शहीद की वेदना
अमर जवान ज्योति से,
निकली थी एक सिसकी .
मेने पूछा -
शहीद,
तुम-
वीर थे,बहादुर थे.
वतन पर मर मिटे थे.
तुम्हारी वीर गाथा से,
इतिहास भरा पड़ा है.
तुम-
हँसते-हँसते,
चढ़ गए थे सूली पर.
गोरों की गोलियों को,
लेते थे सीधा छाती पर.
मगर-
आज तुम मायूस क्यों?
आज तुम सुबकते क्यों?
शहीद बोला-
गैरो ने ढाया सीतम,
तब इन्कलाब कह गये.
देखा -
अपनों का अपनों पर सीतम ,
हाय!अब आंसू सिसकी रह गये !!
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