-असित नाथ तिवारी-
ये नारा पहले कश्मीर में गूंजा करता था, बाद में देश की सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटी में शामिल जेएनयू में गूंजा और अब दिल्ली यूनिवर्सिटी में गूंज रहा है। मेरे जेहन में भी गूंजने लगा है और कई क़िस्म के द्वंदों के बाद मुझे लगा कि इस नारे का समर्थन हर आदमी को करना चाहिए। जो लोग इस नारे का विरोध कर रहे हैं वो या तो घाटी के हालातों की समझ नहीं रखते या फिर जानबूझ कर सिर्फ अपनी ज़िद को जायज बताने पर अड़े हैं या फिर वो किसी और के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं।
कश्मीर की आज़ादी वाले नारे को जिस तरीक़े से पेश किया जा रहा है वो तरीक़ा ही बता रहा है कि जानबूझ कर झूठी बात प्रचारित की जा रही है। कश्मीर की पूरी आबादी पर अघोषित सैन्य शासन थोपा गया है इस बात से कोई सिरफिरा ही इनकार कर सकता है। कश्मीर की आज़ादी का मतलब ये नहीं कि नारे लगाने वाले कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते। दरअसल इस नारे के ज़रिए अघोषित सैन्य शासन को हटाकर वहां मनवाधिकारों की सुरक्षा की मांग हो रही है।
मणिपुर में ईरोम शर्मिला भी तो यही काम करती रहीं हैं। तो क्या ईरोम देशद्रोही हैं ? कश्मीर में सेना जिस तरह से काम कर रही है उस पर चर्चा करने से सरकारें क्यों बचती रहीं हैं ? क्या सेना के जवान ही आखिरी सच हैं और वो जो करें उसका समर्थन हमारी मजबूरी है ? नहीं न। तो कश्मीर को समझने के लिए कश्मीर जाइए फिर टीवी, अख़बार और सोशल मीडिया पर प्रवचन छांटिए। एक किताब भी पढ़ सकते हैं। ‘सिसकियां लेता स्वर्ग’ घाटी के हालातों को समझने के लिए ये किताब ज़रूरी है। पढ़िए और अगर संभव हो तो हफ्ते भर घाटी में रहकर भी आइए।
लोगों का जीवन नारकीय हो गया है वहां। सैन्य शासन की तमाम बुराइयां दिखेंगी वहां। पूरी घाटी जेल बन कर रह गई है। सुरक्षा के नाम पर बड़ी आबादी जुल्म सहने को विवश है। न कोई चैन की नौकरी कर पा रहा है न चैन से इलाज करवा पा रहा है। बेतिया और बेतवा में बैठ कर आप घाटी को उतना नहीं जान सकते जितना घाटी के बीच जाकर जान सकते हैं। टीवी और अख़बार में उतना ही बताया जा रहा है जितना बताने से टीवी-अख़बार मालिकों और उनके संपादकों का हित सधता है। ये बात किसी से नहीं छुपी है कि कश्मीर पर सैन्य शासन कांग्रेस की सरकार ने थोपा।
ये बात भी किसी से छुपी नहीं है कि कश्मीर पर थोपे गए सैन्य शासन को क्रूर से क्रूरतम बनाने की दिशा में मौजूदा बीजेपी नित सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही। इस मसले को हिंदु-मुसलमान के नज़रिए से मत देखिए। इस मसले को हिंदुस्तानी नज़रिए से देखिए। इतना हिंदु-मुसलमान कीजिएगा तो देश को गंभीर ख़तरे में झोंक दीजिएगा। मान लीजिए एक तरफ हिंदु हो जाएं और दूसरी तरफ मुसलमान तो फिर हिंदुस्तान किधर जाएगा। 10 आप मारें और 6 वो मारें तो फिर भारत मां की गोद में उसी की संतानों के द्वारा क़त्ल की गई उसी की संतानों की लाशें नहीं होंगी तो किसकी होंगी? तो बहकावे में मत आइए।
जानबूझ कर इस नारे का मतलब बदल-बदल कर देश का माहौल ख़राब कर सत्ता की हवश पूरी करने वालों को पहचानिए। कश्मीर की आज़ादी वाले नारे का समर्थन कीजिए और वहां ग़ुलामों की तरह बदतर जिंदगी जी रहे लोगों के लिए कुछ कीजिए। इस नारे का मतलब ये नहीं कि अलग कश्मीर चाहिए, इस नारे का मतलब ये है कि कश्मीरियों पर थोपे गए सैन्य शासन से कश्मीर को मुक्ति चाहिए।
असित नाथ तिवारी
आउटपुट एडिटर
के न्यूज़, कानपुर
2.3.17
हमें चाहिए आज़ादी! कश्मीर की आज़ादी!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment