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27.8.12

अन्ना की छाया बनी केजरीवाल की छटपटाहट !


अन्ना की छाया बनी केजरीवाल की छटपटाहट !

जंतर मंतर पर सफेद टोपी पहने लोगों को हुजूम...जिस सफेद टोपी पर 25 दिन पहले तक लिखा होता था मैं अन्ना हूं...उसी टोपी पर जब निगाह पड़ी तो मैं और हूं तो था...पर मैं औऱ हूं के बीच में ढाई शब्दों की बजाए पांच शब्द नजर आए। टोपी पर मैं और हूं के बीच में अन्ना की जगह लिखा था केजरीवाल...मैं केजरीवाल हूं। ये वही केजरीवाल हैं जो खुद कल तक अन्ना की टोपी लगाकर घूमा करते थे...लेकिन अब ये वो केजरीवाल नहीं हैं...अब शायद ये चाहते हैं अन्ना के परछाई से बाहर निकलकर अपनी ऐसी काया बनाई जाए जो दूसरों को परछाई दे सके। जंतर मंतर पर 3 अगस्त 2012 को टीम अन्ना का आंदोलन जब चुनावी विकल्प के एलान के साथ समाप्त हुआ था उसके बाद से ही अन्ना हजारे और उनके सहयोगी सुर्खियों से उतर गए थे। इसके ठीक बाद 9 अगस्त 2012 को बाबा रामदेव ने दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकार के खिलाफ ताल ठोक दी तो मीडिया जगत की सुर्खियों में छाने के साथ ही सरकार की सबसे बड़ी परेशानी का सबब भी बाबा बन गए...और आखिरकार 14 अगस्त को बाबा ने अपना अनशन खत्म किया। इस आंदोलन ने टीम अन्ना के आंदोलन की चमक फीकी कर दी थी...ऐसे में अरविंद केजरीवाल एंड टीम को शायद ये समझ में आ गया था कि जनता की निगाहों में चढ़े रहना है तो सुर्खियां तो बटोरनी ही होंगी...क्योंकि हिंदुस्तान की जनता की याददाश्त बहुत कमजोर है...या यूं कहें कि जनता को शार्ट टर्म मेमोरी लॉस की बीमारी है...जिसके चलते ये बहुत जल्दी चीजों को भूल जाती है और गलती करने वाले को जल्दी ही माफ भी कर देती है...ऐसा न होता तो सत्ता से बेदखल होने के बाद बार – बार भ्रष्टाचारी सत्ता में काबिज ही न होते। खैर इस केजरीवाल एंड टीम ने कोयला घोटाले को हथियार बनाकर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई और दिल्ली पुलिस को छकाते हुए ये लोग अपने मंसूबों में कामयाब भी रहे...साथ ही केजरीवाल ने इस बहाने सरकार को अपनी ताकत का एहसास भी करा दिया कि अन्ना हजारे इस प्रदर्शन में साथ नहीं है तो क्या फिर भी लोग हमारे साथ हैं...औऱ कुछ हद तक इससे केजरीवाल अन्ना की परछाई से बाहर झांकने में कामयाब भी हुए हैं। केजरीवाल एक अच्छे मकसद के लिए लड़ रहे हैं...और अब वो इस लड़ाई को राजनीति के मैदान में उतरकर ही लड़ेंगे...जो केजरीवाल के लिए आसान तो बिल्कुल नहीं होगा...क्योंकि केजरीवाल अन्ना की परछाई से बाहर झांकने में तो कामयाब रहे हैं...लेकिन अन्ना की तरह लाखों – करोड़ों लोगों के लिए एक ऐसी काया बनना जो उनको परछाई दे सके...केजरीवाल के लिए मुश्किल भरा और सालों लंबा रास्ता भी है। इस काया को पाने के लिए जब अन्ना जैसे व्यक्तित्व को करीब 30 से 40 साल का वक्त लग गया तो केजरीवाल तो अभी उनका अंश मात्र भी नहीं हैं। वो भी ऐसे वक्त में जब उनके सहयोगियों से उनके विचार उनकी भाननाएं मेल नहीं खा रही हैं। यहां बात हो रही है इंडिया अगेंस्ट करप्शन की प्रमुख सदस्य किरण बेदी की...जो आईएसी की नींव का मजबूत हिस्सा भी हैं। लेकिन भाजपा के विरोध के मुद्दे पर केजरीवाल और बेदी की सोच अलग – अलग प्रतीत होती है। केजरीवाल सबको भ्रष्ट मानकर उनका विरोध करने की बात करते हैं तो किरण बेदी इससे इत्तेफाक नहीं रखती। उनकी नजर में भाजपा का विरोध करना ठीक नहीं है क्योंकि भाजपा सत्ता में नहीं है। ये मतभेद आगे चलकर गहरा जाते हैं और केजरीवाल के साथ बेदी की जुगलबंदी अगर टूटती है तो इसका सीधा असर आईसीए के साथ ही केजरीवाल की क्रेडिबीलिटी पर पड़ेगा और लोगों का विश्वास उन पर कम हो सकता है...जिसका सीधा असर उनके आंदोलन पर पड़ेगा। बहरहाल ये तो भविष्य के गर्भ में है...लेकिन जो वर्तमान में है उसकी अगर बात करें तो पीएम मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के आवास के घेराव के बाद केजरीवाल अपने मकसद के पूरा होने की बात करते हैं...ऐसे मे सवाल ये उठता है कि आखिर केजरीवाल का समर्थकों संग घेराव का मकसद था क्या...? ऐसा तो नहीं कि केजरीवाल को लगता हो कि अगस्त 2011 में और 25 जुलाई 2012 से 3 अगस्त 2012 तक जंतर मंतर पर अन्ना हजारे के साथ मिलकर भ्रष्टाचार से घिरी सरकार और भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ जो माहौल देशभर में टीम अन्ना ने तैयार किया कहीं उसका फायदा कोई और या यूं कहें मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा उठा ले जाए...और शायद इसी वजह से पीएम औऱ सोनिया के आवास के साथ ही आईएसी ने विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष के निवास का घेराव कर जनता को ये संदेश देने की कोशिश की...कि भाजपा भी दूध की धुली नहीं है और भाजपा के नेता भी भ्रष्टाचार के समुद्र में गोते लगा रहे हैं...लिहाजा कांग्रेस का विकल्प भाजपा तो नहीं हो सकती। केजरीवाल अगर ऐसा सोचते हैं तो आईएसी के इस घेराव से जहां कांग्रेस को फायदा मिलता दिखाई दे रहा है वहीं भाजपा को इससे नुकसान ही हुआ है। कांग्रेस को फायदा इसलिए भी हुआ है क्योंकि कांग्रेस तो पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी है और ताजा कोयला घोटाले में भाजपा ने उसकी नाक में दम कर रखा था...ऐसे में कोयला घोटाले पर आईएसी का कांग्रेस के साथ ही भाजपा का भी विरोध करने और कोयला घोटाले में भाजपा के भी शामिल होने के आरोप लगाने पर कांग्रेस ने राहत की सांस ली होगी...जबकि भाजपा को इन आरोपों पर सफाई देनी पड़ सकती है।

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