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24.8.12

आरक्षण - सड़क से संसद तक

प्रमोशन में आरक्षण को लेकर घमासान जारी है...सड़क से लेकर संसद तक हर तरफ आरक्षण को लेकर बवाल मचा है। मायावती को इससे कुछ ज्यादा ही प्यार है...हो भी क्यों न भई आखिर माया की राजनीति भी तो आज तक इसी के सहारे परवान चढ़ती आयी है। अब 2007 की ही बात कर लेते हैं...उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे आये तो शायद ही मायावती ने सोचा होगा कि उनका हाथी विधानसभा की दो तिहाई सीटों पर कब्जा कर लेगा। अब भला क्यों माया आरक्षण को लेकर हो हल्ला न मचाए...अभी तो बहुत साल राजनीति करनी है इन्हें। ये हाल सिर्फ मायावती का नहीं बल्कि देश के तमाम राजनीतिक दलों के नेताओँ को भी यही हाल है...वे भी अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने अपने वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण की बात करते आये हैं। चलिए ये तो थी माया औऱ दूसरे राजनेताओं की बात जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए आरक्षण के जिन्न को समय समय पर बोतल से बाहर निकालने से गुरेज नहीं करते। आप ही सोचिए क्या वाकई में सरकारी नौकरी में आरक्षण के बाद प्रमोशन में भी किसी वर्ग विशेष के लिए आरक्षण जायज है। क्यों नहीं योग्यता का पैमाना ही यहां पर उपयोग किया जाए। लेकिन अफसोस ऐसा है नहीं...जाति धर्म के आधार पर राजनीति करने वाले सरकार चला रहे हमारे राजनेताओं को तो अपने वोट बैंक को साधना है...ऐसे में वे ये कैसे होने देते...नौकरी में प्रमोशन के लिए सत्ता पर बैठे इन लोगों ने आरक्षण लागू कर दिया। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अनुचित ठहराते हुए इस पर रोक तो लगा दी...लेकिन इसके बाद भी हमारे नेतागण हर इस जुगत में लगे हैं कि प्रमोशन में आरक्षण बहाल करने के लिए संविधन संशोधन विधेयक पास हो जाए। हालांकि कांग्रेस पहले ही इसके पक्ष में दिखाई दी जब 9 अगस्त 2012 को सरकार ने सदन में जोरदार हंगामे के बाद इस विधेयक को सदन में पेश करने की बात कही। हालांकि विधेयक रखे जाने से पहले प्रधानमंत्री ने अपने निवास पर 21 अगस्त 2012 को इस पर आम सहमति के लिए सर्वदलीय बैठ भी बुलाई...लेकिन ये बैठक भी बेनतीजा ही समाप्त हुई। सपा नेताओं के संविधान संशोधन विधेयक का पुरजोर विरोध करने के बाद सरकार ने 22 अगस्त को सदन में संविधान संशोधन विधेयक पेश करने की योजना टाल दी। हालांकि सरकार ने अपनी मंशा तो जाहिर कर ही दी है कि वो देर सबेर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संविधान संशोधन विधेयक लेकर आएगी...यानि की प्रमोशन में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ फिर से लागू हो जाएगा। अगर ऐसा होता है तो इस मुद्दे को लेकर दो गुटों  में बंटे सरकारी कर्मचारी कैसे एक दफ्तर में एक छत के नीचे साथ काम कर पाएंगे...वो भी उस स्थिति में जब एक कर्मचारी का जूनियर उसका सीनियर हो चुका होगा...या हो जाएगा...जाहिर है इससे कर्मचारियों में कुंठा आएगी...औऱ वो अपना सौ प्रतिशत नहीं दे पाएंगे...जो वैसे भी ज्यादातर सरकारी कर्मचारी नहीं देते हैं। खैर ये तो प्रमोशन में आरक्षण लागू होने के बाद की बात है...लेकिन इसको लागू करवाने में सरकार के सामने भी मुश्किलें बहुत हैं। मनमोहन सरकार कभी नहीं चाहेगी कि सपा की नाराजगी दूर किए बगैर वो संविधान संशोधन विधेयक सदन में पेश करे...औऱ सरकार की पूरी कोशिश विधेयक को पेश करने से पहले सपा को मनाने की भी होगी। साथ ही सरकार के सामने सबसे बड़ी और मुश्किल चुनौती सरकारी कर्मचारियों का वो बड़ा गुट है जो लगातार प्रमोशन में आरक्षण का विरोध कर रहा है। इस गुट ने साफ भी कर दिया है कि अगर प्रमोशन में आरक्षण लागू होता है तो वो बिना सूचना के अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। अब सरकार अगर प्रमोशन में आऱक्षण लागू करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश करती है तो सरकार को सरकारी कर्मचारियों के इस गुट की नाराजगी झेलनी पड़ेगी जो सरकार को 2014 के आम चुनाव में भारी पड़ सकती है। ऐसे में सरकार भले ही बिल को लेकर अपनी मंशा जाहिर कर चुकी हो...लेकिन अंदरखाने इसको लेकर चिंतन जरूर चल रहा है कि आखिर वो करे तो क्या करे। बहरहाल सड़क से लेकर संसद तक जारी इस लड़ाई में किसके चेहरे पर खुशी झलकेगी और किसके चेहरे पर नाराजगी ये तो वक्त ही बताएगा...फिलहाल प्रमोशन में आरक्षण के जिन्न ने सबकी नींद जरूर उड़ाकर रखी है।

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