नोटबंदी की वजह से पीएम मोदी जनता के बीच एक मजबूत प्रधानमंत्री बनकर उभरे है। पर देखना होगा कि यूपी की जनता पीएम मोदी के सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी से प्रभावित होती है, या कांग्रेस-सपा गठबंधन से, पर कहीं साइकिल-पंजा और कमल को कुचल कर हाथी सबसे आगे न निकल जाये। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चुनाव खत्म हो चुका है। 403 विधानसभा वाले उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में चुनाव हुए। पहले चरण में 73 सीटों पर, दूसरे चरण में 67 सीटों पर, तीसरे चरण में 69 सीटों पर, चौथे चरण में 53 सीटों पर, पांचने चरण में 52 सीटों पर, छठे चरण में 49 सीटों पर और आखिरी यानी की सातवें चरण में 40 सीटों पर वोट डाले गए। अब इंतजार है नतीजों का, अभी तक तो यह साफ हो गया है कि मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी के बीच है। बहुजन समाज पार्टी लड़ाई से बाहर है।
बहुजन समाज पार्टी की आखिरी बार यूपी में सरकार साल 2007 में बनी थी। तब मायावती ने नए सामाजिक समीकरण बनाए थे। उन्होंने ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़ा। नतीजा ये हुआ कि यूपी के 21 प्रतिशत दलित और 10 प्रतिशत ब्रह्मणों ने मिलकर मायावती को पूर्ण बहुमत दिला दिया। 2007 में मायावती को करीब 30 फीसदी वोट मिले, और 206 विधानसभा की सीटें मिलीं थी। चूंकि 2014 में भारती जनता पार्टी ने यूपी में शानदार प्रदर्शन किया। इसलिए इस बार यूपी के सवर्ण मकदाताओं खास तौर पर क्षत्रिय और ब्रह्मणों को लगने लगा कि भाजपा सत्ता में आ सकती है। जिसका आभास मायावती को पहले से था और उन्होंने नया समीकरण बनाने की कोशिश की। उन्होंने ब्राह्मणों की कमी को मुस्लिमों के सहारे पूरा करने की कोशिश की। 100 मुस्लिम उम्मीदवारों को पार्टी का टिकट दिया। लेकिन सबसे बड़ी बात ये थी कि मुस्लिमों के पास मायावती को वोट देने की कोई वजह नहीं थी। सपा-कांग्रेस गठबंधन की वजह से उनकी राह बेहद आसान हो गई थी। मायावती मुसलमानों को तो पार्टी से नहीं जोड़ पाईं, उल्टे दलितों पर उनकी पकड़ कमजोर हो गई। दलितों में सिर्फ चमार ही उनके पास रह गए, पासी, भंगी, बाल्मिकी समेत कई दलित जातियों ने बीएसपी से किनारा कर लिया।
पिछले कुछ वर्षों से भारत में चुनाव अमेरिका के प्रेसिडेंशियल चुनाव की तरह होने लगे हैं, जहां लोग पार्टी को नही बल्कि चेहरे को वोट देने लगे है। 2014 के संसदीय चुनाव में लड़ाई बीजेपी-कांग्रेस की नहीं, बल्कि राहुल-मोदी की थी। ठीक इसी तरह यूपी में लड़ाई मोदी-अखिलेश-मायावती की थी। यूपी की जनता अखिलेश यादव से नाराज नहीं है, लेकिन वो पीएम मोदी से खुश हैं। खास तौर पर पीओके में हुआ सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी से पीएम मोदी की छवि काफी मजबूत हुई है।
वैसे यूपी में पिछले 15-20 सालों में बनीं सरकारों में अखिलेश यादव की सरकार पहली सरकार थी जिसका एजेंडा विकास का था, और ये बात अखिलेश यादव अपने मतदाताओं को बतानें में सफल भी हुए, लेकिन जनता के मन में ये भी बात थी कि मोदी ने भी विकास किया है, इसलिए विकास चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाया। समाजवार्दी पार्टी के लिए सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस से गठबंधन हो सकता है। कांग्रेस से गठबंधन की वजह से पार्टी को मुस्लिम वोट तो मिले लेकिन बड़ी संख्या में हिंदू वोट पार्टी से कट गए। जिन 105 सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, वहां सपा की पकड़ अच्छी थीं। 2012 में वहां सपा से कई विधायक चुने गए थे। उनका टिकट काटकर कांग्रेस उम्मीदवार को टिकट दिया गया, जिससे उन 105 सीटों पर सपा नेता या विधायक पार्टी के प्रचार में पूर्ण मनोयोग से नहीं लगे। कुछ ने तो निर्दलीय चुनाव लड़ा और कुछ ने दूसरी पार्टियों का दामन थाम लिया।
बीएसपी ने मुस्लिम बहुल इलाकों की सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार खडे किए है, जहां उन्होंने सपा-कांग्रेस गठबंधन के ही वोट कांटे, वहां बीजेपी को एक तरफा लीड मिल गई, क्योंकि बीजेपी ने किसी मुस्लिम को टिकट ही नहीं दिया , ऐसी सीटों पर वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। जहां ज्यादातर पार्टियों ने मुस्लिमों को टिकट दिया वहीं भाजपा ने हिंदू को टिकट दिया।
सपा को नुकसान मुलायम सिंह यादव का प्रचार नहीं करने से हो सकता है। मुलायम सिंह यादव ने अपनी बहु अपर्णा यादव की सीट को छोड़कर कहीं भी पार्टी का प्रचार नहीं किया। जिससे पार्टी को काफी नुकसान हुआ। मोदी के आक्रामक प्रचार के आगे अखिलेश यादव अकेले पड़ गए। अगर मुलायम सिंह यादव प्रचार करते तो परिवार में कलह के बावजूद सपा को इसका फायदा होता।
अगर बीजेपी जीत सकती है तो इसका प्रमुख वजह है चमार छोड़कर बाकी दलित जातियों पर भी ध्यान दिया, इन जातियों की हमेशा शिकायत रहती है कि मायावती की सरकार में सिर्फ चमारों को ही प्राथमिकता मिलती है। चमारों को ही नौकरी मिलती है। बीजेपी ने इन दोनों वर्गों पर ध्यान केंद्रित किया। इसके अलावा बीजेपी ने टिकट बंटवारे में भी इन वर्गों का ध्यान रखा है। जिसका लाभ उन्हें मिल सकता है। वही नोटबंदी ने भी बीजेपी को काफी मजबूती दी है। नोटबंदी की वजह से पीएम मोदी जनता के बीच एक मजबूत प्रधानमंत्री बनकर उभरे है। पर देखना होगा कि यूपी की जनता पीएम मोदी के सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी से प्रभावित होती है, या कांग्रेस-सपा गठबंधन से, पर कहीं साइकिल-पंजा और कमल को कुचल कर हाथी सबसे आगे न निकल जाये।
-कुशाग्र वालुस्कर
भोपाल
(मध्यप्रदेश)
- 7224885549
kushagravaluskar@rediffmail.com
10.3.17
यूपी में कहीं हाथी सबको कुचलके आगे न निकल जाए?
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