दिखावे के लिए देशहित के भी कुछ काम कर लेता हूँ जिससे पूरी यात्रा देशहित में हो जाए। विदेशों में विकास के नए-नए तरीकों की खोज होती रहती है। देश में वापस आते ही देशहित में उनकी योजना बनाता हूँ और फिर देशहित में एक और घोटाला सम्पन्न कर लेता हूँ।
मित्रों,अब तक तो मेरा देशहितवाला तर्क खूब काम करता रहा है लेकिन अब यह सोशल मीडियावाला सब गलत-सलत अफवाह फैलाकर हमारी देशहित वाली महान थ्योरी को फ्लॉप करवाने में भिड़ गया है। बड़ी माथापच्ची की हमने कि देशहित में इस नामुराद से कैसे निबटा जाए। मौका मिल ही नहीं रहा था अब असम दंगा को लेकर मची भगदड़ ने हमको वह सुनहरा मौका भी दे दिया है। सो हमने सोशल मीडिया को पूरी तरह देशहित के खिलाफ खतरा घोषित करने का अभियान ही छेड़ दिया है और इत्मिनान रखिए बहुत जल्दी हमारी गोबयल्स सेना इसे इतना बदनाम कर देगी कि हम आराम से इस बिगड़ैल को पूरी तरह से रास्ते पर ले आएंगे। फिर इस पर भी देशहित में वही सब दिखेगा जो कुछ हम देखना और दिखाना चाहेंगे। क्या करें हम देशहित के अलावा और कुछ कर ही नहीं न सकते हैं क्योंकि आप तो जानते हैं कि हमारा जन्म ही देशहित में हुआ है। उस मुए पंडित से भी बड़ी भविष्यवाणी अब हम करते हैं आखिर हमारी आपबीति का अंत भी तो शुरुआत की तरह ही धमाकेदार होना चाहिए न. मेरी भविष्यवाणी यह है कि मैं जीने की तरह मरूंगा भी देशहित में ही घोटालों द्वारा अर्जित रुपए को गिनता हुआ। अब जब दो-दो लाख करोड़ रुपये का महाघोटाला होगा तो उसे गिनने में कम-से-कम 20-30 साल तो लगेगा ही न।
मित्रों,आप ही सोंचिए कि अगर 2-जी घोटाला नहीं हुआ होता तो जनता कैसे राजा बनती और फोनकॉल कैसे सस्ता होता? फिर भी देखिए मूर्खों को कहते हैं कि राजा ने घोटाला किया। राजा ने तो भिखारी को भी टेलीफोन का राजा बना दिया और देशहित में फिर जेल भी गया। इसी तरह अगर कोयला घोटाला नहीं हुआ होता तो देश को सस्ती बिजली कैसे मिलती (मुझे तो मुफ्त में ही मिल जाती है इसलिए मेरे लिये तो सस्ती ही हुई न?)। इसी तरह अगर देश में राष्ट्रमंडल घोटाला नहीं होता तो देश की जनता सवा लाख की घटिया कुर्सी पर कैसे बैठती? देश के लोग नासमझ हैं वास्तविकता को समझना ही नहीं चाहते। घोटाला मतलब देशहित और इसके सिवा और कुछ नहीं। मेरा बैंक अकाउंट इन दिनों देशहित में लबालब भरा हुआ है। क्या करूँ पूरी दुनिया में घूम-घूमकर बैंकों में खाता खोलता फिर रहा हूँ। साथ ही दिखावे के लिए देशहित के भी कुछ काम कर लेता हूँ जिससे पूरी यात्रा देशहित में हो जाए। विदेशों में विकास के नए-नए तरीकों की खोज होती रहती है। देश में वापस आते ही देशहित में उनकी योजना बनाता हूँ और फिर देशहित में एक और घोटाला सम्पन्न कर लेता हूँ।
मित्रों,अब तक तो मेरा देशहितवाला तर्क खूब काम करता रहा है लेकिन अब यह सोशल मीडियावाला सब गलत-सलत अफवाह फैलाकर हमारी देशहित वाली महान थ्योरी को फ्लॉप करवाने में भिड़ गया है। बड़ी माथापच्ची की हमने कि देशहित में इस नामुराद से कैसे निबटा जाए। मौका मिल ही नहीं रहा था अब असम दंगा को लेकर मची भगदड़ ने हमको वह सुनहरा मौका भी दे दिया है। सो हमने सोशल मीडिया को पूरी तरह देशहित के खिलाफ खतरा घोषित करने का अभियान ही छेड़ दिया है और इत्मिनान रखिए बहुत जल्दी हमारी गोबयल्स सेना इसे इतना बदनाम कर देगी कि हम आराम से इस बिगड़ैल को पूरी तरह से रास्ते पर ले आएंगे। फिर इस पर भी देशहित में वही सब दिखेगा जो कुछ हम देखना और दिखाना चाहेंगे। क्या करें हम देशहित के अलावा और कुछ कर ही नहीं न सकते हैं क्योंकि आप तो जानते हैं कि हमारा जन्म ही देशहित में हुआ है। उस मुए पंडित से भी बड़ी भविष्यवाणी अब हम करते हैं आखिर हमारी आपबीति का अंत भी तो शुरुआत की तरह ही धमाकेदार होना चाहिए न. मेरी भविष्यवाणी यह है कि मैं जीने की तरह मरूंगा भी देशहित में ही घोटालों द्वारा अर्जित रुपए को गिनता हुआ। अब जब दो-दो लाख करोड़ रुपये का महाघोटाला होगा तो उसे गिनने में कम-से-कम 20-30 साल तो लगेगा ही न।
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